हमें देशभक्ति की बदलनी होगी परिभाषा,
हमें बताना होगा उस आने वाली पीढ़ी को,
कि बस 52 सेकेंड खड़े होना देशभक्ति नहीं होती,
न ही सिर्फ सीमा पर तैनात आर्मी के लिए घर बैठे हुंकार भरते रहना देशभक्ति होती है,
देशभक्ति उसमें भी है कि हम अपने शहर की ऐसी-तैसी करने में कितना कम योगदान देते हैं,
ऐसे मृत होते शहर जहाँ माचिस की डिबिया जैसी ईमारतें हैं,
बिना आँगन के, पेड़-पौधों के, बंकर रूपी घरों में रहने के बजाय,
उस शहर के बोझ का हिस्सा ना बनना भी देश सेवा से कम नहीं है।
हमें पैदा करनी होगी अपने जलस्त्रोतों, जंगलों आदि को नष्ट होने से बचाने की देशभक्ति,
हमें ठूंसना होगा ऐसी देशभक्ति को संविधान के उन मूल कर्तव्यों में, जीवन मूल्यों में, लोगों के खून में।
हमें बताना होगा उस आने वाली पीढ़ी को,
कि बस 52 सेकेंड खड़े होना देशभक्ति नहीं होती,
न ही सिर्फ सीमा पर तैनात आर्मी के लिए घर बैठे हुंकार भरते रहना देशभक्ति होती है,
देशभक्ति उसमें भी है कि हम अपने शहर की ऐसी-तैसी करने में कितना कम योगदान देते हैं,
ऐसे मृत होते शहर जहाँ माचिस की डिबिया जैसी ईमारतें हैं,
बिना आँगन के, पेड़-पौधों के, बंकर रूपी घरों में रहने के बजाय,
उस शहर के बोझ का हिस्सा ना बनना भी देश सेवा से कम नहीं है।
हमें पैदा करनी होगी अपने जलस्त्रोतों, जंगलों आदि को नष्ट होने से बचाने की देशभक्ति,
हमें ठूंसना होगा ऐसी देशभक्ति को संविधान के उन मूल कर्तव्यों में, जीवन मूल्यों में, लोगों के खून में।
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