ये लघु प्रेम कथा अनिरुद्ध और शालिनी की है...दोनों हिमाचल के किन्नौर में रहते हैं। किसी कारणवश दोनों अलग हो चुके हैं। या यूं कहें कि वे एक दूसरे से प्रत्यक्ष रूप से कभी मिले ही नहीं। लेकिन एक रफ कॉपी ने इनके मध्य एक रिश्ते को कायम कर दिया है।
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एक दिन अनिरूध्द शालिनी से कहता है - सच बताना क्या तुमने अभी भी वो रफ कॉपी संभाल कर रखी है?
शालिनी - हां।
अनिरूध्द - पर क्यों?
शालिनी - मुझे पसंद है।
अनिरूध्द - अच्छा! मैंने तुम्हें कुछ दिन इतिहास पढ़ाया था उस कॉपी में, वो सब्जेक्ट भी ऐसा जिससे तुम्हें बिल्कुल भी लगाव न था फिर भी।
शालिनी - हां फिर भी। मुझे पसंद है तो है। मैं हमेशा अपने पास रखती हूं, अभी महीने भर के लिए मामा के घर गई थी तो भी अपने साथ लेकर गई थी। खैर,आप नहीं समझेंगे।
अनिरूध्द - समझाओ।
शालिनी - हर बात बोलकर कही नहीं जाती। ये रफ कॉपी मेरे लिए सिर्फ एक कॉपी नहीं है।
अनिरूध्द(नाराज होकर) - मेरे ख्याल से इस बात को एक साल हो चुके हैं, इस बीच कोई बातचीत नहीं, कोई पता नहीं, सब तरफ से तुमने मुझे ब्लाक कर रखा है। किसी नये नंबर से संपर्क करने की कोशिश करता हूं तो भी ब्लाक। और आज इस रफ कॉपी के सहारे इतनी भावनाएँ क्यों उमड़ रही है?
शालिनी - एक साल, इस एक साल में एक भी दिन ऐसा नहीं था कि मैंने इस कॉपी को अपने से अलग किया हो और आप मुझ पर शक कर रहे हैं। हां किया ब्लाक मेरी मर्जी, पर छुपकर किसी दूसरे की आईडी से हमेशा आपको देखा करती थी, और ये रफ कॉपी, ये साल भर से मेरे तकिए के पास ही रहता था, आज भी है। छोड़िए, मैं आपको कितनी बातें बताऊं, और बोलकर सब कुछ खराब नहीं करना चाहती। आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें तो बेहतर होगा। मुझे और कोई बात नहीं करनी।
अनिरुद्ध - अच्छा ठीक है,पर मेरी एक बात सुन लो।
..
...
.....
और इससे पहले कि अनिरूध्द कुछ कहता, फोन कट जाता है।
स्वाभिमान से परिपूर्ण शालिनी के ब्लाक लिस्ट में आज फिर से एक नया नंबर आ चुका है।
शालिनी - हां।
अनिरूध्द - पर क्यों?
शालिनी - मुझे पसंद है।
अनिरूध्द - अच्छा! मैंने तुम्हें कुछ दिन इतिहास पढ़ाया था उस कॉपी में, वो सब्जेक्ट भी ऐसा जिससे तुम्हें बिल्कुल भी लगाव न था फिर भी।
शालिनी - हां फिर भी। मुझे पसंद है तो है। मैं हमेशा अपने पास रखती हूं, अभी महीने भर के लिए मामा के घर गई थी तो भी अपने साथ लेकर गई थी। खैर,आप नहीं समझेंगे।
अनिरूध्द - समझाओ।
शालिनी - हर बात बोलकर कही नहीं जाती। ये रफ कॉपी मेरे लिए सिर्फ एक कॉपी नहीं है।
अनिरूध्द(नाराज होकर) - मेरे ख्याल से इस बात को एक साल हो चुके हैं, इस बीच कोई बातचीत नहीं, कोई पता नहीं, सब तरफ से तुमने मुझे ब्लाक कर रखा है। किसी नये नंबर से संपर्क करने की कोशिश करता हूं तो भी ब्लाक। और आज इस रफ कॉपी के सहारे इतनी भावनाएँ क्यों उमड़ रही है?
शालिनी - एक साल, इस एक साल में एक भी दिन ऐसा नहीं था कि मैंने इस कॉपी को अपने से अलग किया हो और आप मुझ पर शक कर रहे हैं। हां किया ब्लाक मेरी मर्जी, पर छुपकर किसी दूसरे की आईडी से हमेशा आपको देखा करती थी, और ये रफ कॉपी, ये साल भर से मेरे तकिए के पास ही रहता था, आज भी है। छोड़िए, मैं आपको कितनी बातें बताऊं, और बोलकर सब कुछ खराब नहीं करना चाहती। आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें तो बेहतर होगा। मुझे और कोई बात नहीं करनी।
अनिरुद्ध - अच्छा ठीक है,पर मेरी एक बात सुन लो।
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और इससे पहले कि अनिरूध्द कुछ कहता, फोन कट जाता है।
स्वाभिमान से परिपूर्ण शालिनी के ब्लाक लिस्ट में आज फिर से एक नया नंबर आ चुका है।
Bahut shaandaar
ReplyDeletethanks dear
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