सबसे पहली बात - गो प्रो एक्शन कैमरा है, एक्शन कैमरा है, एक्शन कैमरा है। गोप्रो का कैमरा जब लाँच होता है तो उसके साथ जो विज्ञापन वाली वीडियो आती है उसमें कोई पैराग्लाडिंग कर होता है, कोई स्केटिंग कर रहा होता है, कोई ऊंचाई से छलांग रहा होता है, स्कूबा डाइविंग, सर्फिंग आदि आदि। यानि इन सब फुटेज के माध्यम से अच्छे से समझा दिया जाता है कि एक्शन कैमरे किस काम में लाए जाते हैं, और दूसरे देशों के लोग एक्शन कैमरे का सदुपयोग भी करते हैं, हमेशा उससे कुछ अनूठा काम कर जाते हैं, जो शायद हमारे बस का भी नहीं। इसलिए भी हम भारतीय गोप्रो जैसे कैमरों की खूब फजीहत करते हैं, उससे रोड की वीडियो बनाते हैं, अरे भाई रोड की वीडियो बनाने में कौन सी क्रिएटिविटी होती है यार, मुझे तो आजतक समझ नहीं आया, वैसे ये काम कुछ हद तक दूसरे देशों के लोग भी करते हैं लेकिन वहाँ उनके इस काम में सचमुच एक्शन दिखता है, मेहनत दिखती है, क्रिएटिविटी दिखती है।
मैंने अपने सोलो राइड में एक्शन कैमरा नहीं लटकाया है, बस कुछ ठंड के कपड़े साथ हैं, यहाँ तक कि DSLR वगैरह भी साथ नहीं है, क्योंकि जितना कम सामान रहेगा, उतना सफर आसान रहेगा। असल मकसद घूमना है, लोगों से मिलना है, लेकिन लेकिन, जिस उम्मीद से कुछ दोस्त डिमांड कर रहे कि वीडियो बनाओ तो सोच रहा कैमरा लटका लूं, अब लोगों को डामर और सीसी रोड देखनी है तो वही सही, लेकिन अब जब वीडियो बनानी ही है तो कुछ उससे रचनात्मक कर जाने की एक जिम्मेदारी बढ़ जाएगी, खुद को भी तो भीतर से लगना चाहिए न कि कुछ ढंग का हो रहा, बाकी लाखों करोड़ों व्यू पाने का क्या है वो तो टिकटाॅक यूट्यूब के काॅमिक वीडियो को भी मिल जाते हैं।
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