फरवरी 2020 में जब भारत घूमते हुए 100 दिन पूरा करने के बाद किसानों के मुद्दों को लेकर फिर से घूमना शुरू किया तो जयपुर में एक बैकपैकर हाॅस्टल में रूकना हुआ, वहाँ उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल का एक लड़का मिल गया, इत्तफाक से हम दोनों का एक म्युचल कांटेक्ट भी निकल गया तो हम काफी देर तक बात करते रहे, बात करते-करते मैंने किसान आंदोलन के बारे में भी चर्चा की, बड़े आराम से हम चर्चा कर रहे थे, किसी पार्टी विचारधारा का समर्थन या विरोध करने की बात नहीं चल रही थी, सिर्फ किसानों की समस्याओं पर बात कर रहे थे, मैंने जो आंदोलन में देखा, जिया, महसूस किया उस हकीकत को साझा कर रहा था। इतने में उसी हाॅस्टल में रहने वाले एक इंजीनियर भाईसाहब आए, भाईसाहब किसी मल्टीनेशनल कंपनी में मोटी तनख्वाह पाने वाले नौकर होंगे, मेरी बात सुनते हुए अंग्रेजी पेलने लगे और किसानों के नाम पर जहर उगलने लगे, मैं चुपचाप सुनता रहा। मैंने तो कान पकड़ लिया था कि कोई कितनी भी भाषाई हिंसा करे, मैं रियेक्ट नहीं करने वाला, मैं अंत तक चुप रहा। वे बोलते रहे, अपने सतही लाॅजिक देते रहे, उत्तराखण्ड का साथी दोस्त भी सुन के मुस्कुरा रहा था। इंजीनियर साहब का बोलना बंद नहीं हुआ था, जबकि मैं उनसे आगे से बात नहीं कर रहा था, इतने में उन्होंने "bloody farmers, fuck farmers, i pay tax for this country, return my tax money" कुछ ऐसा ही कहा। अब ये सुनके मेरा दिमाग खराब हो चुका था। गढ़वाल वाले भाई ने मुझे इशारों में कहा कि मैं शांत हो जाऊं, और मैंने उनकी बातों को नजर अंदाज कर दिया। फिर उस भाई ने कहा - यार ये इंजीनियर साहब कुछ परेशान से हैं, दो दिनों से यहीं हूं, ये भी यहीं हैं, दिन भर किसी से फोन पर ऊंची आवाज में झगड़ते हैं, पत्नी है या प्रेमिका मुझे नहीं मालूम लेकिन खूब लड़ते हैं, मानसिक रूप से सही नहीं लगे मुझे तो इसलिए आपको डिबेट करने से रोक लिया।
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