Friday, 19 March 2021

Friends from Ahmedabad

 गुजराती मित्र राधिका बीसियों देशों में रह चुकी है। उन छात्रों की तरह नहीं हैं कि माता-पिता से लाखों करोड़ों रूपए लिया और विदेश में मैनेजमेंट कोटा लेकर किसी काॅलेज में पढ़ने चले गये। सब कुछ अपनी क्षमताओं के बूते किया, आर्थिक मामले में माँ-बाप को कुछ बहुत अधिक नहीं करना पड़ा। अलग-अलग देशों में रहकर पढ़ते हुए काम करते हुए बहुत कुछ सीखा। कहने को फार्मासिस्ट हैं लेकिन कलाकार पहले हैं, पेटिंग बनाने के मामले में जर्मनी में इनका सिक्का चलता है। आखिरी बार जर्मनी में रही, फिर कोरोना की वजह से यहाँ पिछले एक साल से यहीं हैं। ये और इनके एक और दोस्त मुझे उत्तराखण्ड में मिले थे, मैं अहमदाबाद में इन्हीं के घर में रूकना हुआ था। मैं इनके पेटिंग वर्कशाम का हिस्सा भी बना। कैनवास में बनाई उस पेंटिंग को मैं अपने राइडिंग जैकेट के अंदर रखकर कुल 2000 किलोमीटर से अधिक अहमदाबाद से इंदौर, गुना, भोपाल, विदिशा, खजुराहो होते हुए रायपुर पहुंचा। बड़ा कैनवास था इसलिए कमर सीधी रखने का चैलेंज और गाड़ी चलाते रहने का चैलेंग अलग ही था, लेकिन जहाँ प्रेम और अपनापन होता है, इंसान खुशी खुशी कर जाता है, मैंने भी कर लिया। 


आज राधिका ने कहा - असली जीवन तुम ही जी रहे हो, तुम समझ नहीं सकते मैं तुमसे कितनी अधिक प्रभावित हूं। अगर आज मैं ये पेटिंग वर्कशाप बंद कर खुद को समय देकर कुछ अलग करने का सोच रही हूं तो इसके पीछे भी कहीं न कहीं मैं तुमसे ही इंस्पायर्ड हूं।


इस तस्वीर में इसी बात को लिखा गया है, इस पेटिंग वर्कशाप से अहमदाबाद में राधिका को ठीक ठाक पैसे मिल रहे थे, सही काम चल रहा था, लेकिन जीवन में कुछ और नया करना है इसलिए इसे पीछे छोड़कर आगे बढ़ रही है। जिन्हें जीवन में हमेशा कुछ नया करना होता है उनके लिए रूपये पैसे का‌ लोभ कभी बाधा नहीं बनता है।







Thanks Giving Ride by Suzuki

 मेरे बहुत कम मित्रों को इस बात की जानकारी है कि मैं इंजीनियरिंग के स्यापे के अलावा मीडिया का छात्र भी रहा हूं। मीडिया का छात्र होने के बावजूद हमेशा मीडियाबाजी से दूर रहा। साथी लोग मीडियाबाजी के नाम पर कहीं इंटर्नशिप करके कार्ड बनवा लेते ताकि दस बीस रूपए बचा लें, ऐसा ही बहुत कुछ करते, चंद असुविधाओं से बचने के लिए प्रेस लिखवा कर चौड़े बनते, मुझे ये चीजें हमेशा से बकवास लगती है। 


मीडिया का छात्र होने की वजह से मीडियाबाजी करना मेरे लिए कोई बहुत मुश्किल काम नहीं था। ज्यादा कुछ नहीं, बस थोड़ा "जी सर",  "हाँ सर" वाली चाटुकारिता करनी पड़ती। और तो और यह नहीं करके भी पेपर कटिंग या किसी नामी गिरामी वेबसाइट में "भारत भ्रमण पर अकेले निकले युवा" इस तरह के शीर्षक के साथ कुछ तामझाम हो ही जाता, सुजुकी कंपनी वालों ने तो वैसे भी जगह-जगह फूल मालाओं और गुलदस्तों से मुझे लाद दिया, इन सबकी भी मीडियाबाजी हो ही जाती, मैंने नहीं की। अधिकतर लोग यही करते है, इसी को जीवन की उपलब्धि मानते हैं, स्कूल कालेज के परिणाम की तरह जीवन के हर एक पहलू को इवेंट बनाकर रख देते हैं। मैं इवेंटबाज नहीं हूं, मीडियाबाज नहीं हूं, यूट्यूबबाज नहीं हूं, टूरिस्ट नहीं हूं। मैं सिर्फ घूमने और लोगों से मिलने निकला था। बहुत खुशी होती है कि अभी तक के जीवन में कभी कहीं चाटुकारिता करने, जी-हूजूरी करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। जब जीवन का इतना हिस्सा बिना चाटुकारिता के जी लिया, तो आगे का जीवन भी इसी तरीके से जी लिया जाएगा। 


जब मैं घूम रहा था तो मेरे पास अपनी पहचान बताने के लिए कोई खास टैग पद जैसा कुछ नहीं रहा, मैंने ज्यादा कुछ कहीं कहा भी नहीं, एक राष्ट्रीय संस्थान का फेलो रहा, उसका भी जिक्र नहीं किया क्योंकि मैं उसे उपलब्धि नहीं मानता हूं। इन सबके बावजूद इस पूरे भारत भ्रमण में भारत के आम‌ लोगों ने मुझे बहुत अधिक प्यार दिया। इसके लिए मन की गहराइयों से एक बार फिर से सभी का धन्यवाद। इस यात्रा के बाद मेरा लोगों के प्रति प्रेम और विश्वास पहले से बहुत अधिक बढ़ा है, यही इस भारत भ्रमण का सबसे बड़ा हासिल है।


बाकी इस तस्वीर में जैसा कि आप पढ़ सकते हैं कि रायपुर, छत्तीसगढ़ का एक ग्रुप खास मेरे लिए एक Thanks Giving Ride का आयोजन कर रहा है, बस यही छोटी-छोटी चीजें ही जीवन जीने का ईंधन है। सफलता उपलब्धि की प्रचलित परिभाषा से इतर जीने वाले को बिना लाग-लपेट ऐसी खुशियाँ देने के लिए शुक्रिया।



Monday, 15 March 2021

जाने वालों जरा, मुड़के देखो मुझे.....

मोहम्मद रफी का यह गाना आज रह-रह के याद आ रहा है, इसमें आगे की लाइन है - " एक इंसान हूं मैं तुम्हारी तरह "।


तो हुआ यूं कि मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त रही, आज से महीने भर पहले जब मैं आगरा में था तो उनको मैं आगरे का पेठा कूरियर से भेज नहीं पाया, चाह रहा था भेजूं लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसा बनी कि भेज ही नहीं पाया, बहुत दु:ख हुआ कि नहीं भेज पाया। बदले में महिला मित्र ने यह कहकर ब्लाॅक कर दिया कि मुझे दोस्ती की कद्र नहीं, आज महीने भर से अधिक हो चुके हैं। मेरे लिए यह किसी सदमे से कम नहीं था। खैर...।


अब ये प्रवीण भाई है, कालेज का दोस्त है, कुछ दिन पहले ही फोन में बढ़िया से बात हुई थी, अब पता नहीं मुझे लेकर इसके मन में क्या खिचड़ी पक रही होगी, आज अचानक पता नहीं इसे कौन सी बात ट्रिगर कर गई, इसने ब्लाक कर दिया। अरे भाई मेरी खुद की सोच पाँच साल पुराने अखिलेश से बहुत अलग है। मेरे विचार मेरे मित्रसूची के आधे से अधिक लोगों को अच्छे नहीं लगते, मुझे भी मेरी मित्रसूची के आधे से अधिक लोगों के विचार सही नहीं लग पाते तो क्या हम ब्लाक करतें फिरें। मतलब हद हो गई भाई। Objectivity नाम की भी चीज होती है, जो पसंद आया उस पर रियेक्ट कर लिया, जो नहीं पसंद आया उसे इग्नोर कर लिया। सिम्पल। थोड़े तो डेमोक्रेटिक बनो यार।


अभी कुछ समय पहले गुना में हमारे धर्मेन्द्र भैया के घर जाना हुआ, सिर्फ सोशल मीडिया से ही परिचय था। भैया असल में कई बार सोशल मीडिया में जिस तरह की पोस्ट लिख देते मुझे देखकर यह लगता कि बहुत खतरनाक किस्म के क्रांतिकारी टाइप के होंगे, दिमाग में उसी तरीके की आभाषी छवि बनी हुई थी, लेकिन जब सामने मिला, बात की तो सारा कुछ ध्वस्त हो गया। इतने विनम्र, इतने सरल, इतने सहज कि बस क्या कहूं।


सोशल मीडिया की दुनिया आभाषी है, छोटी है, इससे किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता नहीं चल सकता है, हम कैसे किसी को उसके एक लिखे हुए पोस्ट से फ्रेम कर सकते हैं। इसलिए किसी और को भी अगर मेरी अभिव्यक्ति से समस्या है तो करबध्द निवेदन है कि कम‌ से कम एक बार बात करके अपनी समस्या बता दिया करें, इतनी ईमानदारी रखा करें कि सीधे कह सकें कि तुमने जो लिखा है, मुझे यह ठीक नहीं लगा। बात करोगे नहीं और एकतरफा प्यार की तरह एकतरफा ब्लाक करते फिरोगे तो अनमोल हो जाओगे प्यारे। ये इस तरह सोशल मीडिया से जज करके दोस्ती यारी को दाँव पर लगाना बंद कर दो यार। 🙏



Friday, 12 March 2021

माता-पिता और बच्चों के बीच रिश्ते -

कुछ लोग हैं, खूब खार खाते हैं, यानि ईर्ष्या रखते हैं। उन्हें समस्या इस बात से है कि मैं घर से दूर हूं, माता-पिता की सेवा नहीं कर रहा हूं, घर परिवार की जिम्मेदारियों का वहन नहीं कर रहा हूं आदि आदि। और यह सब मुझे सामने कहने की हिम्मत नहीं है इसलिए दूसरों के सामने कहते फिरते हैं। घर-परिवार की जिम्मेदारी वाली चीज को दिखाते तो ऐसे हैं मानो खुद साक्षात श्रवण बने बैठे हों, जबकि इनके लिए माता-पिता की सेवा का अर्थ उन्हें शाम को चाट-कचौड़ी खिलाने ले जाना, घुमाने ले जाना, पिकनिक, टूर आदि पर ले जाना ही होता है, इन सब का रिश्तों की मजबूती से कोई खास मतलब नहीं। फिर भी कइयों के लिए तो यह सब करते रहना भी एक लंबे इंवेस्टमेंट की तरह होता है, ताकि जल्द से जल्द संपत्ति की हिस्सेदारी मिले और अलग होकर अपने मन का जी सकें। मैंने अधिकतर लोगों को देखा है वे माता-पिता का सम्मान करने का जमकर अभिनय करते हैं, वो बात अलग है कि इसके पीछे उनका स्वार्थ छिपा रहता है। 


मैं यह सब नहीं कर पाता हूं, यहाँ तक कि मुझे यह भी जानकारी नहीं है कि गाँव में मेरे नाम‌ पर कौन सी जमीन है, मुझे यह तक नहीं पता कि मेरे लिए किस खाते में भविष्य की सुरक्षा के लिए मेरे माता-पिता ने पैसे जमा किए हुए हैं। मैं कभी ध्यान नहीं देता हूं, मुझे यह सब ध्यान देने योग्य चीज नहीं लगती है। मुझे खुद को संभालना ज्यादा महत्व की चीज लगती है, और ऐसा करने से माता-पिता का अपमान नहीं हो जाता है। मुझे पता है मेरी अपनी स्वतंत्रता की कीमत क्या है, वैसे भी यह स्वतंत्रता एक दिन में हासिल नहीं हुई है, लंबे प्रयासों के बाद मिली है। माता-पिता बच्चों के जीवन जीने के तरीकों में बहुत अधिक हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं, मुझे तो नहीं करते हैं। मुझे घर से रोज कौन सी सब्जी खाई इसके लिए फोन नहीं आता है, न मैं कभी इन सबके लिए रोजाना फोन करता हूं, और यह सब एक दिन में नहीं हो जाता है, धीरे-धीरे होता है, आपको खुद अपने लिए प्रयास करने होते हैं।


रोज फोन में हालचाल न लेकर भी, यानि यह सब औपचारिकताएँ न करते हुए भी माता-पिता और बच्चों के बीच मजबूत संबंध बने रह सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे और बाकी दुनियावी रिश्ते भी मजबूती से बने रहते हैं, इस बात को वे लोग नहीं समझ सकते हैं जो आजीवन ढोंगी वाला जीवन जीते हैं, लगातार माता-पिता से झूठ बोलते हैं, उन्हें धोखा देते हैं। ऐसे लोग ही माता-पिता की सेवा सुश्रुषा का ढोंग करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कोई एक एनजीओ वाला समाजसेवी जो बच्चों या वृध्दों के लिए काम‌ कर रहा होता है, उसे उस पेशे की जिम्मेदारी के चलते हुए जबरन सुबह से शाम बनावटी मुस्कुराहट दिखाता होता है।


वैसे इन जैसों को मुझ जैसे लोगों से इस बात को‌ लेकर समस्या नहीं है कि मैं माता-पिता के साथ नहीं हूं, इनको समस्या इस बात से होती होगी कि मैं ईमानदार रिश्ता कायम करते हुए भी भ्रमणशील हूं। इनमें इतनी भी नैतिक ईमानदारी नहीं कि वे इस बात को स्वीकार सकें कि उन्हें मुझसे ईर्ष्या है, वे इतने कमजोर हैं कि उन्हें इतनी सी बात के लिए भी माता-पिता की छत्रछाया चाहिए होती है।


#बस_यूं_ही

Saturday, 6 March 2021

Day 2 of All India Solo Winter Ride - Memories

भारत भ्रमण में बहुत अलग-अलग लोगों से मिलना हुआ। बहुत से लोगों के घर गया, कहीं कहीं रूका। 

एक बार एक मित्र के घर में था, मित्र से पहली बार मिलना हुआ, उनके गाँव में, उनके घर में रहना हुआ। मित्र ने तो जो मेहमान नवाजी की सो ठीक, उनके घरवालों ने एक मिनट के लिए मुझे अकेला नहीं छोड़ा, एक तो मैं इतना लंबा सफर करके पहुंचा था, चैन से एक मिनट बैठने‌ का सोचूं तो भी पास आकर बैठे हुए थे। और कहने लगते कि लेट जाओ, अब लेटो तो साथ में दूसरे खाट में लेटकर और बताओ, और सुनाओ। इतना चलता है, इतने से समस्या नहीं होनी चाहिए। उस दिन एक दो दोस्तों के फोन भी आ रहे थे, मैंने कहा कि भाई आज तो फोन क्या चैट भी न कर पाऊंगा, तुम तो आज बख्श ही दो। और फिर उन दोस्तों से दो दिन बाद बात हुई। तो जो सबसे मजेदार चीज हुई वह बता रहा हूं, अगले दिन सुबह साढ़े पाँच बजे बाथरूम गया। मित्र की माताजी ने पूरे घरवालों को नींद से उठा दिया कि अरे भैयाजी कहाँ चले गये, कमरा में नहीं है, देखो देखो, और सारा घर छान मारा, मैं इधर टायलेट में इंतजार कर रहा हूं कि कब मामला शांत होगा, सुबह सुबह तो कम से कम थोड़ा अकेले छोड़ देते, सोचा आवाज ही लगा देता हूं कि इधर हूं। फिर क्या हुआ कि मित्र की माताजी आकर बाथरूम का दरवाजा खटखटाई और कहा - भैया अंदर हो। मैंने कहा - हाँ। फिर बोली - पानी वगैरह ठीक है न सब। मैंने कहा - हाँ जी, सब ठीक है।

फिर उन्होंने घरवालों को कहा - देखो हम कह रहे थे, भैयाजी इधर अंदर बइठे हैं पाखाना में। 


किसी विकसित देश में होता तो यह समस्या न होती, अब समझ आ रहा है कि विकसित देशों में टायलेट बाथरूम में दरवाजे क्यों नहीं होते हैं। हमें ऐसा समाज बनने की ओर बढ़ने में पता नहीं कितना समय लग जाएगा।

Wednesday, 3 March 2021

Day 124 of all india ride

कल एक लड़की मिली थी, अकेले भारत के कोने-कोने में घूम रही है, घूम क्या रही है मतलब जाकर रह रही है, ऐसा करते हुए उसे तीन महीने से अधिक हो चुके हैं। कल सुबह हमारी एक घंटे तक बहुत अच्छे से बात हुई, इस पर बाद में विस्तार से लिखूंगा, अभी के लिए यही कि वह भी मेरी ही तरह घूमने में विश्वास करती है। लेकिन मैं मानता हूं कि वो मेरे से बहुत आगे है। साउथ इंडियन है, योगा टीचर है, आनलाइन क्लासेस लेती है, पेटिंग भी सीखाती है, और अलग-अलग जगहों पर लंबे समय तक रहती है। योगा करती है तो छरहरी काया है, सुंदरता के भारतीय मानकों के हिसाब से सुंदर भी है। यह सब लिखना नहीं चाहिए लेकिन इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि जिस तरीके से वह घूम रही है इसमें खूबसूरती के ये पैमाने जम्बूद्वीप की सीमा में कहीं न कहीं बाधा बनते ही हैं और इस बात को जब मैंने उससे कहा तो इसमें उसकी स्वीकारोक्ति भी मिली।

कल हमारे एक मित्र कह रहे थे कि आपके पास पैसा है इसलिए आप मजे से घूम रहे हैं। घूमने वालों के लिए अधिकतर लोगों के मन में यही धारणा बैठी हुई है जबकि घूमने का पैसों से बहुत अधिक संबंध नहीं है। घूमना बहुत अधिक सस्ता है और इसका एक उदाहरण मैं आपको दे रहा हूं। कल जो लड़की मिली थी वह भारत के एक महंगे जगह में एक महीने फ्री में रहकर आई, खाने का भी बहुत अधिक खर्च नहीं था, फ्री में रहने के बदले वह जिनके घर में थी, उनके यहाँ अस्तबल में घोड़ों की देखभाल करती थी, घोड़ों को खाना देना, उनका मल साफ करना, नहलाना आदि। यह सब काम करने के लिए अपने ईगो को दफन करना होता है तभी ऐसा संभव होता है। इन सब चीजों को वे लोग कभी नहीं समझ सकते हैं जो मुद्रा से बाहर की दुनिया देखे नहीं है, अपने कुएँ से बाहर निकले नहीं हैं।

Tuesday, 2 March 2021

Day 123 of all india solo winter ride

जब से घूमने निकला हूं, बहुत से घूमने वाले मिले हैं, जो मेरी तरह ही महीनों से घूम रहे हैं, लेकिन एक भी ऐसा नहीं मिला जो सिर्फ घूम रहा हो, एक भी नहीं। यानि जो भी मिले हैं, अधिकतर work from home वाले ही हैं, कुछ एक Freelancers हैं, कुछ न कुछ काम भी कर रहे हैं और साथ में घूम भी रहे हैं। भले कुछ घंटे का काम करते हों लेकिन दिमाग में तो दिनभर एक काम वाली चीज बनी रहती है, इतना तो मैं समझ गया हूं। मुझे भी इस all India ride के बीच एक freelance काम मिला था, लेकिन मुझे कुछ हजार रूपयों के लिए परेशान होना सही नहीं लगा, मैं पूरी स्‍वतंत्रता से घूम नहीं पाता, ये स्वतंत्रता कितनी कीमती है न यह आप समझ सकते हैं, न मैं आपको समझा सकता हूं।


मुझे ऐसा लगता है कि लोग रुपयों के मकड़जाल में बहुत बुरे तरीके से फंसे हुए हैं, वे बहुत अधिक डरते हैं कि कहीं उन्होंने कुछ समय के लिए रूपये का साथ छोड़ दिया तो वे जी नहीं पाएंगे, एक नशे की तरह वो चीज उनके साथ चिपकी हुई है। वे रूपये को अपने हिसाब से नहीं नचाते बल्कि रूपया उन्हें मन मुताबिक नचाता है।


सिर्फ घूमना और कुछ छोटा मोटा काम करते हुए घूमना दोनों में जो बड़ा अंतर महसूस किया हूं उससे मुझे इस बात को लेकर बहुत खुशी हुई है कि मैं सिर्फ घूम रहा हूं।