Monday, 21 May 2018

नवरात्र पूजा, भराड़ी मंदिर, मुनस्यारी

नवरात्र की पूजा के लिए हम भराड़ी मंदिर गये थे, यह मंदिर मुनस्यारी से लगभग दस से बारह किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है। आधी दूरी तक यानि पापड़ी-पैकुती गांव तक जाने के लिए गाड़ी से जा सकते हैं, यह सड़क कुछ बहुत अच्छी नहीं है, काफी पथरीली सड़क है। यहाँ से आधे घंटे पैदल चलकर भराड़ी मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
दोपहर को बलि प्रथा शुरू हुई। भराड़ी मंदिर में आंखों के सामने बीस पच्चीस सुंदर सुंदर बकरियों की बलि देखने के बाद मन मसोस कर रह गया था‌, सही गलत कुछ समझ नहीं आ रहा था। इस बारे में कुछ ज्यादा लिखने की इच्छा भी नहीं हो रही है, असमंजस में हूं।
शाम के पांच बज चुके थे। पूजा समाप्त हो चुकी थी। मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ भराड़ी मंदिर से खड़ी चढ़ाई चढ़ते हुए मुनस्यारी की ओर लौट रहा था। यह रास्ता ठीक नंदा देवी मंदिर, डानाधार के पास जाकर खत्म होता है। हमें ये खड़ी चढ़ाई पूरा करने में दो घंटे से अधिक का समय लग गया। मुनस्यारी पहुंचते तक अंधेरा होना शुरू हो गया था, मेरे दोस्त चढ़ाई चढ़ते मुझसे कुछ आगे निकल गये, इस बीच रास्ते में मुझे एक दीदी मिली,
उन्होंने खुद आगे से मुझसे पूछा - भैया आप यहाँ घूमने आए हो?
मैंने कहा - नहीं बस ऐसे ही कुछ महीनों के लिए आया हूं।
दीदी - आप कहां से हो?
मैं - जी मैं छत्तीसगढ़ से हूं।
दीदी - ये कहां हुआ भैया।
मैं - काफी दूर हुआ। तीन दिन लग जाता है यहाँ से जाने में।
दीदी - यहाँ कैसे?
मैं - बस ऐसे ही पहुंच गया। एक कमरा यहाँ किराए पे ले रखा है। समय समय पर बच्चों को पढ़ाता भी हूं। बाकी समय आसपास के गाँवों की सैर करने चला जाता हूं।
दीदी - चलो ठीक ही हुआ। हमको तो अभी जाकर बच्चों के लिए खाना भी बनाना है। घर में दोनों को छोड़कर आई हूं।
मैं - अच्छा, दीदी आपके पति बाहर रहते होंगे फिर?
दीदी - हां दिल्ली रहते हैं, वहीं प्राइवेट में काम करना हुआ। साल में कभी-कभी आ जाते हैं।
मैं - अच्छा‌।
दीदी - आपका बढ़िया हुआ भैया, आप तो जाकर खाना खा के सो जाएंगे‌। हमको तो अभी बच्चों को देखना भी हुआ।
मैं - आप ऐसा क्यों कहती हैं।
दीदी - यहाँ पहाड़ों में तो ऐसा ही हुआ।
मैं - चलिए दीदी जी आप मुझे अपने घर ले चलिए, आपको एतराज न हो तो मैं आप लोगों के लिए खाना बनाना चाहता हूं।
दीदी - नहीं भैया, ऐसी कोई बात नहीं है, मैंने ऐसे ही बता दिया।
मैं - आपने मुझ अनजान को अपना समझकर अपने मन की बात की‌। आपके लिए थोड़ी मेहनत कर लूंगा तो कौन सा थक जाऊंगा।
दीदी - आपने इतना कह दिया भैया। मैं इसे याद रख लूंगी।
मैं - चलिए ठीक है।

और फिर ढाई घंटे की चलाई के बाद हम मुनस्यारी पहुंच चुके थे।





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