अभी कुछ देर पहले एक गार्डन में टहलने गया था, गार्डन में बहुत से बच्चे थे, उस गार्डन के गेट में जैसे ही घुसा वहीं मुझे एक बच्चा मिल गया जो पता नहीं क्यों मुझे देखते ही खुद ही मेरा हाथ पकड़ कर टहलने लग गया, अपना नाम खुद ही बताने लग गया। अपनी मां और दादी के साथ आया था लेकिन उनको पीछे छोड़ मेरे साथ तेजी से चलने लग गया। वो बच्चा चार साल का था, उस अनजान बच्चे को और मुझे मिले अभी तीस सेकेंड भी नहीं हुए थे और वो मुझे ये कहने लगा कि बोलो आप क्या खाओगे, आपके लिए घर में क्या बनवाऊं, चलो आप चलना मेरे साथ घर, हम दोनों साथ में खाएंगे। उसकी बातें सुनके मैं तो सोच पड़ गया कि ये क्या हो रहा है। वो बच्चा मेरे साथ खेलने लग गया, मैं जैसा करता वो भी वैसे ही देखकर करने लग जाता। मेरे साथ पुश अप्स करने लगा, दौड़ने लगा, दंड बैठक करने लगा, योगासन करने लगा। एक बार तो उछल कूद करते जोर से गिर भी गया, हाथ पांव छिल गये, लेकिन जैसे ही मैं दौड़कर उसके पास गया और उसकी आंखों में देखकर मुस्कुराया तो वो जो फूट-फूट के बस रोने ही वाला था, अब हंसने लग गया और अपना सारा दर्द भूल गया और फिर से मेरे साथ खेलने लग गया, गार्डन में यहाँ से वहाँ पकड़ पकड़ के मुझे ले गया। उसकी मम्मी और दादी भी बस एकटक देखते ही रह गये कि कैसे एक अनजान के साथ इतना घुल मिल गया है, मुझे भी बराबर हैरानी हो रही थी। एक बार वो एक मशीन को पकड़ के एक्सरसाइज कर रहा था फिर उसी समय मेरा एक फोन आया तो मैं जैसे ही थोड़ी दूर चलकर गया, उतने में ही उसने चिल्लाकर कहा कि मैं जब तक ये कर रहा हूं आप यहीं रहना पास, जबकि उसकी दादी वहीं पास में थी।
पूरे एक घंटे तक मैं उसके साथ रहा, चाह के भी उससे खुद को अलग नहीं कर पाया, उसने ऐसा होने ही नहीं दिया, उसकी सारी हरकतें देखकर ऐसा लग रहा था कि शायद मैं भी तो बचपन में ऐसा ही रहा होऊंगा।
जब हम गार्डन से जा रहे थे तो उसने अपनी मम्मी का हाथ पकड़ने के बदले मेरा हाथ पकड़ लिया, मैंने कहा कि चलो अब मैं जाता हूं, फिर भी वो नहीं नहीं करने लग गया, आखिर में वो मुझे अपने घर लेकर ही माना। उन्होंने मुझे चाय के लिए पूछा, चाय पीता नहीं इसलिए मैंने मना कर दिया, फिर पानी पी लिया, और कुछ देर बातें हुई। एक कहानी की तरह ये सब कुछ अपने आप हो रहा था। उस चार साल के बच्चे के हिसाब से ही तो हो रहा था ये सब, शायद हम उसी के इशारों में नाच रहे थे।
अब उसकी मम्मी ने मुझसे कहा कि पता नहीं आजतक किसी अनजान से इतना घुला मिला नहीं है, आज ऐसा क्या हुआ है इसे पता नहीं आपमें ऐसा क्या देख लिया इसने कि घर तक खींच लाया। वो बच्चा वहीं था, मैंने भी उससे पूछा कि कैसे मैं ही क्यों दिखा तुमको गार्डन में, और भी तो लोग थे, मेरा ही हाथ क्यों पकड़ लिये, मैं तुम्हें नुकसान पहुंचा देता तो, तुम तो मुझे जानते भी नहीं हो न, पहली बार मिले हो, उसने प्रतिक्रिया में बड़ी गंभीर मुस्कुराहट फेर दी, जिसे सिर्फ मैं ही देख पा रहा था, समझ पा रहा था। फिर उसकी दादी ने कहा कि बोल भैया अच्छे हैं क्यों इसलिए? तो उस बच्चे ने सर हिलाते हुए हां किया।
फिर मैंने थोड़ी देर बाद वहां से विदा लिया।
हमेशा की तरह मैं उन सभी लोगों के बारे में कुछ भी नहीं पूछा, उस बच्चे की तस्वीर तक नहीं ली, बस उसने अपना जो नाम शुरूआत में बताया था सम्राट वही याद है। कई बार हालात ऐसे होते हैं कि आप उसमें ऐसे खो जाते हैं कि फिर आपको ये ख्याल ही नहीं आता कि आपको तस्वीर भी लेनी थी।
खैर....
अधिकतर ऐसा हुआ है कि जब मैं कुछ परेशान सा रहता हूं। जब मन में तरह-तरह के सवाल घूमने लग जाते हैं कि अब समय के मुताबिक तुम्हें भी ढल जाना चाहिए। ढोंग, स्वार्थ, लिप्सा, बाजारवाद आदि आदि गुणों का समावेश कुछ मात्रा में ही सही, कर लेना चाहिए, नहीं तो जीना दूभर हो जाएगा। जब-जब टूटने को होता हूं ढेरो सवाल मन में चलते रहते हैं और तब तब पता नहीं क्यों उसी वक्त ऐसे वाकये अनायास ही होते जाते हैं। मैं समझ नहीं पाता कि ऐसा कैसे होता है, क्यों होता है, किसलिए होता है, और मेरे साथ ही अधिकतर ऐसा कैसे हो जाता है। वैसे ये सब होने के बाद एक अच्छी चीज ये होती है कि मैं काफी हल्का महसूस करता हूं। ऐसा लगता है कि किसी ने मेरे अंदर तक पहुंचकर मुझे शांत करने की कोशिश की हो।
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