गुजराती मित्र राधिका बीसियों देशों में रह चुकी है। उन छात्रों की तरह नहीं हैं कि माता-पिता से लाखों करोड़ों रूपए लिया और विदेश में मैनेजमेंट कोटा लेकर किसी काॅलेज में पढ़ने चले गये। सब कुछ अपनी क्षमताओं के बूते किया, आर्थिक मामले में माँ-बाप को कुछ बहुत अधिक नहीं करना पड़ा। अलग-अलग देशों में रहकर पढ़ते हुए काम करते हुए बहुत कुछ सीखा। कहने को फार्मासिस्ट हैं लेकिन कलाकार पहले हैं, पेटिंग बनाने के मामले में जर्मनी में इनका सिक्का चलता है। आखिरी बार जर्मनी में रही, फिर कोरोना की वजह से यहाँ पिछले एक साल से यहीं हैं। ये और इनके एक और दोस्त मुझे उत्तराखण्ड में मिले थे, मैं अहमदाबाद में इन्हीं के घर में रूकना हुआ था। मैं इनके पेटिंग वर्कशाम का हिस्सा भी बना। कैनवास में बनाई उस पेंटिंग को मैं अपने राइडिंग जैकेट के अंदर रखकर कुल 2000 किलोमीटर से अधिक अहमदाबाद से इंदौर, गुना, भोपाल, विदिशा, खजुराहो होते हुए रायपुर पहुंचा। बड़ा कैनवास था इसलिए कमर सीधी रखने का चैलेंज और गाड़ी चलाते रहने का चैलेंग अलग ही था, लेकिन जहाँ प्रेम और अपनापन होता है, इंसान खुशी खुशी कर जाता है, मैंने भी कर लिया।
आज राधिका ने कहा - असली जीवन तुम ही जी रहे हो, तुम समझ नहीं सकते मैं तुमसे कितनी अधिक प्रभावित हूं। अगर आज मैं ये पेटिंग वर्कशाप बंद कर खुद को समय देकर कुछ अलग करने का सोच रही हूं तो इसके पीछे भी कहीं न कहीं मैं तुमसे ही इंस्पायर्ड हूं।
इस तस्वीर में इसी बात को लिखा गया है, इस पेटिंग वर्कशाप से अहमदाबाद में राधिका को ठीक ठाक पैसे मिल रहे थे, सही काम चल रहा था, लेकिन जीवन में कुछ और नया करना है इसलिए इसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ रही है। जिन्हें जीवन में हमेशा कुछ नया करना होता है उनके लिए रूपये पैसे का लोभ कभी बाधा नहीं बनता है।
No comments:
Post a Comment