Tuesday, 15 May 2018

A Poem by Kriti Bhargav

ज़ख्म कितने जमाने ने इस दिल को‌ दिए,
आज कोई देखे तो दिखा दूं उसको।

जिंदगी ने करवटें कितनी बदली,
आज कोई पूछे तो बता दूं उसको।

पथरीली राहों पर ठोकरें खाना कोई शिकस्त नहीं,
कोई हारता कहे तो समझा दूं उसको।

मेरे गम की नींद न चुरा पाए,
कोई ग़र है जगा तो बता मैं सुला दूं उसको।

हर शख्स कुछ खोजता है और खो जाता है,
न खोजता कोई मिले तो मैं खुदा दूं उसको।

तपती जमीं को सावन ने महका दिया मगर,
सावन से कोई जले तो मैं टूटा अरमान दूं उसको।

सुनाए जब दर्द कोई, दामन छीन लेने का अपने,
मैं कफन न देने वाले का शुक्र सीखा दूं उसको।

गिरते गिरते उठ पाने का, साहस खो चुका जब कोई,
थाम बांह उसकी, दे मेरे हाथ मैं, किसी का साथ दूं उसको।

एक तू ही नहीं, खफा और भी हैं जमाने से,
जो दे दर्द तुझे, तू न दे आंसुओं के समंदर उसको।

No comments:

Post a Comment