Friday, 6 November 2020

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आरोग्य सेतु एप्प का क्या हुआ? कोई खबर?

जो कोरोना पिछले छह महीनों से नहीं रूका,वो एक हफ्ते के लाॅकडाउन से क्या रूकेगा#Raipur

हमारे यहाँ माता-पिता इतने महान हुआ करते हैं कि जब वे अपने बच्चों की पिटाई करते हैं तो उस पिटाई के बीच कहीं बच्चा पलटवार ना कर दे इसलिए सुरक्षा के लिए कहानी ऐसी गढ़ दी गई, संस्कार ऐसे ठूंस दिए गए कि बच्चे मार तो खा सकते हैं लेकिन माता-पिता पर हाथ नहीं उठा सकते और न ही उन्हें रोक सकते हैं। अगर किसी बच्चे ने गलती से माता-पिता पर हाथ उठा दिया या उन्हें मारने से रोकने‌ की कोशिश की तो पाप लगता है, और यही पाप आगे चलकर बुढ़ापे में हाथ कांपना, लकवा मारना आदि बीमारियों के रूप में परिलक्षित होता है, इस बात को अगर सच मान लिया जाए तो फिर यही लाॅजिक उन माता-पिता पर भी लागू हो जो आजीवन अपने बच्चों के ऊपर मानसिक शारीरिक हिंसा करते हैं।

लोगों का पूरा ध्यान खाली बन्दर (डाॅक्टर) पर है।असली मदारी (नेता,अधिकारी) मजे में हैं।


सचमुच लोकतंत्र होता, सचमुच सरकार संवेदनशील होती तो जनगणना की तर्ज पर अभी तक घर-घर जाकर टेस्टिंग का काम शुरू हो जाना चाहिए था। 

यह कैसा लोकतंत्र है जिसमें लोक है ही नहीं, अगर है भी तो उसे हर छोटी सी बात में लाइन में लगवा दिया जाता है। हमें अपनी जान भी बचानी है, लाइन लगाकर भीड़ भी हम बढ़ाएं और दूसरों की जान भी खतरे में डालें। छल क्यों नहीं लग जाता ऐसे लोकतंत्र को।

एक ओवरहाइप्ड अभिनेत्री के आफिस ध्वस्त होने की खबर का राष्ट्रीय मुद्दा बन जाना और उस पर चर्चा करना उतना ही वीभत्स है जितना वो हथिनी के मरने की खबर या अमिताभ के अस्पताल का फुटेज या फिर सुशांत वाला मामला। हर नई खबर जो कि वास्तव में खबर ही नहीं, पहले से कहीं अधिक हाई वोल्टेज ड्रामे के साथ पेश की जाती है ताकि आमजन उसी के ईर्द-गिर्द भुलभुलैया में चक्कर लगाता रहे और असल मुद्दे पीछे छूटते रहें।

मैं अगर उस अभिनेत्री के जगह मैं होता तो क्या पता बिना दोषसिध्दि के इतना अपमान झेलकर कहीं केरोसिन डाल के खुद को जला न लेता। मीडिया चैनल आदि को हटाकर देखा जाए तो सबसे तकलीफदेह इन सबमें यह है कि महिलाएँ ही सबसे अधिक उस लड़की के‌ लिए हिंसा दिखा रही हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम कितने ह्रदयहीन, कितने असंवेदनशील समाज के रूप में आगे बढ़ते जा रहे हैं।

रिया को जेल भेजना स्वागत योग्य कदम है, अभी के समय में उनके लिए सबसे महफूज जगह वही है।

माना जाता है कि जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी लगातार शोषण झेला हो, उनके डीएनए में गुलामी शोषण का तत्व रह जाता है, ठीक उसी तरह प्रिविलेज क्लास के पास भी उस प्रिविलेज से आई भाषा, कला, वाणी, वाकपटुता, भाषायी चातुर्य, रटंत विद्या, राज-नीति आदि आदि विरासत के रूप में ही डीएनए से मिलती रहती है।

काढ़ा, एंटीबायोटिक आदि से बचें, कोरोना सिर्फ और सिर्फ इच्छाशक्ति से ही मरेगा।

कल से लोग कह रहे कि जीडीपी फलां परसेंट नीचे चला गया, इस बात से घोर असहमति है, मुझे तो उल्टे ग्रोथ दिखाई देता है। जिनको खरीददारी करनी है, कर ही रहे हैं, रूपए का प्रवाह बना हुआ है, लोग बाइक, कार, घर, सोना सब जमकर खरीद रहे, पिज्जा बर्गर दारू सब ऑनलाइन मंगवा रहे तो कैसे जीडीपी नीचे जाएगा भाई। ये सब वर्तमान सरकार को नीचा दिखाने की साजिश है। अब लोग तर्क देंगे कि मजदूर, किसानों, निम्न वर्ग आदि की हालत बद से बदतर हो चुकी, कितनों का धंधा बैठ गया, कितनों की नौकरी छीन गई, तो भाई आपको पता होना चाहिए कि ये सब जीडीपी में काउंट नहीं होता है।

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