मेरे बहुत कम मित्रों को इस बात की जानकारी है कि मैं इंजीनियरिंग के स्यापे के अलावा मीडिया का छात्र भी रहा हूं। मीडिया का छात्र होने के बावजूद हमेशा मीडियाबाजी से दूर रहा। साथी लोग मीडियाबाजी के नाम पर कहीं इंटर्नशिप करके कार्ड बनवा लेते ताकि दस बीस रूपए बचा लें, ऐसा ही बहुत कुछ करते, चंद असुविधाओं से बचने के लिए प्रेस लिखवा कर चौड़े बनते, मुझे ये चीजें हमेशा से बकवास लगती है।
मीडिया का छात्र होने की वजह से मीडियाबाजी करना मेरे लिए कोई बहुत मुश्किल काम नहीं था। ज्यादा कुछ नहीं, बस थोड़ा "जी सर", "हाँ सर" वाली चाटुकारिता करनी पड़ती। और तो और यह नहीं करके भी पेपर कटिंग या किसी नामी गिरामी वेबसाइट में "भारत भ्रमण पर अकेले निकले युवा" इस तरह के शीर्षक के साथ कुछ तामझाम हो ही जाता, सुजुकी कंपनी वालों ने तो वैसे भी जगह-जगह फूल मालाओं और गुलदस्तों से मुझे लाद दिया, इन सबकी भी मीडियाबाजी हो ही जाती, मैंने नहीं की। अधिकतर लोग यही करते है, इसी को जीवन की उपलब्धि मानते हैं, स्कूल कालेज के परिणाम की तरह जीवन के हर एक पहलू को इवेंट बनाकर रख देते हैं। मैं इवेंटबाज नहीं हूं, मीडियाबाज नहीं हूं, यूट्यूबबाज नहीं हूं, टूरिस्ट नहीं हूं। मैं सिर्फ घूमने और लोगों से मिलने निकला था। बहुत खुशी होती है कि अभी तक के जीवन में कभी कहीं चाटुकारिता करने, जी-हूजूरी करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। जब जीवन का इतना हिस्सा बिना चाटुकारिता के जी लिया, तो आगे का जीवन भी इसी तरीके से जी लिया जाएगा।
जब मैं घूम रहा था तो मेरे पास अपनी पहचान बताने के लिए कोई खास टैग पद जैसा कुछ नहीं रहा, मैंने ज्यादा कुछ कहीं कहा भी नहीं, एक राष्ट्रीय संस्थान का फेलो रहा, उसका भी जिक्र नहीं किया क्योंकि मैं उसे उपलब्धि नहीं मानता हूं। इन सबके बावजूद इस पूरे भारत भ्रमण में भारत के आम लोगों ने मुझे बहुत अधिक प्यार दिया। इसके लिए मन की गहराइयों से एक बार फिर से सभी का धन्यवाद। इस यात्रा के बाद मेरा लोगों के प्रति प्रेम और विश्वास पहले से बहुत अधिक बढ़ा है, यही इस भारत भ्रमण का सबसे बड़ा हासिल है।
बाकी इस तस्वीर में जैसा कि आप पढ़ सकते हैं कि रायपुर, छत्तीसगढ़ का एक ग्रुप खास मेरे लिए एक Thanks Giving Ride का आयोजन कर रहा है, बस यही छोटी-छोटी चीजें ही जीवन जीने का ईंधन है। सफलता उपलब्धि की प्रचलित परिभाषा से इतर जीने वाले को बिना लाग-लपेट ऐसी खुशियाँ देने के लिए शुक्रिया।
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