इस झोले में सिर्फ प्लास्टिक की थैलियाँ हैं, कितनी थैलियाँ होंगी क्या मालूम लेकिन आज अचानक उठाकर देखा तो पता चला कि वजन 5 किलो से भी अधिक होगा। ये थैलियां मेरे द्वारा पिछले लगभग दस महीने में इकट्ठी की गई है। मैंने ऐसे ही एक दिन सोचा कि अब से एक भी प्लास्टिक की थैली कहीं बाहर नहीं फेकूंगा, न ही कूड़ेदान में डालूंगा। शुरूआती कुछ दिनों में तो बहुत आसान लगा, लेकिन धीरे-धीरे समझ आया कि स्वच्छता को जीवन में उतारना वाकई बड़ी सजगता का काम है। यानि आप दिन भर से थक कर घर लौट रहे हैं तो भी आपको प्लास्टिक की थैली को अपने जगह रखना है, आपका मन ठीक है, शरीर ठीक नहीं है, फिर भी आलसीपन में प्लास्टिक की थैली इधर-उधर नहीं कहीं भी नहीं फेंक देना है, चाहे कैसी भी परिस्थिति आए आपको हमेशा अपना ये एक काम छोटा सा काम करते रहना है। कभी-कभी तो ऐसा हुआ कि जैसे अमूमन कपड़े धोते वक्त लोगों की जेब से कोई कागज का टुकड़ा या नोट निकलता है, मेरी जेब से अधिकतर प्लास्टिक की थैलियां निकल ही जाती। मैं जहाँ जाता, प्लास्टिक की थैली अगर मेरे इस्तेमाल में आती तो उसे अपने जेब में ही रख लेता और इस वजह से मुझे हंसी का पात्र बनना पड़ता, ऐसा कई बार हुआ लेकिन प्लास्टिक की थैलियां इकट्ठी होती रही। उन प्लास्टिक थैलियों में जो बहुत साफ सुथरी और अच्छी स्थिति में थी, मैंने उन्हें फोल्ड करके कुछ एक सब्जी बेचने वालों को देना शुरू किया, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि कुछ लोगों ने लेने से मना कर दिया, फिर कुछ लोगों ने भरोसा किया और ले लिया। महीनों गुजर गए, अब ये थैलियां इकट्ठा करना धीरे-धीरे मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया या यूं कहें कि आदत में ही शामिल हो गया है। मेरी देखादेखी में मेरे आसपड़ोस के भाई दोस्त यार भी कुछ हद तक ये काम करने लगे। कुछ एक दोस्त लोग सप्ताह भर तक थैली इकट्ठा करने के बाद कहते कि इससे कौन सा क्या हो जाएगा, और इसको इकट्ठा करके क्या कर लेंगे। मेरे पास ऐसे सवालों का एक ही जवाब है कि हमें अपने हिस्से के काम को करने के लिए बहाने तलाशना छोड़ देना चाहिए। हर चीज में क्या क्यूं कैसे की आदत छोड़ कुछ ऐसे काम इसलिए भी कर देने चाहिए ताकि हमें अपने इंसान होने का बोध होता रहे।
Thursday, 3 May 2018
क्या स्वच्छता को जीवन में उतारना सचमुच इतना आसान है?
इस झोले में सिर्फ प्लास्टिक की थैलियाँ हैं, कितनी थैलियाँ होंगी क्या मालूम लेकिन आज अचानक उठाकर देखा तो पता चला कि वजन 5 किलो से भी अधिक होगा। ये थैलियां मेरे द्वारा पिछले लगभग दस महीने में इकट्ठी की गई है। मैंने ऐसे ही एक दिन सोचा कि अब से एक भी प्लास्टिक की थैली कहीं बाहर नहीं फेकूंगा, न ही कूड़ेदान में डालूंगा। शुरूआती कुछ दिनों में तो बहुत आसान लगा, लेकिन धीरे-धीरे समझ आया कि स्वच्छता को जीवन में उतारना वाकई बड़ी सजगता का काम है। यानि आप दिन भर से थक कर घर लौट रहे हैं तो भी आपको प्लास्टिक की थैली को अपने जगह रखना है, आपका मन ठीक है, शरीर ठीक नहीं है, फिर भी आलसीपन में प्लास्टिक की थैली इधर-उधर नहीं कहीं भी नहीं फेंक देना है, चाहे कैसी भी परिस्थिति आए आपको हमेशा अपना ये एक काम छोटा सा काम करते रहना है। कभी-कभी तो ऐसा हुआ कि जैसे अमूमन कपड़े धोते वक्त लोगों की जेब से कोई कागज का टुकड़ा या नोट निकलता है, मेरी जेब से अधिकतर प्लास्टिक की थैलियां निकल ही जाती। मैं जहाँ जाता, प्लास्टिक की थैली अगर मेरे इस्तेमाल में आती तो उसे अपने जेब में ही रख लेता और इस वजह से मुझे हंसी का पात्र बनना पड़ता, ऐसा कई बार हुआ लेकिन प्लास्टिक की थैलियां इकट्ठी होती रही। उन प्लास्टिक थैलियों में जो बहुत साफ सुथरी और अच्छी स्थिति में थी, मैंने उन्हें फोल्ड करके कुछ एक सब्जी बेचने वालों को देना शुरू किया, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि कुछ लोगों ने लेने से मना कर दिया, फिर कुछ लोगों ने भरोसा किया और ले लिया। महीनों गुजर गए, अब ये थैलियां इकट्ठा करना धीरे-धीरे मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया या यूं कहें कि आदत में ही शामिल हो गया है। मेरी देखादेखी में मेरे आसपड़ोस के भाई दोस्त यार भी कुछ हद तक ये काम करने लगे। कुछ एक दोस्त लोग सप्ताह भर तक थैली इकट्ठा करने के बाद कहते कि इससे कौन सा क्या हो जाएगा, और इसको इकट्ठा करके क्या कर लेंगे। मेरे पास ऐसे सवालों का एक ही जवाब है कि हमें अपने हिस्से के काम को करने के लिए बहाने तलाशना छोड़ देना चाहिए। हर चीज में क्या क्यूं कैसे की आदत छोड़ कुछ ऐसे काम इसलिए भी कर देने चाहिए ताकि हमें अपने इंसान होने का बोध होता रहे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment