सविता गर्मियों की छुट्टियां मनाने अपने मामा घर जा रही थी।और जब जा रही थी तो उसे अपने तुलसी के पौधे की चिंता खाये जा रही थी, ये वही तुलसी का पौधा है जिसे वो रोज सुबह छत पर जाकर पानी डालती है। अब शहरों में जगह कम होने की वजह से सारे गमले और तुलसी के पौधे सब छत में ही होते हैं।
सविता घर से जाते हुए यही सोच रही थी कि इसे कौन पालेगा, ये तो इस गर्मी में मर न जाये...घर का और कोई दूसरा सदस्य तो पानी भी नहीं डालता..एक मैं ही हूं जो रोज इनकी देखभाल कर रही हूं पता नहीं क्या होगा अब इनका।
सविता की चिंता तो ठीक वैसी ही थी जैसे एक मां की होती है, मां जब कुछ दिन के लिए अपने मायके जाती है तो बच्चों को पहले आधे घंटे तक समझाती है कि यहां पर चावल है, दालें इस डब्बे में रखी हुई हैं, मसाले यहां रखे हैं साथ ही और भी तरह तरह की जानकारी जो हमें पता भी नहीं होती। आगे मां कहती जाती है कि पानी रोज टाइम पर भर लेना, कहीं भी जाओ तो सारे खिड़की दरवाजे अच्छे से बंद करना, सब तरफ ठीक से ताले लगाकर सोना..साफ सफाई रखना वगैरह वगैरह।
और घर से जब निकल रही होती है तो फिर एक बार अपनी सारी बातें जल्दी-जल्दी दोहराने लगती है।
सविता को समझ न आया कि वो किसे बोले, घर के सारे लोग तो अपने-अपने काम में सुबह निकल ही जाते हैं, मम्मी-पापा अपने आफिस चले जाते हैं और छोटा भाई तो सुबह से स्कूल चला जाता है।कोई ऐसा नहीं दिखा जो इन पौधों की सुधी ले सके या जिसे वो बोल सके इसलिए उसने अपनी ये छोटी सी चिंता अपने तक ही रखी, किसी ने जिक्र न किया।सोचती रही कि ये पौधे पिछले गर्मियों की तरह फिर से मुरझा जायेंगे।
जून का महीना, सविता मामा घर से वापस अपने घर लौट आई थी। घर में कदम रखा ही न था कि तुरंत अपना बैग ज्यों का त्यों वहीं टेबल पर रखकर दौड़ते छत में गई। जैसे ही वो छत पर पहुंची..देखते ही उसने एक हाथ से अपना मुंह ढंक लिया, एक अद्भुत आश्चर्य जिसने उसके चेहरे पर एक नया रंग बिखेर दिया था। दो फूलों के गमले और एक तुलसी का पौधा सब लहलहा रहे थे। वो ये सब देखकर खुशी से झूम उठी।नीचे उतरकर अपनी मां से कहा- मम्मी क्या बात है आजकल पूजा हो रही है क्या तुलसी के पौधे की।मम्मी ने कहा- नहीं तो, तेरे जाने के बाद तो इस एक महीने में छत भी नहीं गई, ये कमर का दर्द जो मुझे खाये जा रहा है अब तो कपड़े यहीं बरामदे में ही सुखा लेती हूं।
सविता को आश्चर्य हुआ कि ये कैसे हो सकता है। उसने तो तुलसी के पौधे के पास जाकर देखा था, मिट्टी गीली भी था, मतलब साफ था कि कोई तो है जो मेरे पौधों पर रोज पानी डाल रहा है। उसने मम्मी से पूछ लिया था..पापा तो कभी ये सब चीजों में ध्यान देते नहीं इसलिए उसने पापा से इसका जिक्र भी न किया..अब रह गया छोटा भाई, उसने छोटे भाई को इशारों में पूछा तो उसने भी मना कर दिया।
अब सविता उलझन में पड़ गई। अब जब भी वो सुबह पानी डालने जाती तो एक बार जरूर सोचती कि किसने मेरे पौधे की देखभाल की। वो इसलिए भी सोचती क्योंकि एक दो बार सुबह उसके पूजा करने और पौधों में पानी डालने से पहले ही कोई उन पौधों में पानी डालता था।चूंकि उसके पापा बड़े सबेरे उठकर चलने जाते थे तो उसे लगा कि शायद पापा भी हो सकते हैं इसमें कोई बड़ी बात तो है नहीं और धीरे-धीरे उसने इस बात पर ध्यान देना छोड़ दिया।
अचानक एक दिन उसे याद आया कि पहली मंजिल में तो उन्होंने कालेज के दो लड़कों को कमरे किराए पर दिये हैं। उसे शक हुआ कि कहीं इन भैया लोगों ने तो पानी नहीं डाला। उसका शक उस दिन यकीन में बदल गया जब वो छत जा रही थी तो उसने देखा कि उन दोनों लड़कों में से एक लड़का लोटे से गमले पर पानी डाल रहा था, सविता छुपकर ये सब देख रही थी और फिर वह तुरंत नीचे चली गई। उसकी उलझन दूर हो चुकी थी, अब वो निश्चिंत हो गई कि इस भैया ने इतने दिन तक पानी डाला होगा मेरे पौधों पर। लेकिन वो गलत थी जिस लड़के को उसने देखा वो तो पहली बार पौधे पर प्लास्टिक के मग से पानी डाल रहा था वो भी इसलिए कि उस मग में पानी भरा पड़ा हुआ था।
फिर एक दिन जब वो छत पर जा रही थी तो जो दूसरा लड़का था वो उसी समय उतर रहा था और साथ ही उसके हाथ में एक पीतल का लोटा था। सविता का इस बात पर ध्यान ही नहीं गया शायद इसलिए भी नहीं गया क्योंकि वो तो प्रथम दृष्टया देखकर पहले ही अपने निष्कर्ष पर पहुंच चुकी थी, एक ऐसा निष्कर्ष जो सिवाय एक गलतफहमी के और कुछ भी नहीं था। कुछ इस तरह महीनों बीत गए।
दीवाली की छुट्टियाँ खत्म हो चुकी थी, किराए में रहने वाले वे दोनों लड़के भी घर से वापस आ चुके थे। तुलसी पूजा का दिन आ गया था।सविता और उसकी माता ने छत पर गन्ने सजा लिए, गन्ने के पौधे के बीच तुलसी का पौधा विराजमान हो चुका था..रंगोली बन चुकी थी..साथ ही सविता ने अरिपन(चावल के आटे से बनी कलाकृति)भी तैयार कर लिया था..पूजा की सारी तैयारी लगभग पूरी हो गई। सविता की मां ने अपने बेटे को कहा कि जा वो दोनों भैया लोग को भी बुला ले। जो लड़का सही में इतने महीनों से पानी डाल रहा था उसने पूजा में शामिल होने से मना कर दिया..कुछ बहाना बनाकर बाहर घूमने चला गया ताकि किसी को बुरा भी न लगे..और जिस लड़के ने कभी पानी नहीं डाला था..वो तुलसी पूजा में सविता के परिवार के साथ था। और सविता की अपनी गलतफहमी और दृढ़ हो गई कि जिस भैया ने मेरे तुलसी पौधे को इतने दिन सहेजा, वो आज तुलसी पूजा में साथ हैं।
सविता घर से जाते हुए यही सोच रही थी कि इसे कौन पालेगा, ये तो इस गर्मी में मर न जाये...घर का और कोई दूसरा सदस्य तो पानी भी नहीं डालता..एक मैं ही हूं जो रोज इनकी देखभाल कर रही हूं पता नहीं क्या होगा अब इनका।
सविता की चिंता तो ठीक वैसी ही थी जैसे एक मां की होती है, मां जब कुछ दिन के लिए अपने मायके जाती है तो बच्चों को पहले आधे घंटे तक समझाती है कि यहां पर चावल है, दालें इस डब्बे में रखी हुई हैं, मसाले यहां रखे हैं साथ ही और भी तरह तरह की जानकारी जो हमें पता भी नहीं होती। आगे मां कहती जाती है कि पानी रोज टाइम पर भर लेना, कहीं भी जाओ तो सारे खिड़की दरवाजे अच्छे से बंद करना, सब तरफ ठीक से ताले लगाकर सोना..साफ सफाई रखना वगैरह वगैरह।
और घर से जब निकल रही होती है तो फिर एक बार अपनी सारी बातें जल्दी-जल्दी दोहराने लगती है।
सविता को समझ न आया कि वो किसे बोले, घर के सारे लोग तो अपने-अपने काम में सुबह निकल ही जाते हैं, मम्मी-पापा अपने आफिस चले जाते हैं और छोटा भाई तो सुबह से स्कूल चला जाता है।कोई ऐसा नहीं दिखा जो इन पौधों की सुधी ले सके या जिसे वो बोल सके इसलिए उसने अपनी ये छोटी सी चिंता अपने तक ही रखी, किसी ने जिक्र न किया।सोचती रही कि ये पौधे पिछले गर्मियों की तरह फिर से मुरझा जायेंगे।
जून का महीना, सविता मामा घर से वापस अपने घर लौट आई थी। घर में कदम रखा ही न था कि तुरंत अपना बैग ज्यों का त्यों वहीं टेबल पर रखकर दौड़ते छत में गई। जैसे ही वो छत पर पहुंची..देखते ही उसने एक हाथ से अपना मुंह ढंक लिया, एक अद्भुत आश्चर्य जिसने उसके चेहरे पर एक नया रंग बिखेर दिया था। दो फूलों के गमले और एक तुलसी का पौधा सब लहलहा रहे थे। वो ये सब देखकर खुशी से झूम उठी।नीचे उतरकर अपनी मां से कहा- मम्मी क्या बात है आजकल पूजा हो रही है क्या तुलसी के पौधे की।मम्मी ने कहा- नहीं तो, तेरे जाने के बाद तो इस एक महीने में छत भी नहीं गई, ये कमर का दर्द जो मुझे खाये जा रहा है अब तो कपड़े यहीं बरामदे में ही सुखा लेती हूं।
सविता को आश्चर्य हुआ कि ये कैसे हो सकता है। उसने तो तुलसी के पौधे के पास जाकर देखा था, मिट्टी गीली भी था, मतलब साफ था कि कोई तो है जो मेरे पौधों पर रोज पानी डाल रहा है। उसने मम्मी से पूछ लिया था..पापा तो कभी ये सब चीजों में ध्यान देते नहीं इसलिए उसने पापा से इसका जिक्र भी न किया..अब रह गया छोटा भाई, उसने छोटे भाई को इशारों में पूछा तो उसने भी मना कर दिया।
अब सविता उलझन में पड़ गई। अब जब भी वो सुबह पानी डालने जाती तो एक बार जरूर सोचती कि किसने मेरे पौधे की देखभाल की। वो इसलिए भी सोचती क्योंकि एक दो बार सुबह उसके पूजा करने और पौधों में पानी डालने से पहले ही कोई उन पौधों में पानी डालता था।चूंकि उसके पापा बड़े सबेरे उठकर चलने जाते थे तो उसे लगा कि शायद पापा भी हो सकते हैं इसमें कोई बड़ी बात तो है नहीं और धीरे-धीरे उसने इस बात पर ध्यान देना छोड़ दिया।
अचानक एक दिन उसे याद आया कि पहली मंजिल में तो उन्होंने कालेज के दो लड़कों को कमरे किराए पर दिये हैं। उसे शक हुआ कि कहीं इन भैया लोगों ने तो पानी नहीं डाला। उसका शक उस दिन यकीन में बदल गया जब वो छत जा रही थी तो उसने देखा कि उन दोनों लड़कों में से एक लड़का लोटे से गमले पर पानी डाल रहा था, सविता छुपकर ये सब देख रही थी और फिर वह तुरंत नीचे चली गई। उसकी उलझन दूर हो चुकी थी, अब वो निश्चिंत हो गई कि इस भैया ने इतने दिन तक पानी डाला होगा मेरे पौधों पर। लेकिन वो गलत थी जिस लड़के को उसने देखा वो तो पहली बार पौधे पर प्लास्टिक के मग से पानी डाल रहा था वो भी इसलिए कि उस मग में पानी भरा पड़ा हुआ था।
फिर एक दिन जब वो छत पर जा रही थी तो जो दूसरा लड़का था वो उसी समय उतर रहा था और साथ ही उसके हाथ में एक पीतल का लोटा था। सविता का इस बात पर ध्यान ही नहीं गया शायद इसलिए भी नहीं गया क्योंकि वो तो प्रथम दृष्टया देखकर पहले ही अपने निष्कर्ष पर पहुंच चुकी थी, एक ऐसा निष्कर्ष जो सिवाय एक गलतफहमी के और कुछ भी नहीं था। कुछ इस तरह महीनों बीत गए।
दीवाली की छुट्टियाँ खत्म हो चुकी थी, किराए में रहने वाले वे दोनों लड़के भी घर से वापस आ चुके थे। तुलसी पूजा का दिन आ गया था।सविता और उसकी माता ने छत पर गन्ने सजा लिए, गन्ने के पौधे के बीच तुलसी का पौधा विराजमान हो चुका था..रंगोली बन चुकी थी..साथ ही सविता ने अरिपन(चावल के आटे से बनी कलाकृति)भी तैयार कर लिया था..पूजा की सारी तैयारी लगभग पूरी हो गई। सविता की मां ने अपने बेटे को कहा कि जा वो दोनों भैया लोग को भी बुला ले। जो लड़का सही में इतने महीनों से पानी डाल रहा था उसने पूजा में शामिल होने से मना कर दिया..कुछ बहाना बनाकर बाहर घूमने चला गया ताकि किसी को बुरा भी न लगे..और जिस लड़के ने कभी पानी नहीं डाला था..वो तुलसी पूजा में सविता के परिवार के साथ था। और सविता की अपनी गलतफहमी और दृढ़ हो गई कि जिस भैया ने मेरे तुलसी पौधे को इतने दिन सहेजा, वो आज तुलसी पूजा में साथ हैं।
No comments:
Post a Comment