मोहित का अपना एक स्टडी टेबल है।
स्टडी टेबल के ठीक सामने उसने अपने दिनचर्या के हिसाब से एक टाइम टेबल चिपकाया है।मोहित का दिनचर्या कुछ ऐसा हो गया कि घर में बैठे-बैठे अब उसके गाल कद्दू जैसे हो गये हैं, गला भर आया है।वैसे हर नौजवान लड़के के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब वो फूलने लगता है..मोहित भी इसी दौर से गुजर रहा था, स्वेज नहर इतनी तेजी से चौड़ा नहीं हो पा रहा है जितनी तेज गति से मोहित के कमर की चौड़ाई बढ़ रही है।
लेकिन आज कुछ बदला है,कुछ नया हुआ है, टाइम टेबल के ठीक बाजू में उसने एक और नया टाइम टेबल लगाया है, ये टाइम टेबल पढ़ाई का नहीं बल्कि किसी को देखने का है, एक ऐसा रिमांइडर जो मोहित के खुशी की वजह है।उसके घर के पड़ोस में रहने वाली आंटी जो उससे उम्र में लगभग दुगुनी होगी लेकिन जिसे वो रोज सुबह उठते ही देखना पसंद करता है।
तो अपनी इस खुशी को बांधे रखने के लिए उसने एक समय सारणी बना ली है..पहला समय सुबह 6:30 से लेकर 7:00 बजे का है..जब वो कचरा फेंकने बाहर जाती है और छत में कपड़े सुखाने आती है।दूसरा एक समय शाम का है जब वो आंटी अपने घर के चौपाल पर कुछ देर बैठती है।मोहित रोज पूरी तल्लीनता से सुबह और शाम उस आंटी को देखता..वो आंटी थी भी इतनी खूबसूरत...ये सिलसिला महीनों तक चलता रहा।इतने दिनों में उसकी चाह में न तो कोई बढ़ोत्तरी हुई न ही उसने कभी कोई कमी महसूस की।एक ऐसी प्रीति ने जन्म ले लिया था या एक ऐसा लगाव कह सकते हैं जो बदले में कुछ भी नहीं चाहता।कुछ इस तरह मोहित ने खुद को एक सीमितता में ढाल लिया था।सुबह और शाम के अपने तय समय के अलावा वो उनके घर पर या छत पर झांकना भी पसंद न करता।
इस बीच मोहित के साथ कुछ ऐसा घटा कि उसने कुछ दिन से उस आंटी को देखना ही बंद कर दिया..उसने वो टाइम टेबल भी फाड़कर फेंक दिया जो आंटी को देखने के लिए उसने लगाया था।
पूरी घटना ये है कि कुछ दिन पहले जब आंटी कचरा फेंकने गई तो जब कचरा फेंककर वापस आ रही थी उसी समय एक बूढ़ा वहां से गुजरा था, उसका बीस रूपये का नोट वहां गिर गया था..आंटी ने आव देखा न ताव, तुरंत वो बीस रुपए उठा लिया..और अपने घर के अंदर चली गई।कुछ मिनटों बाद जब वो बूढ़ा उस गली को वापस लौटा तो वो रास्ते भर देखता रहा कि कहीं मेरे पैसे यहां तो नहीं गिर गये...फिर वो बूढ़ा उस आंटी के घर पर झांकते हुए गुजरा..वो कुछ इस तरह से झांका मानो उसे इस बात का यकीन हो कि रूपया इसी घर की महिला ने उठा लिया हो।इतनी सुबह वैसे भी गली मोहल्ले में उतनी चहलकदमी न थी तो उस बूढ़े का शक करना भी जायज था।मोहित ये सब देखकर सन्न रह गया।जिस खूबसूरती को वो इतने अपनेपन से निहारता था..आज उसे वो देखना भी नहीं चाहता था।सच ही है कि हमारा जिससे भी जुड़ाव होता है, जो हमारे लिए खुशी की वजह है उसकी ऐसी छोटी-छोटी गलतियां हमें चोट तो पहुंचाती ही हैं।वैसे तो ये बीस रूपये की एक सामान्य सी चोरी थी लेकिन इस एक घटना ने मोहित को हिला कर रख दिया था।
इस घटना को हुए लगभग एक महीना हो चुका था।एक दिन मोहित के दिमाग में ख्याल आया।वो दोपहर को एक लंबा सा डंडा लेकर अपने छत में चला गया चूंकि आंटी का घर ठीक उसके घर से सटा हुआ था तो उसने आंटी के छत से सूखते कपड़ों में से एक कपड़ा डंडे से खींच लिया..या यूं कहे चुरा लिया।अब उस कपड़े को उसने अगले दिन वापस आंटी के छत पर फेंक दिया..साथ ही उसने उस कपड़े में सेलो टेप से एक कागज चिपका दिया जिसमें उसने लिखा था कि "चोरी करना पाप है।" छत पर सुखाये कपड़ों को लेने के लिए कभी उस आंटी की सास आ जाती तो कभी आंटी आ जाती तो कभी कोई और..।मोहित हर रोज ध्यान नहीं दे पाता कि कौन सुखे कपड़े लेने आ रहा है।इसलिए अब उसने ये काम जारी रखा वो हर कुछ दिन के अंतराल में डंडे से कपड़े खींचता..आप सोच रहे होंगे कि क्लिप लगाकर कपड़े सुखाते होंगे फिर मोहित कैसे कपड़े कैसे चुरा लेता था।अरे भई मोहित तो एक्सपर्ट था..इतनी हालीवुड फिल्में देखता था..डंडे में हुक फंसा के क्लिप हटाकर कपड़े चुरा लेना उसके लिए तो मानो बायें हाथ का खेल था।
मोहित अधिकतर उन कपड़ों को चुराता जो छोटे आकार के होते या जो सबसे सुंदर होते..और फिर सेलो टेप से एक छोटा सा कागज उस पर बड़ी सावधानी से चिपकाता जिससे कपड़ों को भी नुकसान न पहुंचे।हमेशा कागज में कुछ वाक्य लिख देता जैसे कि :-
1)"सभी कर्मों का फल यहीं मिलना है, स्वर्ग नर्क की बातें फिजूल है।"
2)"ईश्वर से डरो,कुदरत बहुत बेदर्द है..किसी को नहीं बख्शती।"
3)"ऐसा कोई काम मत करो..जो आपका कुशलमंगल चाहने वालों को अप्रिय लगे।"
4)"एक स्त्री का व्यक्तित्व उसकी सुंदरता से भी बड़ा गहना है।"
कभी जब कुछ नहीं सूझता तो गूगल से चोरी न करने की सीख देने वाले कुछ वाक्य खोजकर लिख देता।और इस बीच कभी कभी आंटी को देख भी लेता कि उनमें कोई बदलाव आया या नहीं, उन्हें अपनी गलती महसूस हुई या नहीं..चेहरे में वही पुराने भाव, हर बार उसे निराशा हाथ लगती।
अब वो कुछ दिन के लिए शांत हो गया..न कोई कपड़े चुराए न ही कोई बात लिखी..अपनी पढ़ाई में लगा रहा। और हफ्ते भर के बाद उसने फैसला किया कि ये आखिरी बार है..अब इसके बाद न मैं मुड़कर उस आंटी को देखूंगा न ही अब कोई कपड़े चुराऊंगा।इस बार उसने छांटकर आंटी के सलवार सूट को ही चुराया...आज वो आंसुओं में था..वो एक मिनट के लिए भी उस कपड़े को अपने पास नहीं रखना चाहता था। उसने इस बार कोई कागज नहीं चिपकाया फिर भी इतना सेलो टेप इस्तेमाल किया कि किसी को भी मश्क्कत करनी पड़ जाये और आखिरकार उसने कपड़े में बीस रुपए का एक नोट चिपकाकर उसी दिन वापस फेंक दिया।
स्टडी टेबल के ठीक सामने उसने अपने दिनचर्या के हिसाब से एक टाइम टेबल चिपकाया है।मोहित का दिनचर्या कुछ ऐसा हो गया कि घर में बैठे-बैठे अब उसके गाल कद्दू जैसे हो गये हैं, गला भर आया है।वैसे हर नौजवान लड़के के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब वो फूलने लगता है..मोहित भी इसी दौर से गुजर रहा था, स्वेज नहर इतनी तेजी से चौड़ा नहीं हो पा रहा है जितनी तेज गति से मोहित के कमर की चौड़ाई बढ़ रही है।
लेकिन आज कुछ बदला है,कुछ नया हुआ है, टाइम टेबल के ठीक बाजू में उसने एक और नया टाइम टेबल लगाया है, ये टाइम टेबल पढ़ाई का नहीं बल्कि किसी को देखने का है, एक ऐसा रिमांइडर जो मोहित के खुशी की वजह है।उसके घर के पड़ोस में रहने वाली आंटी जो उससे उम्र में लगभग दुगुनी होगी लेकिन जिसे वो रोज सुबह उठते ही देखना पसंद करता है।
तो अपनी इस खुशी को बांधे रखने के लिए उसने एक समय सारणी बना ली है..पहला समय सुबह 6:30 से लेकर 7:00 बजे का है..जब वो कचरा फेंकने बाहर जाती है और छत में कपड़े सुखाने आती है।दूसरा एक समय शाम का है जब वो आंटी अपने घर के चौपाल पर कुछ देर बैठती है।मोहित रोज पूरी तल्लीनता से सुबह और शाम उस आंटी को देखता..वो आंटी थी भी इतनी खूबसूरत...ये सिलसिला महीनों तक चलता रहा।इतने दिनों में उसकी चाह में न तो कोई बढ़ोत्तरी हुई न ही उसने कभी कोई कमी महसूस की।एक ऐसी प्रीति ने जन्म ले लिया था या एक ऐसा लगाव कह सकते हैं जो बदले में कुछ भी नहीं चाहता।कुछ इस तरह मोहित ने खुद को एक सीमितता में ढाल लिया था।सुबह और शाम के अपने तय समय के अलावा वो उनके घर पर या छत पर झांकना भी पसंद न करता।
इस बीच मोहित के साथ कुछ ऐसा घटा कि उसने कुछ दिन से उस आंटी को देखना ही बंद कर दिया..उसने वो टाइम टेबल भी फाड़कर फेंक दिया जो आंटी को देखने के लिए उसने लगाया था।
पूरी घटना ये है कि कुछ दिन पहले जब आंटी कचरा फेंकने गई तो जब कचरा फेंककर वापस आ रही थी उसी समय एक बूढ़ा वहां से गुजरा था, उसका बीस रूपये का नोट वहां गिर गया था..आंटी ने आव देखा न ताव, तुरंत वो बीस रुपए उठा लिया..और अपने घर के अंदर चली गई।कुछ मिनटों बाद जब वो बूढ़ा उस गली को वापस लौटा तो वो रास्ते भर देखता रहा कि कहीं मेरे पैसे यहां तो नहीं गिर गये...फिर वो बूढ़ा उस आंटी के घर पर झांकते हुए गुजरा..वो कुछ इस तरह से झांका मानो उसे इस बात का यकीन हो कि रूपया इसी घर की महिला ने उठा लिया हो।इतनी सुबह वैसे भी गली मोहल्ले में उतनी चहलकदमी न थी तो उस बूढ़े का शक करना भी जायज था।मोहित ये सब देखकर सन्न रह गया।जिस खूबसूरती को वो इतने अपनेपन से निहारता था..आज उसे वो देखना भी नहीं चाहता था।सच ही है कि हमारा जिससे भी जुड़ाव होता है, जो हमारे लिए खुशी की वजह है उसकी ऐसी छोटी-छोटी गलतियां हमें चोट तो पहुंचाती ही हैं।वैसे तो ये बीस रूपये की एक सामान्य सी चोरी थी लेकिन इस एक घटना ने मोहित को हिला कर रख दिया था।
इस घटना को हुए लगभग एक महीना हो चुका था।एक दिन मोहित के दिमाग में ख्याल आया।वो दोपहर को एक लंबा सा डंडा लेकर अपने छत में चला गया चूंकि आंटी का घर ठीक उसके घर से सटा हुआ था तो उसने आंटी के छत से सूखते कपड़ों में से एक कपड़ा डंडे से खींच लिया..या यूं कहे चुरा लिया।अब उस कपड़े को उसने अगले दिन वापस आंटी के छत पर फेंक दिया..साथ ही उसने उस कपड़े में सेलो टेप से एक कागज चिपका दिया जिसमें उसने लिखा था कि "चोरी करना पाप है।" छत पर सुखाये कपड़ों को लेने के लिए कभी उस आंटी की सास आ जाती तो कभी आंटी आ जाती तो कभी कोई और..।मोहित हर रोज ध्यान नहीं दे पाता कि कौन सुखे कपड़े लेने आ रहा है।इसलिए अब उसने ये काम जारी रखा वो हर कुछ दिन के अंतराल में डंडे से कपड़े खींचता..आप सोच रहे होंगे कि क्लिप लगाकर कपड़े सुखाते होंगे फिर मोहित कैसे कपड़े कैसे चुरा लेता था।अरे भई मोहित तो एक्सपर्ट था..इतनी हालीवुड फिल्में देखता था..डंडे में हुक फंसा के क्लिप हटाकर कपड़े चुरा लेना उसके लिए तो मानो बायें हाथ का खेल था।
मोहित अधिकतर उन कपड़ों को चुराता जो छोटे आकार के होते या जो सबसे सुंदर होते..और फिर सेलो टेप से एक छोटा सा कागज उस पर बड़ी सावधानी से चिपकाता जिससे कपड़ों को भी नुकसान न पहुंचे।हमेशा कागज में कुछ वाक्य लिख देता जैसे कि :-
1)"सभी कर्मों का फल यहीं मिलना है, स्वर्ग नर्क की बातें फिजूल है।"
2)"ईश्वर से डरो,कुदरत बहुत बेदर्द है..किसी को नहीं बख्शती।"
3)"ऐसा कोई काम मत करो..जो आपका कुशलमंगल चाहने वालों को अप्रिय लगे।"
4)"एक स्त्री का व्यक्तित्व उसकी सुंदरता से भी बड़ा गहना है।"
कभी जब कुछ नहीं सूझता तो गूगल से चोरी न करने की सीख देने वाले कुछ वाक्य खोजकर लिख देता।और इस बीच कभी कभी आंटी को देख भी लेता कि उनमें कोई बदलाव आया या नहीं, उन्हें अपनी गलती महसूस हुई या नहीं..चेहरे में वही पुराने भाव, हर बार उसे निराशा हाथ लगती।
अब वो कुछ दिन के लिए शांत हो गया..न कोई कपड़े चुराए न ही कोई बात लिखी..अपनी पढ़ाई में लगा रहा। और हफ्ते भर के बाद उसने फैसला किया कि ये आखिरी बार है..अब इसके बाद न मैं मुड़कर उस आंटी को देखूंगा न ही अब कोई कपड़े चुराऊंगा।इस बार उसने छांटकर आंटी के सलवार सूट को ही चुराया...आज वो आंसुओं में था..वो एक मिनट के लिए भी उस कपड़े को अपने पास नहीं रखना चाहता था। उसने इस बार कोई कागज नहीं चिपकाया फिर भी इतना सेलो टेप इस्तेमाल किया कि किसी को भी मश्क्कत करनी पड़ जाये और आखिरकार उसने कपड़े में बीस रुपए का एक नोट चिपकाकर उसी दिन वापस फेंक दिया।
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