Sunday, 28 November 2021

We dont want MSP - Analysis by Mehak Singh Tarar

नहीं चाहिये MSP -

1. 1980 मे खेती मजदूर दोपहर तक का 3 किलो अनाज लेता था।
सरकार आज 3 किलो गेंहू के बस उतने दाम दे दे कि किसान अपने मजदूर भाई को वर्तमान समय की आधा दिन की मजदूरी (Rs. 200) दे पाये।
बिल्कुल ना दे MSP, हमें नहीं चाहिये।
2. 1967 मे गेंहू का दाम था 76 Rs प्रति क्विंटल ओर सोने (Gold) का रेट था 102 Rs तोला। मतलब 135 किलो गेंहू बेचकर 1 तोला सोना खरीदते थे किसान।
हमे सरकार 135 किलो गेंहू/तोला के हिसाब से पेमेंट करे भले MSP ना दे।
3. 1967 मे 1 सीमेंट का कट्टा 8 Rs का था। मतलब 1 क्विंटल गेंहू मे साढ़े नौ कट्टे सीमेंट आता था।
सरकार आज भी बस साढ़े नौ कट्टे सीमेंट के बराबर गेंहू का रेट दे दो।
4. गेंहू का पहला MSP था 76 रुपये(1967) और उस समय एक क्विंटल में ढाई हजार ईंट आती थी। आज उतनी ही ईंटे 12-14 हजार की आती है।
किसान को घर बनाने के लिए ढाई हजार ईंट बराबर प्रति क्विंटल गेहूँ का रेट दिलवा दो।
फिर MSP बेशक कूड़े मे डाल दो।
5. जब गेंहू का पहला MSP 76 Rs क्विंटल था तो एक क्विंटल मे एक ड्रम(200 लीटर) डीजल आता था।
बस 1 क्विंटल गेंहू में 1 ड्रम डीजल दिलवा दो।
6. मेरी RK डिग्री कॉलेज की BSc की फीस थी सवा छह रुपये ओर उस साल गेंहू था 215/क्विंटल। मतलब किसान 3 किलो गेंहू बेच कर बेटे की सालाना फीस भर देता था।
सरकार जी आज गेहू है 19.25 Rs किलो। बस ब्लॉक स्तर पर 57 Rs सालाना फीस दे कर किसानों के बच्चे पढ़ने वाले कॉलेज खुलवा दो।
फिर बेशक MSP अम्बानी अडानी को दे दो।
नोट:- महक सिंह तरार भाई साहब द्वारा उनकी अपनी पढ़ाई के आधार पर आँकलन। 
7. पिछले बीस साल मे गेहूँ बढ़ा तीन गुणा और यूरिया बढ़ा छहः गुणा।
सरकार जी या तो यूरिया आधे रेट कर दो या गेहू दुगने।
और MSP दे दो बेशक अदानी अम्बानी को। 
#MSP_C2_प्लस_50%

Friday, 26 November 2021

Bike Review - Honda CB200X

Honda CB200X

In my opinion it is one of the best touring machine in budget and here are my thoughts behind it.
Pros. - 
- Comfortable riding position,
- Wide seat, good for both rider and pillion,
- You can easily get 40-45 mileage,
- hazard light,
- Looks huge like a big bike.
- These new cross-section tyres are good enough for handling potholes in Indian roads.
- You can easily cruise for hours in between 90-100 kmph without any jerks.
Con's.
- Tyre hugger is missing.
- Considering their past work with hornet, i am little doubtful with the plastic build quality ( Suzuki is way ahead of yamaha and honda when it comes to build quality in this price segment)
Note : Its a tourer bike, not an adventure bike and it serves the touring purpose very well. for adventure and off-roading one can go for Himalayan and xpluse.


Wednesday, 24 November 2021

One day in Jaipur during all india ride -

फरवरी 2020 में जब भारत घूमते हुए 100 दिन पूरा करने के बाद किसानों के मुद्दों को लेकर फिर से घूमना शुरू किया तो जयपुर में एक बैकपैकर हाॅस्टल में रूकना हुआ, वहाँ उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल का एक लड़का मिल गया, इत्तफाक से हम दोनों का एक म्युचल कांटेक्ट भी निकल गया तो हम काफी देर तक बात करते रहे, बात करते-करते मैंने किसान आंदोलन के बारे में भी चर्चा की, बड़े आराम से हम चर्चा कर रहे थे, किसी पार्टी विचारधारा का समर्थन या विरोध करने की बात नहीं चल रही थी, सिर्फ किसानों की समस्याओं पर बात कर रहे थे, मैंने जो आंदोलन में देखा, जिया, महसूस किया उस हकीकत को साझा कर रहा था। इतने में उसी हाॅस्टल में रहने वाले एक इंजीनियर भाईसाहब आए, भाईसाहब किसी मल्टीनेशनल कंपनी‌ में मोटी तनख्वाह पाने वाले नौकर होंगे, मेरी बात सुनते हुए अंग्रेजी पेलने लगे और किसानों के नाम‌ पर जहर उगलने लगे, मैं चुपचाप सुनता रहा। मैंने तो कान पकड़ लिया था कि कोई कितनी भी भाषाई हिंसा करे, मैं रियेक्ट नहीं करने वाला, मैं अंत तक चुप रहा। वे बोलते रहे, अपने सतही लाॅजिक देते रहे, उत्तराखण्ड का साथी दोस्त भी सुन के मुस्कुरा रहा था। इंजीनियर साहब का बोलना बंद नहीं हुआ था, जबकि मैं उनसे आगे से बात नहीं कर रहा था, इतने में उन्होंने "bloody farmers, fuck farmers, i pay tax for this country, return my tax money" कुछ ऐसा ही कहा। अब ये सुनके मेरा दिमाग खराब हो चुका था। गढ़वाल वाले भाई ने मुझे इशारों में कहा कि मैं शांत हो जाऊं, और मैंने उनकी बातों को नजर अंदाज कर दिया। फिर उस भाई ने कहा - यार ये इंजीनियर साहब कुछ परेशान से हैं, दो दिनों से यहीं हूं, ये भी यहीं हैं, दिन भर किसी से फोन पर ऊंची आवाज में झगड़ते हैं, पत्नी है या प्रेमिका मुझे नहीं मालूम लेकिन खूब लड़ते हैं, मानसिक रूप से सही नहीं लगे मुझे तो इसलिए आपको डिबेट करने से रोक लिया।

उधार माँगने की परंपरा और भारतीय समाज -

पहले वे तुम्हारी तारीफ करेंगे,
फिर एक समस्या बताएंगे,
फिर वे आपसे उधार माँगेंगे,
फिर आप उधार देंगे।
यहाँ तक सब ठीक रहेगा।
फिर तय समय पर वे उधार चुकाएंगे।
लेकिन टैक्स काट के चुकाएंगे।
टैक्स कटेगा आपकी अच्छाई का।
क्योंकि उनके हिसाब से आप मूर्ख हैं,
और आपको 70-80% रकम भुगतान कर दिया जाए,
तो भी चल जाएगा, और आप सवाल नहीं करेंगे।
वे ऐसा करने‌ के बाद माफी भी माँग लेंगे।
माफी का अर्थ यह हुआ कि वे इतना ही चुकाएंगे।
अगर जब पूरा चुकाना ही है तो माफी क्यों माँगना।
और जब कोई 70-80% रूपये चुका सकता है,
तो वह 100% तक क्यों नहीं जा सकता।
10-20% की कटौती कर वे एक बहुमूल्य रिश्ता खो देंगे,
वे खुद शर्मिंदगी के कारण आपसे संपर्क कम कर लेंगे।
भारतीय समाज अजीब किस्म की जटिलताओं से अटा पड़ा है। 
आप लोगों से स्पष्टता की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।

Monday, 22 November 2021

कृषि कानूनों को लेकर मोदीजी द्वारा किसानों को समझाने के तरीके -

मोदीजी बहुत अच्छी नियत से कृषि बिल लेकर आए थे, उन्होंने इसके लिए देश भर के किसानों को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन वे समझा नहीं पाए। 

मोदीजी के समझाने के तरीके निम्नलिखित हैं -

1. किसानों पर वाटन कैनन से पानी की बौछार करना और लाठियाँ बरसाना।
2. किसानों के ट्रैक्टर रोकने के लिए सड़कें खुदवाना।
3. मीडिया द्वारा लगातार किसानों को बदनाम करना।
4. इनके अपने नेताओं द्वारा खलिस्तानी आतंकवादी देशद्रोही कहा जाना।
5. आंदोलन को बदनाम करने हेतु जातीय धार्मिक कार्ड खेलना।
6. आंदोलन स्थल में कंटीले तार और कीलों से बैरिकेटिंग करना।
7. आंदोलनजीवी कहकर इस देश के किसानों का अपमान करना।
8. शांतिपूर्ण आंदोलन को बाधित करने के लिए इंटरनेट बैन करना।
9. पानी और बिजली की सप्लाई बाधित करना।
10. आंदोलन स्थल में गुंडे भेजकर उपद्रव की स्थिति पैदा करना।
11. किसानों के टैंट को जलाना, नुकसान पहुंचाना।
12. किसानों को मीटिंग में बुलाकर बार-बार अपमानित करना।
13. 50000 से अधिक किसानों पर फर्जी मुकदमें लगाना।
14. 700 से अधिक किसानों की मौत पर चुप्पी बनाकर चलना।
15. किसानों को इनके नेताओं द्वारा गाड़ी से कुचल दिया जाना।

Saturday, 20 November 2021

किसान आंदोलन के एक साल -

Even the darkest night will end and the sun will rise - Victor Hugo

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जितने भी आंदोलन हुए, उसमें भी कभी पूरा भारत नहीं जुट पाया था, ये तो फिर भी किसानों का आंदोलन है, यहाँ तो वैसी देशभक्ति वाली फैंटेसी भी नहीं है, हर किसी के लिए जुड़ पाना आसान नहीं है, श्रम से नफरत करने वालों के लिए, सामंतवादी मानसिकता रखने वालों के लिए और भी मुश्किल है। लेकिन जिनको दिख गया कि ये अपने आप पैदा हुआ आंदोलन है, वे देश के कोने-कोने से आकर जुड़ गए, चाहे अल्पकालिक हो या दीर्घकालिक, सभी राज्यों से लोग अपनी-अपनी शक्ति और सुविधा के हिसाब से जुड़े और आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा, सरकार आगे भी झुकेगी, क्योंकि किसान पीछे हटने वाले नहीं है। 
यह सब संभव हो रहा है अपना सारा अहं, अपनी सुविधाएँ, अपनी जड़ताएँ सब कुछ छोड़कर सिर्फ सड़कों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने से, तन मन धन सब कुछ दाँव पर लगाकर टिके रहने से, यह काम सिर्फ इस देश का किसान ही इतने लंबे समय तक कर सकता है। फर्ज करें कि एक नौकरीपेशा वर्ग अपनी माँगों को लेकर सड़कों पर है, वह दूसरे ही दिन खाना, पानी, बाथरूम इन समस्याओं से तंग आकर आंदोलन से भाग जाएगा। आंधी तूफान ठंड गर्मी बरसात, ये सब मौसमी मार झेलने के लिए तो रीढ़ ही नहीं बचनी है, आंदोलन कहाँ से करेंगे‌।
किसी भी आंदोलन की सबसे बड़ी जरूरत है स्थायित्व, बस एक जगह टिके रहिए, कुछ भी हो जाए हिलिए ढुलिए मत, किसी की जान भी चली जाए, हिलना नहीं है, टूटना नहीं है, अपना सर्वस्व सौंप देना है, और यह सब इतना भी आसान नहीं है, लेकिन किसानों का फौलादी हौसला यह काम कर रहा है, आर्थिक मानसिक हर तरीके से उन्होंने खुद को इस आंदोलन में झोंक दिया है। साल भर में 700 के आसपास लोग शहीद हुए हैं, वो भी तब ये डाटा हमारे पास है जब कुछ लोगों की टीम लगातार एक‌ साल से लोगों की मौत को रिपोर्ट कर रही है, तब ये आधिकारिक डाटा मौजूद है। मुझे लगता है कि इससे ज्यादा ही मौते हुई हैं, कुछ कुछ तो हमसे छूट ही जाता है। यकीन मानिए इतनी मौतों के बाद, लाठीचार्ज वाटरकैनन, फर्जी केस बनाकर जेल भरने का कार्यक्रम और मीडिया द्वारा बदनामी। सिलसिलेवार ढंग से लगातार की गई इन तमाम तरह की हिंसाओं के बाद भी लोगों का हौसला इंच मात्र भी नहीं हिला है इस आंदोलन में, क्योंकि इनकी माँग जायज है, इसलिए इनके हौसले बुलंद है, भई जीने-मरने का सवाल है। लोगों ने अपनी नौकरियाँ तक छोड़ दी है इस देश के बेहतर भविष्य के लिए और अभी भी आंदोलन स्थल में हैं, क्या डाक्टर क्या इंजीनियर क्या सीए, नौकरी को ही जीवन का अंतिम ध्येय मानने वालों को हैरानी हो सकती है, लेकिन जब तक आप आंदोलन स्थल में जाकर झांकेंगे नहीं तो आपको समझ नहीं आएगा कि इनको साल भर से सब कुछ झेलते हुए सड़कों पर बैठने का हौसला कहाँ से मिल रहा है। सरकार के सामने माफी माँगकर कानून वापस करने की नौबत ऐसे ही नहीं आई है, आप घर बैठे चुनाव वाला केलकुलेशन घुसाते रहिए, लेकिन इस बात को समझिए कि झुकना महत्वपूर्ण है, क्यों झुका इसमें मत उलझिए, झुकना पड़ा ये बहुत बड़ी बात है, बहुमत से चुनकर आई एक पार्टी इतनी आसानी से नहीं झुकती है, और वैसे भी आज नहीं तो कल इन्हें झुकना ही पड़ता, सिर्फ किसी राज्य के चुनाव की बात नहीं है, इनके बहुमत के गुरूर को किसानों ने शिथिल किया है, डंडा किसानों ने किया है, प्रेम शांति और एकता नामक डंडा किसानों ने बजाया है तब जाकर इन्हें झुकना पड़ा है।
#farmersprotest

Friday, 19 November 2021

झांसाराम को पत्र -

प्रिय झांसा,
आज सुबह मैं देर से उठा। उठा तो देखा कि कुछ लोगों के फोन आए थे, नेट आॅन किया तो देखा कि मैसेज में न्यूज देखने की बात कही जा रही है और शुभकामनाएँ दी जा रही है। नींद ढंग से खुली नहीं थी कि एक मित्र का फोन आ गया और उसने कहा कि फेंटा पानी हो गया। फिर एक से बात हुई तो कहा गया कि झांसाराम ने थूक के चाट ली। मैं भी आनन-फानन में तुरंत भावुक। एक पल के लिए यकीन नहीं हुआ कि झांसा झुक सकता है‌। 
पिछली रात नार्थ ईस्ट जाने के लिए पूरा रोडमैप तैयार कर लिया था, और मेरे अकेले घूमने की प्लानिंग ऐसी रहती है कि दुनिया की बड़ी से बड़ी अड़चन आ जाए, मुझे रोक नहीं पाती है, एक बार सोच लिया तो बस कर लिया, लेकिन आपने तो काले कृषि कानून वापिस लेने का फैसला लेकर एकदम चौंका दिया, अब तो आंदोलन स्थल आने का मन बन रहा है, C2+50% फार्मूला और एमएसपी की गारंटी पर कानून बनवाने का रास्ता आपने हमारे लिए तैयार कर दिया है। आपने हमें एक नई जिम्मेदारी सौंप दी है। 
आप इतने जिद्दी हैं, अपनी जिद पर टिके रहते हैं, जो आपको मन करता है वही करते हैं, किसी की नहीं सुनते, लोग कहते कहते थक गये, खूब आलोचना होती है आपकी कि क्यों आप आजतक इतने सालों में एक प्रेस कांफ्रेस तक नहीं कर पाए, लेकिन आपको कभी इंच मात्र फर्क नहीं पड़ा। आपने रियेक्ट नहीं किया, आप अप्रभावित रहे, आप नहीं झुके। लेकिन इस बार क्या हुआ झांसा जी। इस बार तो आपने खुद जो कानून जोर शोर से लाया था, साल भर फायदे गिनाते रहे, विरोध करने वालों को आंदोलनजीवी कहकर गालियाँ दी, अपमानित किया, सैकड़ों किसानों की मौत का मजाक बनाया। लेकिन आज आपको किसानों से माफी माँगते हुए कानून वापस लेने की बात कहनी पड़ी। आपने तो थूक के चाट लिया झांसाराम जी। शायद आगे भी आपको यह प्रक्रिया दुहरानी पड़े इसलिए मैंने आपके लिए आज एक नया नाम सोचा है, आज से आप मेरे लिए झांसाराम, जिल्लेइलाही या फेंटा नहीं कहलाएंगे, आज से मैं आपको थूकचट्टा बुलाऊंगा।
- एक नागरिक

Wednesday, 17 November 2021

Voice of the sea - memoir

समन्दर किनारे बैठे थे, 
उनकी कैंपिंग चल रही है, 
दोनों ने अलग-अलग कैंप लगा रखे हैं,
उसके लिए यह पहला कैंपिंग का अनुभव है,
बहुत खुश है वो,
सुकून से अपने कैंप से बाहर निकल कर हवाओं से बातें कर रही है,
लाल रक्तिम लालिमा लिए सूरज ढलने को है,
वह भी दूर बैठा उसे देख ही रहा होता है,
समन्दर किनारे जाने के लिए अपने कैंप से निकला ही है,
इतने में चिड़ियों का एक झुंड आता है,
लड़की विचलित हो जाती है, डर जाती है,
लड़का तुरंत दौड़ते हुए जाकर उन्हें भगाता है,
लड़का समझाता है कि बस उन्हें दौड़ाना ही था,
यह काम तुम भी कर सकती हो, अगली बार कभी कुछ हो, तो करके देखना।
फिर दोनों बहुत देर तक वहीं बैठे हुए बातें करते हैं...
एक दूसरे के बारे में बातें करने का जोखिम उठा लेते हैं..
लड़की बहुत गंभीरता से कहती है- 
तुम थोड़े अजीब हो,
पता नहीं क्या क्या सोचते रहते हो,
कोशिश करती हूं लेकिन समझ नहीं पाती हूं,
लेकिन इंसान अच्छे हो इतना पता है...
इतनी ही बात होती है और फिर दोनों खामोशी से ढलते सूरज को देखने लग जाते हैं.. 
Highway to the stars...
Delhi_Diaries
18 Nov 2021

Saturday, 13 November 2021

भारतीय शादियाँ - एक अबूझ पहेली

भारत में शादी के नाम पर उम्र और बायोलोजिकल जरूरतों को हमारे दिमाग में इतना हावी कर दिया जाता है, कि हम भी सोचने लगते हैं कि बिना शादी के जीना नामुमकिन है। सुन के अजीब लग सकता है लेकिन एक कड़वी हकीकत यह है कि हमारे यहाँ के अधिकतर लोग शारीरिक संबंधों को भी ढंग से नहीं जी पाते क्योंकि उसके लिए भी तो पहले मन विचार ये मिलना जरूरी होता है, हमारे यहाँ लोग संबंध और बच्चे पैदा करने इसको बस एक ड्यूटी की तरह करते चले जाते हैं और जो इन सब प्रोसेस में नहीं आया होता उसको खींच के‌ लाते हैं कि शादी बहुत जरूरी है।
एक सच ये कि नेचर की अपनी काॅलिंग होती है, हार्मोन कहते हैं कि तुम्हें साथ की जरूरत है, इस सच्चाई को ईमानदारी से स्वीकार लेना चाहिए। लेकिन मिलने वाला साथ जीवन‌ में सुकून‌ लाने के बजाए इतना दिमागी उथल पुथल मचा देता है, इंसान को इतना अधिक खोखला कर देता है कि हार्मोनल बैलेंस ही बिगड़ जाता है, इससे बेहतर तो यही है कि इंसान अकेला ईमानदारी से जिए, कुछ ही लोग ऐसी हिम्मत दिखा पाते हैं जो अपने लिए भीतर से बहुत ही ज्यादा ईमानदार होते हैं। ऐसे लोग हर दिन तलवार की नोक पर चल रहे होते हैं, समाज, समाज का ढाँचा कहाँ चैन से जीने देता है।
मन और शरीर कुछ अलग नहीं है, दोनों जुड़ा हुआ है, मन सही नहीं है ऐसे में इंसान कितने भी लोगों के साथ संबंधों को जी ले, खुश नहीं रह सकता। मजे की बात ये कि जिनका मन सही नहीं रहता अमूमन वही लोग ये काम जमकर करते हैं। 
कई कई लोग शादी नहीं करते तो समाज मुँह पर पूछ लेता है कि तुम्हारे शरीर को जरूरत महसूस नहीं होती क्या। समाज हमेशा मन शरीर को अलग-अलग देखता है लेकिन‌ दोनों गहरे से जुड़े हुए हैं, अब जब अलग-अलग पूछ रहे हैं तो काश कोई यह भी पूछ लेता कि तुम्हारे मन को जरूरत महसूस नहीं होती क्या।
अब किसी का मन शरीर रियेक्ट नहीं करता तो नहीं करता, मैं तो कहता हूं ऐसे सामाजिक ढांचे में क्या ही मन करेगा, जिसकी दिमागी हालत ठीक ठाक है उसका तो मन नहीं करने वाला, करेगा भी तो वो बहुत फूंक फूंक के कदम रखेगा क्योंकि सब तरफ बीमारी फैली हुई है, दिखेगी नहीं, लेकिन गहरे तक फैली हुई है। सच कहूं तो ये किसी बहुत बीमार से गले मिलने संबंध बनाने जैसा है, जो आपको भी लंबे समय के लिए बीमारी दे देता है। कुछ समय तक ठीक लगेगा फिर बीमारी का पता चलेगा। लोग मन से बहुत ज्यादा परेशान हैं, बीमार हैं और इसकी वजह हमारा पारिवारिक ढांचा है, हमारा समाज है। क्रीम पाउडर खूशबू वाली चीजें लगा के गले मिलके छू के खुश हो लोगे, लेकिन मन वाली चीजों को जिसके सहारे जीवन बीतेगा, उनको गले मिलाने के लिए पूरा भीतर तक वैचारिक सफाई करना पड़ेगा, इसकी खुशबू पर कौन काम‌ करेगा ये सोचने वाली बात है।

Thursday, 11 November 2021

Non voilence in thoughts leads to non volience in action and in life.

कुछ लोगों में हिंसा बिल्कुल ना के बराबर होती है, ऐसा नहीं है कि ये लोग कभी हिंसा से दो चार नहीं होते, भारत में रहने वाला आए दिन पब्लिक डिस्कोर्स में हिंसा देख ही रहा होता है, कुछ ही बच पाते हैं। भारत घूमते हुए बहुत से ऐसे लोगों की सोहबत मिली इस बात की खुशी है। घर से निकलने से पहले सोच के गया था कि अपनी तरफ से भाषाई वैचारिक भौतिक किसी भी तरह की हिंसा से परहेज ही करूंगा, आंदोलन स्थल के ताप की वजह से कुछ हद तक वैचारिक हिंसा का प्रवेश हुआ, जो कि पूर्णत: व्यक्तिगत था। कुल मिला के बहुत हद तक अमल हुआ। आगे भी अब यही कोशिश रहेगी कि एकदम मात्रा शून्य कर दी जाए। जो सड़कों में लंबी-लंबी यात्राएँ करते हैं, उनके अपने बहुत से कटु अनुभव होते हैं, यानि कभी किसी लोकल आदमी से लड़ लिया या कभी किसी पुलिसवाले से बहस हो गई, लेकिन मेरे साथ ऐसी कोई घटना नहीं हुई। असल में होती है सुई की नोक जैसी छोटी सी बात, लेकिन लोगों के जीवन में इतना सब गड्ड-मड्ड हुआ पड़ा है कि कहीं का कहीं उतार जाते हैं, और बात बढ़ जाती है। ऐसा नहीं था कि मुझे हर जगह बहुत अच्छे खुशमिजाज लोग मिले, हर तरह के लोगों से मैं मिला, लेकिन मैं गाँठ बाँध के गया था कि हिंसा से परहेज करना है तो हिंसक लोगों के बीच भी आनंद से ही समय गुजरा।
एक स्ट्रैच में मेरे जितनी लंबी यात्रा बहुत ही कम‌ लोग करते हैं, छत्तीसगढ़ राज्य से तो अभी तक मैं एकलौता ही हूं। ऐसे में बिना हिंसा परोसते हुए आगे बढ़ना बड़ा चैलेंज रहा। एक चीज यह भी समझ आई कि जब हम अपनी तरफ से हिंसा को नकार देते हैं तो दूसरी ओर से हम स्वतः ही हिंसा के प्रभाव से मुक्त होने लगते हैं।

Sunday, 7 November 2021

One buddha statue in Sarnath

When i was in sarnath, i went to buddha museum. I am not a museum person but in the ticket both the places ( sarnath and the museum) are included so i went there just for a walk. Many visitors are amazed by the beauty of ashoka chakra which is placed in the middle of the museum with special ligthing but it makes no sense to me, in the meantime i found something else. there are numerous buddha statues in the place. may be more then twenty in different size, shape and order. And then i saw one statue which is little broken but capable of giving a vibe, i tried searching/googling for the same buddha statue but failed to find it. That particular statue was so lively. (phone/cameras are not allowed otherwise i would surely click a picture). i sit there and saw that statue for minutes ( don't remember the exact time). it was such a beautiful experience.