Friday, 12 May 2023

बात चली शराब की --

अपने जान-पहचान के स्कूल कालेज के तमाम दोस्तों को मैंने बार-बार अवगत कराया कि छत्तीसगढ़ में शराब का सेवन संभल कर करें। चूंकि मिलावट वाली शराब का खेल चहुंओर व्याप्त है, ऐसे में शरीर को और अधिक नुकसान‌ पहुंचता है, वैसे भी एक बार का जीवन है, थोड़ा तो अपने जीवन की गुणवत्ता के लिए ध्यान देना ही चाहिए। तेल, प्राकृतिक गैस, खनिज के अलावा शराब किसी भी राज्य या देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है। मेक्सिको, कोलंबिया जैसे देशों की बात करें तो वहां की अर्थव्यवस्था ही कोकेन, मारिजुआना से चलती है, वहां की जलवायु ऐसी है कि अच्छी गुणवत्ता की पैदावार होती है, जिसकी खपत पूरी दुनिया में होती है। और उसी पैसे से देश की अर्थव्यवस्था चलती है, लोगों को रोजगार मिलता है, गांवों शहरों का विकास होता है, सरकार लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराती है..आदि आदि।

भारत में अलग-अलग राज्यों में शराब बिक्री का अलग-अलग तरह का नेक्सस है। उदाहरण के लिए शराबबंदी वाले राज्य गुजरात को लीजिए, वहाँ सबसे अधिक एक्साइज ड्यूटी राज्य को शराब से मिलती है। जबकि भ्रम इस बात का, कि शराबबंदी है। लीगल तरीके से सरकार हमेशा नये नये कानून बनाकर दुगुने-तिगुने दाम में शराब बेचती है। जैसे अभी नियम यह है कि मैं दूसरे राज्य से हूं और अगर मुझे शराब चाहिए तो मैं यहाँ कार्ड बनाकर खरीद सकता हूं, लेकिन गुजरात का लोकल आदमी नहीं खरीद सकता है, लेकिन मैं कार्ड बनाकर यहाँ के किसी लोकल को दे दूं तो वह लगातार शराब आनलाइन घर तक मँगवा सकता है, लेकिन दाम दुगुने हैं। शराब वहाँ भी वैसे ही बिकती है जैसे बाकी राज्यों में बिकती है। बाकी राज्यों से कहीं अधिक कमाई होती है क्योंकि रेट दुगुने तिगुने हैं। 

शराबबंदी वाले राज्यों में दूसरा चर्चित नाम बिहार का आता है। बिहार में मामला एकदम अलग है। वहाँ गुणवत्ता को लेकर भयानक समस्या है। जो चुनिंदा ब्रांड वाली शराब है, कहीं से आपको जुगाड़ से मिल जाए, उसमें भी इतनी अधिक मिलावट है कि आप दुगुने दाम में लेकर आएंगे फिर भी आप विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि आपको सही चीज मिल रही है। यही सिलसिला स्थानीय शराब बनाने वालों के साथ भी है। मिलावट कर कुछ भी बेच रहे हैं। इसलिए कई बार बिहार से ऐसी घटनाएं सुनने को भी मिलती हैं कि नकली शराब से बहुत लोगों की जान चली गई। बिहार के मेरे कुछ एक करीबी मित्र बताते हैं कि जो लोग कभी कभार महीने साल में पी लेते थे उन्होंने भी अब डर के‌ मारे पीना छोड़ दिया है, क्योंकि इतनी अधिक मिलावट है, कभी किसी दूसरे राज्य जाना होता है तब पी लेते हैं और गुणवत्ता में जमीन आसमान का अंतर महसूस होता है। 

अब छत्तीसगढ़ पर आते हैं, यहाँ शराब को लेकर कुछ अलग ही तरह का नेक्सस है जो पिछली सरकार के समय से चला आ रहा है। यहाँ शराबबंदी जैसा कोई नियम नहीं है लेकिन आपको ढूंढने पर भगवान मिल जाएगा लेकिन यहाँ शराब का ब्रांड नहीं मिलेगा। छत्तीसगढ़ में शराब के ऐसे-ऐसे ब्रांड इजात हुए हैं, जो नाम‌ आपको पूरे ब्रम्हाण्ड में कहीं नहीं मिलेंगे। शराब का जो ब्रांड पूरे देश में मिलता है, जो एक तय मानक के आधार पर तैयार होता है, उसकी खपत छत्तीसगढ़ में 20% के आसपास है, बाकी 80% मार्केट स्थानीय नेक्सस के आधार पर तैयार हुए शराब का है जो अधिकृत रूप से सभी शराब दुकानों में बकायदा पैकिंग के साथ बिकता है। और लंबे समय से वही बिक रहा है तो लोगों के दिमाग में भी यही फिट हो गया है कि फलां ब्रांड बढ़िया है, यानि स्थानीय स्तर पर बने उस ब्रांड ने असली ब्रांड को पीछे छोड़ दिया है। कुछ एक दोस्त शिकायत करते हैं कि क्या नकली शराब है, चढ़ता ही नहीं है। कोई कहता है कि पीने के अगले दिन सुबह सिरदर्द की समस्या रहती है। वैसे बिहार में नकली शराब से बहुधा लोग स्वर्ग सिधार जाते हैं, शुक्र है यहाँ मामला सिरदर्द तक सीमित है। मेरे एक करीबी शराबी मित्र जो पाक्षिक पी लेते थे, उन्होंने तो पिछले एक साल से शराब पीना ही छोड़ दिया है। हाल ही में इसी 80% लोकल ब्रांड को खपाने वाले मामले को लेकर ही माननीय ईडी ने छापा मारा है। अब भई केन्द्र हो या राज्य, व्यवस्था चलाने के लिए पैसा तो सबको चाहिए। अब इस छापेमारी में हकीकत जो भी हो, जितने भी करोड़ का बंदरबांट हो, हम सभी को इस सच को स्वीकार लेना चाहिए कि शराब अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। हम अपने आसपास सड़क निर्माण, भवन निर्माण, स्कूल, काॅलेज, उद्योग या अन्य विकास कार्यों को जो देखकर खुश होते हैं उसके लिए भी पैसा इसी शराब से ही आता है। अब हमें इसमें यह देखना होगा कि इस सच को हम कैसे स्वीकारते हैं।

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