कुछ लोग हैं, खूब खार खाते हैं, यानि ईर्ष्या रखते हैं। उन्हें समस्या इस बात से है कि मैं घर से दूर हूं, माता-पिता की सेवा नहीं कर रहा हूं, घर परिवार की जिम्मेदारियों का वहन नहीं कर रहा हूं आदि आदि। और यह सब मुझे सामने कहने की हिम्मत नहीं है इसलिए दूसरों के सामने कहते फिरते हैं। घर-परिवार की जिम्मेदारी वाली चीज को दिखाते तो ऐसे हैं मानो खुद साक्षात श्रवण बने बैठे हों, जबकि इनके लिए माता-पिता की सेवा का अर्थ उन्हें शाम को चाट-कचौड़ी खिलाने ले जाना, घुमाने ले जाना, पिकनिक, टूर आदि पर ले जाना ही होता है, इन सब का रिश्तों की मजबूती से कोई खास मतलब नहीं। फिर भी कइयों के लिए तो यह सब करते रहना भी एक लंबे इंवेस्टमेंट की तरह होता है, ताकि जल्द से जल्द संपत्ति की हिस्सेदारी मिले और अलग होकर अपने मन का जी सकें। मैंने अधिकतर लोगों को देखा है वे माता-पिता का सम्मान करने का जमकर अभिनय करते हैं, वो बात अलग है कि इसके पीछे उनका स्वार्थ छिपा रहता है।
मैं यह सब नहीं कर पाता हूं, यहाँ तक कि मुझे यह भी जानकारी नहीं है कि गाँव में मेरे नाम पर कौन सी जमीन है, मुझे यह तक नहीं पता कि मेरे लिए किस खाते में भविष्य की सुरक्षा के लिए मेरे माता-पिता ने पैसे जमा किए हुए हैं। मैं कभी ध्यान नहीं देता हूं, मुझे यह सब ध्यान देने योग्य चीज नहीं लगती है। मुझे खुद को संभालना ज्यादा महत्व की चीज लगती है, और ऐसा करने से माता-पिता का अपमान नहीं हो जाता है। मुझे पता है मेरी अपनी स्वतंत्रता की कीमत क्या है, वैसे भी यह स्वतंत्रता एक दिन में हासिल नहीं हुई है, लंबे प्रयासों के बाद मिली है। माता-पिता बच्चों के जीवन जीने के तरीकों में बहुत अधिक हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं, मुझे तो नहीं करते हैं। मुझे घर से रोज कौन सी सब्जी खाई इसके लिए फोन नहीं आता है, न मैं कभी इन सबके लिए रोजाना फोन करता हूं, और यह सब एक दिन में नहीं हो जाता है, धीरे-धीरे होता है, आपको खुद अपने लिए प्रयास करने होते हैं।
रोज फोन में हालचाल न लेकर भी, यानि यह सब औपचारिकताएँ न करते हुए भी माता-पिता और बच्चों के बीच मजबूत संबंध बने रह सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे और बाकी दुनियावी रिश्ते भी मजबूती से बने रहते हैं, इस बात को वे लोग नहीं समझ सकते हैं जो आजीवन ढोंगी वाला जीवन जीते हैं, लगातार माता-पिता से झूठ बोलते हैं, उन्हें धोखा देते हैं। ऐसे लोग ही माता-पिता की सेवा सुश्रुषा का ढोंग करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कोई एक एनजीओ वाला समाजसेवी जो बच्चों या वृध्दों के लिए काम कर रहा होता है, उसे उस पेशे की जिम्मेदारी के चलते हुए जबरन सुबह से शाम बनावटी मुस्कुराहट दिखाता होता है।
वैसे इन जैसों को मुझ जैसे लोगों से इस बात को लेकर समस्या नहीं है कि मैं माता-पिता के साथ नहीं हूं, इनको समस्या इस बात से होती होगी कि मैं ईमानदार रिश्ता कायम करते हुए भी भ्रमणशील हूं। इनमें इतनी भी नैतिक ईमानदारी नहीं कि वे इस बात को स्वीकार सकें कि उन्हें मुझसे ईर्ष्या है, वे इतने कमजोर हैं कि उन्हें इतनी सी बात के लिए भी माता-पिता की छत्रछाया चाहिए होती है।
#बस_यूं_ही
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