Sunday, 28 February 2021

And We Met Again in Udaipur

जैसलमेर से रात 3 बजे बिना सोए 500 से अधिक किलोमीटर गाड़ी चलाकर उदयपुर आना। उदयपुर में बैकपेकर हाॅस्टल बुक करना, और उसी हाॅस्टल में केरल में साथियों का मिल जाना, इत्तफाक शायद इसे ही कहते हैं।

बाकी मैंने कान पकड़ लिया है कि आज के बाद कभी बिना नींद लिए इतना लंबा सफर नहीं करूंगा, आज क्या हुआ कि बाइक चलाते हुए ही झपकी लग रही थी और पता भी नहीं चल रहा था, एक बार तो गाड़ी रोड ट्रैक से बाहर पथरीले रास्ते में चली गई वो तो अच्छा है इस गाड़ी के टायर की ग्रिप अच्छी है तो इसने हमेशा की तरह मुझे बचा लिया, वरना अनहोनी हो जाती।

आज उदयपुर में कुछ लोग और मिले। आज से 90 दिन पहले यानि Day 30 में तुंगनाथ चंद्रशिला ट्रैक पर गया था, वहाँ मुझे अहमदाबाद के विवेक और राधिका मिले थे, कल रात को ही उनके अपडेट से पता चल गया था कि वे एक‌ दिन के लिए उदयपुर आए हैं, हमारी कल ही बात हो गई थी कि उदयपुर में मिलते हैं, ये भी एक गजब इत्तफाक हो गया, उनके साथ की तस्वीर अभी मेरे पास नहीं है, इसलिए उस बारे में अलग से बताऊंगा।


जब मैं इन्हें यानि हमारे केरल के साथियों को उस दिन रात को स्टेशन छोड़ने गया था तो इन्होंने बताया था कि जैसलमेर से अजमेर जा रहे हैं, इससे ज्यादा इस बारे में बात नहीं हुई थी कि आगे कहाँ जाएंगे क्योंकि मेरा भी कोई ऐसे फिक्स प्लान नहीं रहता है कि कब कहाँ जाऊंगा। आज ये लोग उदयपुर में मिल गये, गजब ही हो गया, सच में दिन बन गया, इतना लंबा बाइक चलाने की थकान मानो छूमंतर सी हो गई। ठीक उस दिन की तरह आज रात को इनकी ट्रेन है, यहाँ से आगे जाएंगे। यहाँ से फिर अब हम नहीं मिलेंगे, मैं मध्यप्रदेश की ओर निकल जाऊंगा, और वे महाराष्ट्र की तरफ जाएंगे‌। 


आज सुबह ही मेरे व्हाट्स एप्प में अपडेट को देखकर इन्होंने मैसेज किया कि हम भी उदयपुर में है, आओ मिलो। फिर पता चलता है कि उसी हास्टल में है। मैं जैसे ही पहुंचा, लड़की ने मेरी पीठ थपथापाई और कहा, बहुत बढ़िया बहुत बढ़िया, बिना सोए इतना लंबा सफर किए हो। और किसी परिवार के सदस्य की तरह पहले मुझे खाने के आप्शन के बारे में बताया, फिर मुझे रेस्ट करने को कहा और शाम को मिलने के लिए कहा। 


मैं सो गया था, ठीक-ठाक दो-तीन घंटे की नींद हो गई थी। उठा ही था कि फोन में बार-बार मैसेज का बीप बज रहा था, जैसे ही फोन देखने के लिए उठा सामने मेरी डोरमेट्री में ये दोनों बैक टांगे हुए खड़े मिले कि चलो हम जा रहे हैं हमने ही मैसेज किया है अभी, चैक मत करो और तुम आराम‌ करो। हम बाय कहने आए थे। मैंने कहा रूको मैं आ रहा हूं मेरी नींद हो गई है। उन्होंने पहले ही उदयपुर में बाइक रेंट में ली थी, तो फिर हम अपनी-अपनी बाइक में रेल्वे स्टेशन गये।


रेल्वे स्टेशन में आज हमारी बात किसान आंदोलन को लेकर ही हुई, लड़का अपने किसी काम में व्यस्त था तो हमेशा की तरह हम दोनों की ही बात हुई। ट्रेन आने में एक घंटे का समय था, उन्होंने कहा कि अगर जाना हो तो जा सकते हो, कुछ उदयपुर में घूम लो। मैंने कहा - मेरे लिए लोग तीर्थ हैं, जगह नहीं भाग रहा है, कभी भी देखा सकता है, पत्थर की कलाकृतियों से कहीं अधिक इंसान मेरे लिए मायने रखता है। उन्होंने यह सुनकर फिर दुबारा जाने के लिए नहीं कहा। मुझे ये बात बड़ी अच्छी लगी कि थोड़ी बहुत भाषाई बाध्यता होने के बावजूद हमारी अच्छी चर्चा होती रही, इन कुछ दिनों में बढ़िया बाॅंडिंग जैसी बन गई।


तो किसान वाले मुद्दे को लेकर ही चर्चा हो रही थी, मैंने अपने पूरे एक महीने के अनुभवों को थोड़े में उस लड़की से साझा किया और मूल बातों को उसके सामने रखा। वो यह सुनकर इतनी भावुक हो गई कि उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे, फिर थोड़ी देर बाद शांत हुई तो उसने कहा - इसी देश के लोग इसी देश के लोगों के लिए इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं, मुझे समझ नहीं आता है, इतना कहकर वह चुप सी हो गई। फिर थोड़ी देर बाद उसने मुझे अपने फोन में यूट्यूब खोलकर दिखाया कि वो किसान एकता मोर्चा का चैनल फाॅलो करती है। मुझे यह जानकर बेहद खुशी हुई कि वे अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, दूर से ही सही इस आंदोलन से जुड़े हुए हैं। मैंने पूछा कि किसान एकता मोर्चा के चैनल में अभी तो अधिकतर वीडियो पंजाबी में होते हैं, समझ लेती हो? उसने कहा - हाँ, भाव समझ आ जाते हैं, केरल में लोग खूब पंजाबी और हिन्दी गाने सुनते हैं, मैं तो हिन्दी पढ़ भी लेती हूं, लेकिन कई बार भाव समझ नहीं आते हैं।


जाते-जाते आज  गले‌ मिलने के बाद उन्होंने कहा - We will Miss You, Will Surely visit your place someday.






Thursday, 25 February 2021

A day well spent in Jaisalmer with Malyali People

आज हमारे केरल के इन साथियों को आगे जाना था, रात के दो बजे इनकी ट्रेन थी तो अभी थोड़े देर पहले ही इन्हें बाइक से छोड़कर आया हूं, मैं दो दिन और जैसलमेर में रूकूंगा क्योंकि मरू महोत्सव का असली आकर्षण तो अभी बचा हुआ है।

तो हुआ यूं कि कल जब हम मिले थे तो इन्होंने मेरे भारत भ्रमण के बारे में पूछा और मैंने इन्हें यह भी बताया कि मेरे एक साथी दोस्त ने मेरी तस्वीरों का एलबम बनाकर मुझे दिया है, तो उन्होंने इस बात को पकड़ लिया और लड़की ने तो एलबम देखने की जिद कर ली। एक तस्वीर में आप देख सकते हैं, वो फोटो एलबम सामने है और वे चर्चा करने में मशगूल हैं, इन्होंने इस एलबम की एक एक फोटो को जितने समय तक देखा शायद मैंने भी न देखा होगा, हर तस्वीर को देखने के बाद उसके बारे में मुझसे पूछते और अपनी चीजें भी शेयर करने लग जाते। एलबम को देखते हुए लड़की ने कहा - तुम्हारे दोस्त ने कितनी शिद्दत से और मेहनत से इसे तैयार किया है, इसमें तुम्हारी नई पुरानी सारी तस्वीरें है, कितनी कहानियाँ हैं इसमें, खुशकिस्मत हो तुम।

रात के 12 बजे जब वे स्टेशन जाने के लिए आटो खोजने की बात करने लगे तो मैंने कहा समय व्यर्थ मत करो, मैं तुम लोगों को छोड़कर आ जाता हूं, और दो बार ट्रिप मारके फिर मैं उन्हें रेल्वे स्टेशन तक छोड़कर आया। जब मैंने उनके बैगपैक को उठाया तो दंग रह गया, 20 किलो से ज्यादा ही वजन होगा, साथ में लैपटाॅप वाला बैग भी लेकर चल रहे हैं, साधुवाद है इस जिजीविषा को।

जब हम स्टेशन में बैठे थे तो लड़की ने कहा कि मैं कुर्ते पजामा में बहुत अच्छा लग रहा हूं, मुझे इस ड्रेसिंग सेंस को फाॅलो करते रहना चाहिए। ऐसा कहने के बाद उसने कहा चलो मुझे चाकलेट दो, वो चाकलेट का एड है न उसमें कहते हैं कि जब हम किसी की तारीफ करते हैं तो सामने वाला चाकलेट देता है, मैं कुछ सेकेंड शांत रहा फिर अपने बैग से मैंने किसान वाले बैच निकाले और मैनें उन्हें दिया, साथ में कुछ स्टीकर भी दिए। इन चीजों को देखकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था, उनके चेहरे में एक अलग ही खुशी थी। लड़की ने किसान वाले बैच को तुरंत अपने बैग में लगा लिया। लड़के ने मुझसे टूटी फूटी अंग्रेजी में कहा - तुमने अपना घूमना बंद कर एक महीना आंदोलन में समय दिया, यह बहुत बड़ी बात है, हम कुछ जागरूकता वाला काम नहीं कर रहे हैं, बस घूम रहे हैं, हमने भी सोचा है कि कुछ दिन किसान आंदोलन में जाएंगे।

मेरी गाड़ी में लगे स्टिकर को भी देखते हुए उन्होंने कहा - तुम्हारी सबसे अच्छी चीज यही है, उन्होंने कहा कि मैं बहुत अच्छा काम कर रहा हूं और वे बात से बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं। आगे उन्होंने यह भी कहा (भावुक होते हुए) कि वे इस बात के लिए तकलीफ भी महसूस करते हैं कि भारत के आम लोग इतना बड़ा जन आंदोलन कर रहे हैं, और वे अभी तक उसका हिस्सा नहीं बन पाए हैं। मैंने कहा कि आंदोलन लंबा चलेगा, कभी भी जाकर देख आना, अभी के लिए मन से ही जुड़े रहो।

मुझे फोटो खींचने का ध्यान ही नहीं था, उन्होंने ही मेरा फोन पकड़ा और जाने से पहले सेल्फी खीच ली। मैंने भी जाते-जाते उनकी तस्वीर खींची, लड़की ने किसान वाले बैच को दिखाते हुए ये जो पोज दिया इसे देखकर ही समझा जा सकता है कि वे किसानों के आंदोलन को लेकर क्या महसूस करते हैं।

Day 117






Wednesday, 24 February 2021

Happiness is getting Company of Malyali People

मैंने एक ऐसे कालेज में इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ाई की, जहाँ केरल के लोगों के लिए 50% कोटा था, इसलिए उस कालेज को मिनी केरल भी कहते थे। जब ये केरल के कपल मुझे मिले तो इन्होंने मानो कालेज के दिन याद दिला दिए। ये मुझे परसों खुड़ी गाँव में मिले थे, ये भी मेरे साथ Camel Safari में गये थे और रात उधर ही मरूस्थल में रूके थे। ठिकाना अलग-अलग था लेकिन सुबह हम एक जगह मिल गये। पता चला कि ये दोनों पिछले एक महीने से भारत के अलग-अलग कोने में बैकपैकिंग कर रहे हैं, सगाई हो चुकी है और शादी के ठीक पहले घरवालों को बिना बताए घूमने निकल गये हैं, मैंने कहा - घरवालों को कैसे संभालते हो तो उन्होंने कहा मंतर दे दे देते हैं। ये होता है हिम्मत वाला काम, जमाने को ठेंगा दिखाकर अपने मन की करना। इन्होंने एक गजब की बात कही - "जब हमको पता है हमें साथ रहना है तो हम अभी से ये जिम्मेदारी निभाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसको इस बात से समस्या होनी हो होती रहे, हमें फर्क नहीं पड़ता है। हम अपनी जिंदगी दूसरों की नसीहतों के हिसाब से नहीं जी सकते हैं।"

वैसे मेरे घरवालों को भी अभी तक नहीं पता है कि मैं भारत भ्रमण पर हूं, किसान आंदोलन में था वो बस पता था, कुछ चीजें या हर चीज घरवालों को नहीं बतानी होती है, ये बात ऐसे कपल ही समझ सकते हैं।

ये कपल जब मलयालम में बातें कर रहे थे, तो अपने कालेज के दिनों को याद करते हुए मैंने कहा - " See, Malyali is very tough, you know during my engineering days i have learned only two words - Poda and patti. " और फिर यह सुनकर वे हंसने लग गये‌। पहले दिन मेरी बातें लड़की से ही होती रही, आधे-आधे घंटे तक हम दोनों ही बात करते रहे और लड़का शांत सा बैठा रहता। मुझे एक पल‌ के लिए लगा कि कहीं वो नाराज होकर तो शांत नहीं है फिर मैंने अपनी ओर से बात रखना कम कर दिया। 

परसों 23 Feb को जब हम खुड़ी में थे तो उन्होंने मेरे आगे के प्लान के बारे में पूछा तो मैंने इन्हें बताया कि अभी कल से यानि 24 Feb से जैसलमेर में मरू फेस्टिवल होने वाला है, और मैं कुछ दिन जैसलमेर रहूंगा। यह सुनकर उन्होंने भी मेरी तरह अपना आगे का स्टे बढ़ा लिया और दो दिन के लिए जैसलमेर में रूकने का प्लान बना लिया वरना वे आगे चले जाते, उन्होंने मरू फेस्टिवल के बारे में जानकारी देने के लिए मेरा शुक्रिया अदा किया। 

कल जब हम जैसलमेर में मिले तो लड़की ने मुस्कुराते हुए बताया कि उसका मंगेतर अंग्रेजी ठीक से बोल नहीं पाता है इसलिए थोड़ा चुप रहता है, अपने मंगेतर के सामने उसने यह बात कही मैं उनकी इस सहजता को देखकर खुश हो गया। कल रात के 10 से 12 बजे तक हम वहीं उनके हाॅस्टल में बैठकर बातें करते रहे, हम यानि वो लड़की का मंगेतर तो ज्यादा बात कर नहीं सकता था हम ही दोनों बतिया रहे थे, लेकिन लड़के को इससे कोई समस्या नहीं थी, वह एक अच्छे श्रोता की तरह मुस्कुराते हुए हमारे साथ बना हुआ था। 

जब मैं उनसे मिलने उनके हाॅस्टल गया और जब विदा ले रहा था तो उन्होंने कहा - Da, thanks to you, we are very happy that we get your company. You are most welcome in Kerala.






लंबे समय के लिए समर्थनकर्ता बनें -

किसान आंदोल‌न के साथ सबसे ज्यादा जिम्मेदारी वाली चीज पता है क्या है, एक समर्थन करने वाला भी सोशल मीडिया में #farmersprotest लिख कर सप्ताह भर ट्विट करके तसल्ली नहीं कर सकता है। भारी मन से कह रहा हूं, किसान अभी भी मर रहे हैं, अभी भी आत्महत्याओं का दौर बदस्तूर जारी है, सरकार की ओर से दुर्व्यवहार अभी भी जारी है। सिर्फ कुछ दिन समर्थन दिखाकर, ट्विट कर, पोस्ट लिखकर, नारेबाजी कर, आंदोलन में कुछ दिन शामिल होकर आप इससे छुटकारा नहीं पा सकते हैं। यह बाकी आंदोलनों की तरह नहीं है कि कुछ दिन के लिए आए और चले गये। यह जन आंदोलन है। जन आंदोलन तब तक खत्म नहीं होते हैं, जब तक वे किसी मुकाम को नहीं पा लेते हैं, तो अगर समर्थन भी कर रहे हैं, तो अपने मन मस्तिष्क को एक लंबे समय के समर्थनकारी के रूप में तैयार कर लीजिए।

किसान आंदोलन को तीन महीने पूरे हो चुके हैं, इसके लिए सभी किसान भाईयों को साधुवाद और मृतक किसानों और उनके परिजनों को भावभीनी श्रध्दांजलि।

Sunday, 14 February 2021

Day 80 of Farmers Protest

Farmers Protest 

Day 80

Total Death - 233


किसान आंदोलन को आज दिल्ली में 80 दिन हो चुके हैं, जब 50 दिन हुए थे तो कुल मौतों की संख्या 67 थी। आज 80 दिनों में कुल मौतों की संख्या 233 है यानि पिछले एक महीने में ही 166 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। आप यह कहेंगे कि आंदोलन में आने वाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है, इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि ज्यादा लोग आ गये हैं इसलिए मृत्यु की संख्या बढ़ी है। मैं पिछले एक महीने से हर दिन कोरोना वेबसाइट देखने की तरह रोज मृत्यु के आँकड़ों की एक विश्वसनीय वेबसाइट है उसे देखता आ रहा हूं। जिनकी मौतें हुई हैं उसमें अधिकतर ऐसे लोग हैं जो इस आंदोलन में पहले दिन से जुड़े हुए हैं और उसमें भी अधिकतर लोगों की मौत का पहला बड़ा कारण हार्ट अटैक है और दूसरा बड़ा कारण ठंड है। 

हम कितनी भी सुविधा खड़ी कर लें सड़क में सोना और घर में सोना दोनों बहुत अलग चीज है, वह भी सड़क में अपनी माँगों को लेकर आना, मानसिक शारीरिक अपमान, प्रताड़नाएँ झेलते हुए टिके रहना। आप मानसिक शारीरिक दोनों तरीके से थक रहे होते हैं, मानसिक रूप से प्रताड़ित होते रहते हैं तो शरीर पर भी इसका प्रभाव लगातार पड़ता रहता है। इतने सारे लोग हार्ट अटैक से ही क्यों मर रहे हैं, इस पर भी एक बार सोचिएगा। सरकार से कहिएगा कि डायग्नोसिस करवाए और पता करवाए कि इनके ह्रदयघात के पीछे आखिर क्या कारण था। एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार से अपने ही देश के नागरिकों के लिए इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है।

महीने भर से लगातार आंदोलन स्थल में जा रहा था तो मैं भी उनके बीच का ही हो गया था, तो मुझे भी यह चीज महसूस होने लगी। ये जो बहस, ये नकारात्मकता, टीवी में और सोशल मीडिया में लोगों की ये हिंसा, कई बार यह सब देखकर मन मसोस कर चुप हो जाने का मन करता। कितने बार आँसू आने वाली स्थिति हुई, अब बताने का कोई तुक नहीं। कुछ दिन के लिए अपने दोस्त के घर चला गया था, तब मुझे समझ आया कि अधिकतर किसान रोटेशन में आना जाना क्यों करते हैं। दोस्त के घर गया, वहाँ मेरे दोस्त ने कुछ इसी तरीके की बात कही कि बस शरीर से उसके घर घूमने आया हूं, मन से आंदोलन स्थल में ही हूं। दोस्त ने यह भी कहा कि मुझे इतना नहीं सोचना चाहिए। मैं कोशिश कर रहा हूं कि दोस्त की बात रख लूं और उस भाव से बाहर आ जाऊं।

और जिस तरीके से सरकारी मशीनरी और मीडिया की ओर से हिंसा का प्रवाह अनवरत जारी है, उसे देखकर किसी का भी मन बिखर जाएगा कि कोई कैसे अपने ही देश के लोगों पर जो शांतिपूर्ण तरीके से अपनी माँग रखने के लिए आज सड़कों पर हैं, उन्हें देशद्रोही आतंकवादी कह देता है, उन पर इतनी बर्बरता से हिंसा करता है। भले कुछ लोग बदले में सरकार को सोशल मीडिया के माध्यम से जवाब देने की कोशिश करते हैं, मजाक बना लेते हैं लेकिन कुछ लोग होते हैं जो यह सब देख देखकर खामोश होते रहते हैं, और एक दिन वे इतने खामोश हो जाते हैं कि फिर कभी हमें दिखाई नहीं देते हैं।

#FarmersProtest




Saturday, 13 February 2021

वे नहीं रोक सकते किसानों को -

 किसानों के आंदोलन को कुचलने के लिए वे बहुत कुछ करेंगे -

- आंसू गैस के गोले दागेंगे,

- वाटर कैनन से पानी की तेज बौछार करेंगे,

- वे लोहे की बेरिकेटिंग लगाएंगे,

- वे कंटीले तार बिछाएंगे, लोहे की छड़े लगाएंगे,

- वे पत्थर बरसाएंगे, वे लाठी से मारेंगे, तमाम तरह की हिंसा करेंगे,

- वे किसानों को आतंकवादी, खलिस्तानी, देशद्रोही कहेंगे,

- वे परजीवी, आंदोलनजीवी कहकर भी मजाक उड़ाएंगे,

- कुछ इस तरह वे इस आंदोलन को बदनाम करने के लिए बहुत तरीके अपनाएंगे..



लेकिन, लेकिन कुछ चीजें वे कभी नहीं कर सकते...

- वे नहीं खत्म कर सकते हैं सेवाभाव को, इस लंगर की संस्कृति को। 

- वे नहीं मना कर सकते लोगों को एक दूसरे का सुख-दु:ख महसूसने से, प्रेम करने से।

- वे नहीं रोक सकते हैं, इस देश के लोगों को इंसानियत का महल खड़ा करने से।

Tuesday, 9 February 2021

Day 101 of all india solo winter ride

Gannaur to Bhatinda

Total travel - 320+ kms.

आज भटिंडा आते समय संगरूर के पास रूका था। किसान वाला जो झंडा लगाया था, उसकी पकड़ ढीली हो गई थी तो बाँध रहा था, उतने ही समय प्राइमरी स्कूल के बच्चों की एक बस गुजरी, बस की खिड़की से एक बच्चे ने सिर निकालते हुए मुझे झंडे के साथ देखा और मुस्कुराया फिर जोर से किसान एकता जिंदाबाद के नारे लगाया, साथ ही उस बस में बैठे बाकी बच्चों ने भी जिंदाबाद कहा।

आज 320 किलोमीटर का लंबा सफर था इसलिए जनसंपर्क ज्यादा नहीं हो पाया। बाकी गाड़ी में झंडा बांधकर चलने में थोड़ा सा रिस्क है, क्योंकि किसानों के खिलाफ जिस तरह का देश में माहौल है कहीं किसान विरोधी गुट घेर के तोड़ फोड़ ना कर दे। फिर भी इतना रिस्क लिया जा सकता है क्योंकि मुझे इसमें यह भी लगता है कि जब तक हम खुद किसी को हिंसा का मौका नहीं देते, कोई हमारे साथ हिंसा नहीं कर सकता है, अपवाद घटनाओं की बात अलग है। गाड़ी में एक दो झंडे और स्टीकर लगने अभी बाकी हैं। साथ ही बहुत से पोस्टर स्टीकर बैच लेकर चलने की योजना है ताकि जो भी आमजन या किसान भाई रास्ते में मिले, उनसे मिला जाए और उत्साहवर्धन के लिए उन्हें एक भेंट रूप में यह दिया जाए, बाकी बुकलेट का काम भी कुछ दिन में हो जाएगा। किसान देश के लिए इतना कुछ करता है, उनके लिए इतना तो किया ही जा सकता है।

अभी एक दो दिन पंजाब में हूं। आज से सात महीने पहले यह आंदोलन जहाँ से शुरू हुआ उस मिट्टी को महसूस करने आया हूं। यहाँ की मिट्टी अपने बैग में लेकर चलूंगा, जब तक मेरी गाड़ी चलेगी, ये मिट्टी मेरे बैग में आखिर तक मेरे साथ रहेगी। इस मिट्टी को साथ लेकर पूरे देश में इस आंदोलन के ताप को पहुंचाया जाएगा।


#farmersprotest

#allindiasolowinterride2020

Wednesday, 3 February 2021

Rihanna vs. Indian Celebrities

सुनील शेट्टी, अक्षय कुमार, सुरेश रैना, अजय देवगन, शिखर धवन, अनिल कुंबले, रवि शास्त्री, रूद्रप्रताप सिंह, विराट कोहली, सचिन तेंदुलकर and so on...

सहूलियत के लिए तीन डाट लगा दिया हूं, कोई नया नाम हो तो जोड़ लीजिएगा।


ये चंद नाम हैं, सीधी बात कहें तो इन सब ने सरकार का समर्थन किया क्योंकि अंतराष्ट्रीय मंच पर नाक कट रही थी, लेकिन नाक तो कट ही रही है, कौन सा इन सेलिब्रिटियों के आ जाने से नाक कटना बंद हो जाएगा। 


इस घटनाक्रम में एक झोल है, ऊपर जितने भी सेलिब्रिटी लोग हैं, इन्हें कंगना रनौत जैसी मुखर अभिनेत्रियों से कुछ सीखना चाहिए। मुझे जो चीज समझ नहीं आ रही वो ये कि ये तमाम अवसरवादी लोग इतने दिन से आखिर थे कहाँ , जब दूसरे देशों के लोग जिन्हें External Forces कहा गया, उन्होंने याद दिलाया तभी इनको याद आया कि भारत में किसान अपनी माँगों को लेकर धरना दे रहे हैं, इससे पहले कहाँ भांग पीकर सो रहे थे चोट्टों। उस एक सिंगर के ट्विट से ही तुमको याद आया क्या कि राष्ट्रभक्ति का झंडा बुलंद करना है। तब कहाँ थे जब इस देश के भीतर दो दो बार्डर बन रहे थे, तब तुमको भारत की संप्रभुता दिखाई नहीं दी, संप्रभुता की बात करेंगे गिरगिट कहीं के। इनको उस कंगना का ट्विट तक नहीं दिखा, जो लगातार किसानों को आतंकवादी कह रही हैं। मैं कंगना को इस मामले में इन ढोंगी लोगों से कहीं अधिक ईमानदार मानता हूं, भले नीचता के स्तर पर जाकर किसानों के लिए बुरा भला कह रही हैं लेकिन कम से कम उनका अपना स्टैण्ड क्लियर तो है। इनकी तरह कम से कम उनके पेट में दाँत तो नहीं है।


प्यारे तथाकथित सेलिब्रिटियों, इस बार बिल से बाहर आने के लिए तुम्हारा शुक्रिया तो बनता है, तुम्हारा सम्मान तो आने वाला समय करेगा। करो समर्थन लेकिन इस तरह भीगी बिल्ली की तरह मत करो, राष्ट्रभक्ति की आड़ लेकर मत करो, कम से कम संप्रभुता की दुहाई तो मत ही दो, खुलकर सामने आओ, ये बीच वाला काम मत करो, कंगना और अर्नब की तरह रेगुलर रहो ताकि इस देश के लोग आपको लेकर थोड़े और स्पष्ट हो जाएं कि तुम्हारा स्तर क्या है।