अभी कुछ समय पहले की एक घटना है। छत्तीसगढ़ में एक नशेड़ी सिरफिरे युवा ने अपने माता-पिता एवं दादी की पीट पीटकर हत्या कर उन्हें आग के हवाले कर दिया। पुलिस की जाँच, पत्रकारों की रिपोर्टिंग से जितनी सूचना लोगों के हिस्से आई उसका मोटा-मोटा सार यही है। लेकिन ऐसी घटनाओं के पीछे गहराई में जाकर घटना के पीछे के कारणों की पड़ताल करना जरूरी नहीं समझा जाता है, ऐसी घटना को आखिरकार क्यों अंजाम दिया, इस पर बात नहीं की जाती है। किसी ने अपराध किया, उसे कानून के माध्यम से सजा मिली, हम इतने में ही खुद को कार्यमुक्त कर लेते हैं, अपनी जिम्मेदारी खतम कर लेते हैं। जबकि ऐसी घटनाओं का गहरे से विवेचन किया जाना चाहिए। जब से यह घटना हुई है। आम जनमानस, अड़ोसी पड़ोसी या यूं कहें कि समाज यह कहता फिर रहा है कि लड़का नशेड़ी है, सिरफिरा है तभी ऐसा कदम उठाया, यह भी कहा जा रहा है कि लड़के ने अपने शिक्षक पिता की नौकरी अनुकम्पा में पाने हेतु उन्हें चुपके से मौत के घाट उतार दिया। यह सब ऊपरी बातें चल रही है लेकिन गहराई में जाकर देखें तो असल मामला कुछ और ही निकलता है, जो न्याय कानून संविधान से कहीं आगे की चीज है। मामला परिवार का है, पारिवारिक माहौल का है, समाज का है, सामाजिक ढांचे का है, मूल गड़बड़ वहीं से शुरू होती है। इस पोस्ट का उद्देश्य कहीं से भी किसी भी प्रकार के अपराध या हिंसा की पक्षधरता करना नहीं है। उस लड़के ने निस्संदेह एक भयावह कृत्य को अंजाम दिया है, जिसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए कम है। ऐसे मामलों में सबसे पहला सवाल जो मेरे मन में आता है वह ये है कि क्या वह लड़का अपनी माता के गर्भ से अपराधी बनकर आया था। जब ऐसा नहीं है तो क्या ऐसा कारण है कि युवावस्था में आते तक वह कुस्संग की राह में बढ़ता चला गया, क्या ऐसा हो गया कि वह अपने ही परिवारजनों से इतना कट गया कि उन्हें एक झटके में हाॅकी के डंडे से मौत के घाट उतार दिया।
लड़के का एक भाई शायद डाॅक्टर है या डाॅक्टरी की पढ़ाई करता है यानि समाज की नजर में एक सफल व्यक्ति है। पता चला कि बड़े भाई की आड़ में इस लड़के को आए दिन घर परिवार और समाज ने निरंतर पिछले कुछ सालों में खूब लानतें भेजी हैं, निकृष्ट घोषित किया है। और तंग आकर यह लड़का भयानक नकारात्मक होता चला गया, हर कोई ऐसे अपमान झेलकर यह सब नजर अंदाज कर आगे नहीं बढ़ पाता है, कुछ लोग हाथ से छूट ही जाते हैं, सही समय पर इनका हाथ थामकर इन्हें सही दिशा देने वाला भी कोई नहीं होता है। मैंने अधिकतर शिक्षक परिवार के बच्चों की स्थिति देखी है, अपवाद हटा दिया जाए तो बच्चों को एकदम मशीन बनाकर रख देते हैं, भावुकता संवेदनशीलता खत्म कर देते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति इस परिवार की भी रही होगी। समाज अपने गिरेबां में झांके बिना डंके की चोट पर कह रहा है कि लड़का भयानक हिंसक है, अपराधी है, चलिए मान लिया इसमें कोई दो राय है भी नहीं, लेकिन एक सवाल यह भी पैदा होता है कि इस लड़के को अपराधी आखिर किसने बनाया?
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