इंसानी जीवन की अपनी तमाम तरह की जटिलताएँ हैं। इंसान के व्यवहार की सैकड़ों परतें होती हैं, लेकिन एक उसका मूल व्यवहार इन सभी परतों का आईना होता है, सामने यही रहता है, यही दिखता है। समाज में व्यक्ति हमेशा हर तरह के लोगों से मेलजोल बनाकर चलता है, व्यवहार में बरती जा रही असमानताओं को और छुटपुट अतिवादिताओं को किनारे करते हुए एक दूसरे के साथ समन्वय बनाकर जीवन यापन करता है, समाज हमेशा से ऐसे ही चलता रहा है, आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा। ऐसे ही जहाँ मदद करने का मौका आता है, लोग एक-दूसरे की मदद भी करते हैं यह एक सामान्य मानवीय प्रक्रिया है। लेकिन इसमें भी एक विशिष्ट प्रजाति होती है जो डुबान योग से ग्रसित होती है, ऐसे व्यक्ति की मदद आप हमेशा नहीं कर सकते हैं, आपको बाद में पश्चाताप होता है, आप ग्लानि से भर जाते हैं। ये कुछ उसी तरीके की बात है कि कोई डूब रहा है तो आप उसे बचाने के लिए रस्सी फेंकते हैं लेकिन सामर्थ्यवान होने के बावजूद वो रस्सी नहीं लपकता है, वह रस्सी पकड़कर खुद की जान बचाने की बजाय आपको कोसने लगता है। वह अपने तरफ से कोई योगदान नहीं देता है जबकि वह खुद डूब रहा होता है। वो चाहता है कि आप खुद को झोंककर छलांग लगाकर उसे बचाएं। और जब आप ऐसा करते हैं तो अमुक व्यक्ति अपने वजन से आपको पहले डूबा देता है, उसके पागलपन की वजह से आप अपनी जान गंवा बैठते हैं। डुबान योग से ग्रसित व्यक्ति ऐसे ही होते हैं, अवनति ही इनकी नियति में होता है, ये मूर्ख नहीं होते बल्कि धूर्त होते हैं, क्योंकि एक मूर्ख जान बूझकर उसी गलती को बार-बार नहीं दोहराता है। ये लाख समझाने के बावजूद गलती करते हैं क्योंकि इनके लिए इनका अहं सर्वोपरि होता है। ये अपनी मदद नहीं करते हैं, ऐसे लोगों को कितना भी सतमार्ग का रास्ता दिखा दिया जाए, फिर भी वे किसी की एक नहीं सुनेंगे, उस रास्ते में चलकर नहीं जाएंगे। इसलिए एक समय के बाद डुबान योग वालों से दूरी बना लेनी चाहिए ताकि हम जिंदा रह सकें।
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