एक हमारे मित्र रहे। उम्र में बड़े थे, शादी हो चुकी थी, दो छोटे बच्चे (एक लड़का एक लड़की) भी थे। लेकिन रिश्तों के बीच खटास कुछ ऐसी आई कि पत्नी झगड़ के अपने मायके चली गई। साल भर का समय बीत गया, लड़का घर में अकेला रहा। लड़के की माता की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी तो अब घर में सिर्फ दो ही लोग रह गये थे, एक लड़का और उसके पिता, और दोनों में बनती भी नहीं थी, दोनों में बातें भी नहीं होती थी, पिता ने कभी लड़की और उसके घर वालों से बात कर मामला सुलझाकर बहू को लाने का प्रयास भी नहीं किया। लड़का आए दिन परेशान रहने लगा, आए दिन पत्नी से वापस लौटने की मिन्नतें करने लगा, पूरे लाॅकडाउन भर हमारे घर आता रहा, वह बहुत अकेला पड़ चुका था, इस उम्मीद से मेरे पिता के पास आता कि वे कम से कम एक अभिभावक की तरह उसकी पत्नी को वापस घर लौटाने में कुछ मदद करें, पिछले कुछ महीनों में मेरे पिताजी ही उसके लिए पिता की तरह हो गये थे, एक मित्र की तरह उसको सबल देते रहे। लेकिन कल सुबह उस लड़के ने सुसाइड कर लिया। उसकी लाश देखने के लिए बच्चों समेत उस लड़की का परिवार देखने आ गया। लड़के के पिता ने बेटे की मौत पर यह तक कह दिया कि जो होना था हो गया, छोड़ो हटाओ। जब से घरवालों ने यह खबर दी है मुझे पता नहीं क्यों बहुत गुस्सा आ रहा है - इस मूढ़ समाज पर, जो ऐसे अपने ही समाज के लोगों को हाशिए में मरने के लिए छोड़ देता है, और ये एक उदाहरण नहीं है। खैर, मेरी नजर में तो समाज परिवार पहले ही उन्हें किश्तों में मार ही रहा था, वो बात अलग है कि उन्होंने सुसाइड करके समाज का सारा आरोप खुद पर ले लिया।
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