मैं पहले समझ नहीं पा रहा था कि इस बिल में ऐसी क्या खराबी है जो हंगामा मचा हुआ है। मैं यह मानने को तैयार नहीं था कि कोई सरकार इतनी बड़ी राजनयिक गलती कर सकती है, जैसा हंगामा चल रहा है। लेकिन चूंकि फेसबुक सोशल मीडिया से बहुत बातें समझ में आती नहीं है तब तक सूचना उपलब्ध भी नहीं थी। आप लोगों को अचंभा होगा लेकिन इस बिल में हंगामा मचाने जैसा कुछ भी नहीं है। इस बिल में संशोधन किया गया है उससे विदेश में रहने वाले मुसलमान जो भारतीय नागरिक नहीं है या जो मुसलमान भारत के नागरिक हैं, उनकी जो स्थिति बिल में संशोधन के पहले थी, वैसी ही स्थिति रहेगी, उसमें कोई अंतर नहीं है।
तीन देश, पाकिस्तान बांग्लादेश अफगानिस्तान में जो लोग मुस्लिम नहीं हैं, अल्पसंख्यक हैं उन लोगों को छूट दी गई है कि जो 12 वर्ष की अवधि थी उसे 6 वर्ष कर दी गई है। लेकिन मुस्लिम के लिए जो पहले था उन नियमों को हटाया नहीं गया है। भारत पाकिस्तान अफगानिस्तान के जो गैर मुस्लिम लोग हैं उनके अतिरिक्त अगर दुनिया के बाकी देशों में जो हिन्दू सिख ईसाई पारसी जो भी रहते हैं उनके लिए पहले जैसे ही नियम हैं कोई अंतर नहीं है। जो नियम हिन्दू के लिए लागू है, मुस्लिम ईसाई सबके लिए लागू है। केवल इन तीन देशों के गैर मुस्लिम लोगों के लिए नियम में परिवर्तन हुआ है कि उनका जो 11-12 साल का समय हुआ करता था, उसे 5-6 वर्ष कर दिया गया है।
मुझे तो इस बिल में कोई खराबी दिखाई नहीं दे रही है। ये दुनिया जानती है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान बांग्लादेश जो घोषित रूप से मुस्लिम देश हैं, कानूनी तौर पर मुस्लिम देश हैं। इनमें मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या कहीं 98% से अधिक है तो कहीं कहीं 96% कुछ है। जहाँ 2-4 % बाकी अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोग रहते हों, वहाँ उनकी स्थिति क्या होगी इसका अंदाजा आप और हम नहीं लगा सकते हैं। तो यदि अगर उनके लिए, उन शरणार्थी लोगों के लिए अगर 11-12 वर्ष के समय को अगर 5-6 वर्ष कर दिया गया है तो इसमें खराबी क्या है, इसमें विरोध करने की जरूरत क्या है, मैं समझ नहीं पा रहा हूं। कायदे से इसका तो स्वागत किया जाना चाहिए।
ये बिल मुस्लिम विरोधी तब होता जब मुसलमानों के लिए जो पहले नियम थे उनमें बदलाव किया गया होता कि अब पूर्ण प्रतिबंध है। मुस्लिम यहाँ का नागरिक नहीं बन सकता, ऐसा कुछ तो है नहीं। उन सबके लिए वैसे ही नियम हैं जैसे इन तीन देशों के अलावा बाकी देशों के विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए हैं।
विरोध की बात कहाँ से आ रही है, मैं समझ नहीं पा रहा है। मुझे लगता है कि कई बार हममें एक ऐसा चरित्र आ गया है कि ये सरकार कुछ भी करती है मुझे इसका विरोध करना है। मैं यह नहीं कह रहा कि ये संशोधन बहुत महान काम है लेकिन ये मुस्लिम विरोधी बिल नहीं है, ये संशोधन मुस्लिम विरोधी संशोधन नहीं है। बहुत अच्छी बात होती कि संशोधन ना ही करते और अगर करते तो उन तीन देशों के मुस्लिम समुदाय को भी रख लेते, लेकिन व्यवहारिक रूप से ये भी हम सोच सकते हैं कि भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ होती रही हैं, बहुत बम फूटे हैं, बहुत समस्याएं आई हैं, बहुत कुछ हुआ है, इसलिए नकारा भी नहीं जा सकता है। एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला भी हो जाता है।
दुनिया के बहुत ऐसे देश हैं जहाँ ऐसे नियम बने हैं कि बहुत ऐसे मसले हैं जहाँ अलग-अलग नियम बने होते हैं। अब अगर भारत में भी पाकिस्तान अफगानिस्तान बांग्लादेश के लिए अलग नियम बना दिया, अब उसमें ये तो नहीं कहा गया है कि इन तीन देशों के लिए नया नियम बना है, और उन देशों के मुस्लिमों को भारत की नागरिकता मिलेगी ही नहीं, बल्कि उनके लिए पहले जो नियम था, अभी भी वही लागू है। अब इसमें विरोध कहाँ से हो जाता है। मुझे लगता है कई बार हमें चीजों को ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए, देखना चाहिए, तथ्यों को समझना चाहिए, उसके बाद फिर समर्थन या विरोध करना चाहिए। वरना स्थिति यह होती है हमारे आपके विरोध का मतलब नहीं रह जाता है। हमारे आपके विरोध या समर्थन का मतलब तभी है, जब हम सोच विचारकर कोई चीज करते हैं, बिना पूर्वाग्रह के करते हैं।
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