Friday, 13 December 2019

प्रवासी श्रमिकों के पलायन की दास्तान

शाहिद अपने कुछ साथी दोस्तों के साथ बैंगलोर के लक्ष्मीरानारायणा स्लम में रहते हैं। उनका जन्मस्थान असम का जोरहाट जिला है। आज से ठीक दो साल पहले उसने बारहवीं की परीक्षा पास की थी उसके बाद कुछ समय तक भारतीय सेना में चयन के लिए खूब तैयारियां की, जमकर दौड़ लगाई, कुछ नंबरों से चूक जाने के पश्चात् घर की परिस्थिति ऐसी बनी कि अब वह घर में खाली बैठे नहीं रह सकते थे‌।

शाहिद ने फैसला किया कि अब वह खाली नहीं बैठेंगे। वे अपना गाँव, अपना घर छोड़कर काम की तलाश में बैंगलोर आ गये। बैंगलोर में शाहिद के अपने कुछ दोस्त थे जिनकी मदद से उन्हें एक बड़ी मल्टीनेशनल आईटी कंपनी में स्वीपर का काम मिल गया, उनकी मासिक आय 14000 है। शाहिद ने बताया कि उन्हें लक्ष्मीनारायणा स्लम में रहते हुए तीन महीने ही हुए हैं, इससे पहले वह जब नये नये इस शहर में आए थे तो एक पीजी में रहते थे जहाँ उसका महीने का किराया 5000 रूपए था, खर्च ज्यादा होने की वजह से उन्होंने पीजी छोड़ दिया और स्लम में आ गए।

स्लम में आकर रहने की एक बड़ी वजह शाहिद यह बताते हैं कि स्लम उन्हें अपने घर जैसा लगता है, वह इसलिए क्योंकि यहाँ वह अपने असम के लोगों के साथ रहते हैं, अपनी भाषा, अपने लोगों के बीच उन्हें अपनापन महसूस होता है। टिन से बने उस स्लम के एक छोटे से कमरे का किराया 4000 रूपए है, जिसमें बाथरूम भी साथ में संलग्न है। शाहिद ने बताया कि वे इस कमरे में कुल चार लोग रहते हैं जो सभी असम के हैं।

स्लम में साफ-सफाई तो एक बड़ा मसला रहा है, जिसका कोई हल नहीं निकल पाता है लेकिन बिजली और पानी की सुविधा भरपूर है। पानी के बारे में पूछने पर पता चला कि हर सप्ताह पानी का टैंकर आता है, जिसे स्लम का मालिक मुहैया कराता है, वे बड़े ड्रम में पानी इकट्ठा कर रख लेते हैं, इसी पानी से उनका खाना बनाने का, स्नान आदि का काम हो जाता है। पीने के पानी के लिए वे पानी का कैन खरीदते हैं।

लक्ष्मीनारायणा स्लम के बारे में उन्होंने बताया कि यहाँ अधिकांशतः असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा एवं पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों के लोग रहते हैं, स्थानीय लोगों की संख्या ना के बराबर है। अधिकतर लोग पलायन किए हुए श्रमिक ही हैं, जो एक सीमित समय के लिए आते हैं, और कमाकर अपने घर वापस लौट जाते हैं, उन्हीं के लिए टिन की छत डालकर इन झुग्गियों की बसाहट तैयार हुई है।

पूछने पर शाहिद ने बताया कि वे गरीब नहीं है, उनके भी अपने गाँव में खेत हैं, अपना बड़ा सा घर है, स्लम में रहने का अर्थ यह नहीं कि वे आर्थिक रूप से कमजोर हैं, वे आगे बताते हैं कि वे कुछ सीमित समय के लिए यहाँ काम करने आए हैं, पैसा जमा करने के पश्चात साल भर बाद अपने घर असम वापस लौट जाएंगे, इसलिए वे रहने और खाने में ज्यादा पैसे खर्च नहीं करना चाहते। आईटी कंपनी में स्वीपर की नौकरी करने के साथ ही साथ वे अभी एक कामचलाऊ मोटरसाइकिल लेने का भी सोच रहे हैं। वह इसलिए क्योंकि वे दिन में 7 घंटें स्वीपर का काम करते हैं, बचे खुचे समय का भी वे सदुपयोग करना चाहते हैं ताकि वहाँ से भी उन्हें कुछ पैसे मिल जाएं।

शाहिद अपने शौक के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने फुटबाल खेलना बेहद पसंद है, काम की वजह से उनका यह शौक पूरा नहीं हो पाता है या यूं कहें कि समय नहीं मिल पाता है। एक वाकया उन्होंने बताया कि एक बार छुट्टी के दिन वे एक स्टेडियम में 1000 रूपया देकर बस फुटबाल खेलने गये थे। कुछ इस तरह कभी-कभी जब पैसे इकट्ठे होते हैं तो वे अपने फुटबाल खेलने का शौक पूरा कर लेते हैं।

शाहिद अपने भविष्य के‌ बारे में बात करते हुए बताते हैं कि उनका मन तो है कि वे आर्मी में जाकर देश की सेवा करें, लेकिन वक्त और हालात सबके लिए एक जैसे नहीं होते हैं, इसलिए चाहकर भी जिम्मेदारियों से दूर नहीं जा सकते। आगे उन्होंने बताया कि वे इन मेट्रो शहरों में ज्यादा समय तक नहीं रहना चाहते हैं, वे कुछ पैसे इकट्ठा कर जल्दी से अपने घर लौट जाएंगे और वहाँ अपने गाँव में ही कोई एक छोटा सा व्यवसाय करेंगे। 


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