Even the darkest night will end and the sun will rise - Victor Hugo
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जितने भी आंदोलन हुए, उसमें भी कभी पूरा भारत नहीं जुट पाया था, ये तो फिर भी किसानों का आंदोलन है, यहाँ तो वैसी देशभक्ति वाली फैंटेसी भी नहीं है, हर किसी के लिए जुड़ पाना आसान नहीं है, श्रम से नफरत करने वालों के लिए, सामंतवादी मानसिकता रखने वालों के लिए और भी मुश्किल है। लेकिन जिनको दिख गया कि ये अपने आप पैदा हुआ आंदोलन है, वे देश के कोने-कोने से आकर जुड़ गए, चाहे अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक, सभी राज्यों से लोग अपनी-अपनी शक्ति और सुविधा के हिसाब से जुड़े और आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा, सरकार आगे भी झुकेगी, क्योंकि किसान पीछे हटने वाले नहीं है।
यह सब संभव हो रहा है अपना सारा अहं, अपनी सुविधाएँ, अपनी जड़ताएँ सब कुछ छोड़कर सिर्फ सड़कों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने से, तन मन धन सब कुछ दाँव पर लगाकर टिके रहने से, यह काम सिर्फ इस देश का किसान ही इतने लंबे समय तक कर सकता है। फर्ज करें कि एक नौकरीपेशा वर्ग अपनी माँगों को लेकर सड़कों पर है, वह दूसरे ही दिन खाना, पानी, बाथरूम इन समस्याओं से तंग आकर आंदोलन से भाग जाएगा। आंधी तूफान ठंड गर्मी बरसात, ये सब मौसमी मार झेलने के लिए तो रीढ़ ही नहीं बचनी है, आंदोलन कहाँ से करेंगे।
किसी भी आंदोलन की सबसे बड़ी जरूरत है स्थायित्व, बस एक जगह टिके रहिए, कुछ भी हो जाए हिलिए ढुलिए मत, किसी की जान भी चली जाए, हिलना नहीं है, टूटना नहीं है, अपना सर्वस्व सौंप देना है, और यह सब इतना भी आसान नहीं है, लेकिन किसानों का फौलादी हौसला यह काम कर रहा है, आर्थिक मानसिक हर तरीके से उन्होंने खुद को इस आंदोलन में झोंक दिया है। साल भर में 700 के आसपास लोग शहीद हुए हैं, वो भी तब ये डाटा हमारे पास है जब कुछ लोगों की टीम लगातार एक साल से लोगों की मौत को रिपोर्ट कर रही है, तब ये आधिकारिक डाटा मौजूद है। मुझे लगता है कि इससे ज्यादा ही मौते हुई हैं, कुछ कुछ तो हमसे छूट ही जाता है। यकीन मानिए इतनी मौतों के बाद, लाठीचार्ज वाटरकैनन, फर्जी केस बनाकर जेल भरने का कार्यक्रम और मीडिया द्वारा बदनामी। सिलसिलेवार ढंग से लगातार की गई इन तमाम तरह की हिंसाओं के बाद भी लोगों का हौसला इंच मात्र भी नहीं हिला है इस आंदोलन में, क्योंकि इनकी माँग जायज है, इसलिए इनके हौसले बुलंद है, भई जीने-मरने का सवाल है। लोगों ने अपनी नौकरियाँ तक छोड़ दी है इस देश के बेहतर भविष्य के लिए और अभी भी आंदोलन स्थल में हैं, क्या डाक्टर क्या इंजीनियर क्या सीए, नौकरी को ही जीवन का अंतिम ध्येय मानने वालों को हैरानी हो सकती है, लेकिन जब तक आप आंदोलन स्थल में जाकर झांकेंगे नहीं तो आपको समझ नहीं आएगा कि इनको साल भर से सब कुछ झेलते हुए सड़कों पर बैठने का हौसला कहाँ से मिल रहा है। सरकार के सामने माफी माँगकर कानून वापस करने की नौबत ऐसे ही नहीं आई है, आप घर बैठे चुनाव वाला केलकुलेशन घुसाते रहिए, लेकिन इस बात को समझिए कि झुकना महत्वपूर्ण है, क्यों झुका इसमें मत उलझिए, झुकना पड़ा ये बहुत बड़ी बात है, बहुमत से चुनकर आई एक पार्टी इतनी आसानी से नहीं झुकती है, और वैसे भी आज नहीं तो कल इन्हें झुकना ही पड़ता, सिर्फ किसी राज्य के चुनाव की बात नहीं है, इनके बहुमत के गुरूर को किसानों ने शिथिल किया है, डंडा किसानों ने किया है, प्रेम शांति और एकता नामक डंडा किसानों ने बजाया है तब जाकर इन्हें झुकना पड़ा है।
#farmersprotest
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