A - क्या तुम्हारे शहर में भी बारिश हो रही है?
B - हां।
A - क्या तुमने भी बारिश की बूंदे देखी आज?
B - हां मैंने देखी। पर जैसे ही मैं उन बूंदों में एक एक बूंद अलग से देखने लगती। मैंने देखा कि वो पत्तियों के ऊपर सड़कों पर गिरकर बिखरने लगे थे।
A - अच्छा जब वो जमीन पर आकर गिर रहे थे क्या तुमने उनकी आवाज सुनी?
B - हां मैंने सुनी न। कितनी अलग-अलग आवाजें हैं। कोई बूंद पत्तियों पर आकर गिरती है तो कोई किसी छतरी पर तो कोई किसी की टीन की छत पर।
A - शायद तुम भी मेरी तरह ये सारी आवाजें सुन रही हो। लेकिन क्या तुमने बालकनी में जाकर उन बूंदों को छुआ?
B - अभी तक तो नहीं। मैं चाय की चुस्कियों में और मेरे कानों में पड़ती ये बारिश की इस धुन के साथ कहीं खो गई थी।
A - कहाँ खो गई थी। क्या वहीं जहां मैं खो गया हूं इन बूंदों को छूकर।
B - हां वहीं।
A - देखो न इन बूंदों के सहारे मेरी तुमसे आज फिर मुलाकात हो गई।
B - हां।
A - अब फिर मुलाकात कब होगी।
B - पता नहीं।
A - कहो न?
B - शायद अब कुछ महीने बाद जब बर्फबारी होगी तो गिरते हुए snowflakes को इकट्ठा कर आंखें बंद कर हम फिर से एक दूसरे से मिलेंगे।
A - मुझे उस दिन का इंतजार है।
B - मुझे भी।
To be continued .....
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