मोहम्मद रफी का यह गाना आज रह-रह के याद आ रहा है, इसमें आगे की लाइन है - " एक इंसान हूं मैं तुम्हारी तरह "।
तो हुआ यूं कि मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त रही, आज से महीने भर पहले जब मैं आगरा में था तो उनको मैं आगरे का पेठा कूरियर से भेज नहीं पाया, चाह रहा था भेजूं लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसा बनी कि भेज ही नहीं पाया, बहुत दु:ख हुआ कि नहीं भेज पाया। बदले में महिला मित्र ने यह कहकर ब्लाॅक कर दिया कि मुझे दोस्ती की कद्र नहीं, आज महीने भर से अधिक हो चुके हैं। मेरे लिए यह किसी सदमे से कम नहीं था। खैर...।
अब ये प्रवीण भाई है, कालेज का दोस्त है, कुछ दिन पहले ही फोन में बढ़िया से बात हुई थी, अब पता नहीं मुझे लेकर इसके मन में क्या खिचड़ी पक रही होगी, आज अचानक पता नहीं इसे कौन सी बात ट्रिगर कर गई, इसने ब्लाक कर दिया। अरे भाई मेरी खुद की सोच पाँच साल पुराने अखिलेश से बहुत अलग है। मेरे विचार मेरे मित्रसूची के आधे से अधिक लोगों को अच्छे नहीं लगते, मुझे भी मेरी मित्रसूची के आधे से अधिक लोगों के विचार सही नहीं लग पाते तो क्या हम ब्लाक करतें फिरें। मतलब हद हो गई भाई। Objectivity नाम की भी चीज होती है, जो पसंद आया उस पर रियेक्ट कर लिया, जो नहीं पसंद आया उसे इग्नोर कर लिया। सिम्पल। थोड़े तो डेमोक्रेटिक बनो यार।
अभी कुछ समय पहले गुना में हमारे धर्मेन्द्र भैया के घर जाना हुआ, सिर्फ सोशल मीडिया से ही परिचय था। भैया असल में कई बार सोशल मीडिया में जिस तरह की पोस्ट लिख देते मुझे देखकर यह लगता कि बहुत खतरनाक किस्म के क्रांतिकारी टाइप के होंगे, दिमाग में उसी तरीके की आभाषी छवि बनी हुई थी, लेकिन जब सामने मिला, बात की तो सारा कुछ ध्वस्त हो गया। इतने विनम्र, इतने सरल, इतने सहज कि बस क्या कहूं।
सोशल मीडिया की दुनिया आभाषी है, छोटी है, इससे किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता नहीं चल सकता है, हम कैसे किसी को उसके एक लिखे हुए पोस्ट से फ्रेम कर सकते हैं। इसलिए किसी और को भी अगर मेरी अभिव्यक्ति से समस्या है तो करबध्द निवेदन है कि कम से कम एक बार बात करके अपनी समस्या बता दिया करें, इतनी ईमानदारी रखा करें कि सीधे कह सकें कि तुमने जो लिखा है, मुझे यह ठीक नहीं लगा। बात करोगे नहीं और एकतरफा प्यार की तरह एकतरफा ब्लाक करते फिरोगे तो अनमोल हो जाओगे प्यारे। ये इस तरह सोशल मीडिया से जज करके दोस्ती यारी को दाँव पर लगाना बंद कर दो यार। 🙏
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