सद्गुरू जैसे बाबाओं पर जैसे ही आप सवाल खड़ा करते हैं, स्वत: ही आप गलत नकारात्मक हो जाते हैं। इन जैसे बाबाओं ने ऐसा आभामण्डल बनाया होता है कि आप इनकी कोई गलती पकड़ ही नहीं सकते, ये बहुत ही ज्यादा स्मार्ट होते हैं। विद्वता के नाम पर इनके पास सिर्फ लच्छेदार तर्क होते हैं, उन्हीं तर्कों को तमाम तरह की उलझनों में जकड़ा हुआ भारतीय समाज विद्वता के डोस के रूप में ग्रहण करता जाता है और उनके मोहपाश में बँधता चला जाता है। सद्गुरू जैसे बाबा इसलिए भी बाकी फर्जी बाबाओं से खतरनाक हैं क्योंकि ये कोई गलती नहीं करते हैं, आपने कभी नहीं सुना होगा कि सद्गुरू से चूक हुई, गलत बयान दिया, बेबाक राय रखी, कुछ नहीं, कुछ भी ऐसा सुनने नहीं मिलेगा। असल में इनका चरित्र दीमक की तरह होता है, ये समाज को अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से काट काट के पीछे धकेल रहे होते हैं और समाज को पता भी नहीं चलने देते हैं। इनकी बातें इनके समाधान पानी के बुलबुले की तरह होता है और लोग हैं कि उस बुलबुले को ही बहता हुआ पानी समझ लेते हैं।
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