Thursday, 11 November 2021

Non voilence in thoughts leads to non volience in action and in life.

कुछ लोगों में हिंसा बिल्कुल ना के बराबर होती है, ऐसा नहीं है कि ये लोग कभी हिंसा से दो चार नहीं होते, भारत में रहने वाला आए दिन पब्लिक डिस्कोर्स में हिंसा देख ही रहा होता है, कुछ ही बच पाते हैं। भारत घूमते हुए बहुत से ऐसे लोगों की सोहबत मिली इस बात की खुशी है। घर से निकलने से पहले सोच के गया था कि अपनी तरफ से भाषाई वैचारिक भौतिक किसी भी तरह की हिंसा से परहेज ही करूंगा, आंदोलन स्थल के ताप की वजह से कुछ हद तक वैचारिक हिंसा का प्रवेश हुआ, जो कि पूर्णत: व्यक्तिगत था। कुल मिला के बहुत हद तक अमल हुआ। आगे भी अब यही कोशिश रहेगी कि एकदम मात्रा शून्य कर दी जाए। जो सड़कों में लंबी-लंबी यात्राएँ करते हैं, उनके अपने बहुत से कटु अनुभव होते हैं, यानि कभी किसी लोकल आदमी से लड़ लिया या कभी किसी पुलिसवाले से बहस हो गई, लेकिन मेरे साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई। असल में होती है सुई की नोक जैसी छोटी सी बात, लेकिन लोगों के जीवन में इतना सब गड्ड-मड्ड हुआ पड़ा है कि कहीं का कहीं उतार जाते हैं, और बात बढ़ जाती है। ऐसा नहीं था कि मुझे हर जगह बहुत अच्छे खुशमिजाज लोग मिले, हर तरह के लोगों से मैं मिला, लेकिन मैं गाँठ बाँध के गया था कि हिंसा से परहेज करना है तो हिंसक लोगों के बीच भी आनंद से ही समय गुजरा।
एक स्ट्रैच में मेरे जितनी लंबी यात्रा बहुत ही कम‌ लोग करते हैं, छत्तीसगढ़ राज्य से तो अभी तक मैं एकलौता ही हूं। ऐसे में बिना हिंसा परोसते हुए आगे बढ़ना बड़ा चैलेंज रहा। एक चीज यह भी समझ आई कि जब हम अपनी तरफ से हिंसा को नकार देते हैं तो दूसरी ओर से हम स्वतः ही हिंसा के प्रभाव से मुक्त होने लगते हैं।

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