Monday, 16 December 2019

गेहूं के साथ घुन भी पीस जाता है -


                       सन् 2012 की बात है। तब हम इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे, हमारे साथ रहने वाला एक दोस्त एक दिन खूब शराब पीकर आया। अनेक शराबी टाइप के लोगों की तरह उसकी एक खराब आदत यह थी कि पीने के बाद उसे चिल्लाना पसंद था। दिसंबर जनवरी की ही बात होगी, रात के 11 बज रहे थे। मैं अपने कमरे में सो रहा था। किसी ने इतने जोर से दरवाजा पीटा कि मेरी नींद खुल गई, जैसे ही मैंने दरवाजा खोला, सामने खड़े लड़के ने मेरे गाल पर एक जोर का थप्पड़ रसीद कर दिया। मेरी आँख जो ढंग से खुली नहीं थी, एक थप्पड़ के बाद पूरी तरह से खुल गई। मेरा तो गुस्सा सातवें आसमान पर था, मैंने उससे उस वक्त इतना ही कहा कि - मारा क्यों। उसने कहा कि बाहर आ, सब पता चल जाएगा।
                      मैं बाहर गया तो पता चला कि हमारा दोस्त और उसके साथ एक और लड़का जो था, दोनों को पहले ही थप्पड़ पड़ चुके थे। असल में उन्होंने नशे में पड़ोस के एक घर के सामने खूब उल्टा सीधा नशे में हुल्लड़ मचाया था। अब जिस घर के सामने दिसंबर की ठंड में रात के 11 बजे उन्होंने हल्ला मचाया उनके परिवार में अधिकतर लोग पुलिस विभाग से थे। बाप टीआई था, एक बेटा सिपाही। सिपाही बेटा हमारी ही उम्र का होगा। वह अपने बाप के साथ आया था और उसने ही सबको थप्पड़ लगाया था। टीआई साहब उन दोनों लड़कों को कुछ घंटे जेल की हवा खिलाने के लिए ले जाने वाले थे, क्योंकि वे दोनों अभी भी नशे में झूम‌ रहे थे। मैंने उनसे बात कर जैसे-तैसे मामला शांत कर लिया। बाद में जब सब कुछ नार्मल हुआ तो मैंने टीआई साहब को कहा कि आपके बेटे ने यह ठीक नहीं किया, मैं सोया हुआ था और मुझे भी थप्पड़ मारा गया। उस समय टीआई साहब ने मुझे इतना ही कहा था - यार देखो " गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है " ये सूक्ति उसी समय मैंने पहली बार उनसे सुना था। पता नहीं क्यों जब भी देश में कहीं निर्दोष लोगों की पिटाई होती है ये घटना याद आ जाती है।

2 comments:

  1. Sahi Baat h, yha us cheej ke mtlb btane ke liye aisa likha h lekin wo Police wala bhi apne Power ka us waqt miss use kiya h

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    1. असल में मैंने इस घटना की जिक्र आजकल की समसामयिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया है। मेरे लिए वो घटना बहुत छोटी चीज रही, इसलिए कभी तवज्जो नहीं दी। क्योंकि साथ में रहने का भुगतान मुझे करना पड़ा। इसमें गुस्सा होने, मन में बात रखने या हल्ला मचाने जैसा कुछ भी नहीं। राष्ट्रीय स्तर पर आजकल जो लोग अपने साथ हो रही घटनाओं को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर प्रायोजित करते रहते हैं, उस पर हंसी आती है।

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