प्रणाम दा,
आशा है घर पर सब ठीक होंगे। अब तो भतीजा आयुष यहाँ से वहाँ दौड़ रहा होगा। भाभी दीदी भी अच्छे होंगे। और शायद आपके कंधे का फ्रेक्चर भी अब ठीक हो गया होगा। तारा, सुरेश, मनोज, भुप्पी, कैलाशदा, जीत्तूदा, हरीशदा, मामू, लालाजी और आप सभी को नवरात्रि की शुभकामनाएं।
मैं बहुत समय से सोच रहा था कि आपको कुछ लिखूं लेकिन मुहूर्त नहीं बन पा रहा था। कल जब आपने अपने दुकान में हुई चोरी के बारे में बताया तो आंखें चौंधिया गई। मैं रात भर खुद से सवाल करता रहा कि
-क्या सच में ये वही मुनस्यारी है?
वो तो अच्छा हुआ कि आपने बदलते समय की मांग को देखते हुए अपने दुकान में कुछ महीने पहले ही सीसीटीवी लगा लिया और आपको आपका सामान वापस मिल गया। खैर इसमें चोरी करने वाले को मैं उतना दोष नहीं देता, मामला सांस्कृतिक हमले का है, चोरी करने वाला अगर मुनस्यारी का होगा भी तो भी मैं उसे मुन्सयारी का नहीं मानता। यानि जिसके रग-रग में मुनस्यारी का खून होगा और जो यहां की संस्कृति में पला बढ़ा है, उसके मन में ऐसे काम करने का ख्याल आ ही नहीं सकता, असंभव है। चोरी करने वाले को तुरंत समझाइश देकर पहाड़ से दूर मैदानों में भेज देना चाहिए, ऐसे लोग पहाड़ में रहने लायक नहीं हैं। इस एक मामले में कोई रहम, कोई दया नहीं ऐसा मुझे लगता है।
दा, साल 2015 में जब मैं पहली बार मुनस्यारी आया, मैं किसी को जानता तक नहीं था। आपसे भी पहली बार मिला। शायद सप्ताह भर आप लोगों के साथ रहा फिर वापस दिल्ली आ गया था। मुझे आज भी याद है मैं रात को मुन्सयारी पहुंचा था। अगले दिन सुबह जब हम आपके कमरे से फ्रेश होकर शाॅप की ओर निकलने लगे तो मैंने आपसे पूछा कि लाक नहीं लगाओगे क्या, अरे सिटकनी तो लगा लो कम से कम। आपने उस समय कहा था कि " अखिलेश ये मुनस्यारी है "।
दूसरे ही दिन आपकी दुकान पर बैठा था, आपने मुझे काउंटर में बैठा दिया और शायद कुछ काम से चले गये, पैसे रखने वाली तिजोरी भी जस की तस खुली थी। एक मैं अनजान जिसे आपसे मिले सिर्फ एक दिन हुआ है उसे आप काउंटर संभालने के लिए बोलकर घंटे भर के लिए निकल जाते हैं। मुझे उस समय ऐसा लग रहा था कि मैं सपना देख रहा हूं। फिर मैंने देखा आपके चार पांच दोस्त हैं जो बराबर आपका काउंटर संभालते हैं और पैसे के हेरफेर की कोई चिंता ही नहीं। मैं धीरे-धीरे जब चीजों को और ध्यान से देखने लगा तो समझ आया कि यही तो मुनस्यारी की संस्कृति है। इन सब चीजों से मैं इतना प्रभावित हुआ कि दुनिया की सारी चकाचौंध वाली चीजें मुझे मुनस्यारी की इस संस्कृति के सामने फीकी लगने लगी, और मैंने हाथ पांव ढीले कर लिए और एक तपस्वी मन से मुनस्यारी की इस संस्कृति को आत्मसात कर लिया।
और मुनस्यारी ने मुझे जो दिया वो शायद दुनिया की कोई ताकत मुझे नहीं दे सकती। जो प्यार और अपनापन मुझे मुनस्यारी में मिला वो कहीं और मिलना असंभव है। कभी किसी ने छोटे भाई की तरह अपना लिया तो किसी ने बड़े भाई की तरह, तो किसी ने घर के बेटे की तरह लाड़-प्यार दिया। जब मैदानों में आता हूं तो बहुत कोशिश करता हूं इन सब चीजों को भुलाने की। लेकिन नहीं हो पाता यार दा क्या करें।
लोग मुझसे तरह-तरह के सवाल करते हैं, अटकलें लगाते हैं कि तुम्हें पहाड़ से कैसे इतना लगाव हो गया? मैं शांत हो जाता हूं, मुझे पता है मैं बोलूंगा तो भी वे मुझे पूरी तरह से नहीं समझ पाएंगे इसलिए मैं कुछ नहीं बोलता। लोग समझते हैं कि मुझे हिमालय और इन सुंदर वादियों से लगाव है अब उन्हें कैसे समझाया जाए कि जिस संस्कृति का स्वाद मैंने पाया है उसके सामने दुनिया जहां के रूतबे, अर्थबल, संख्याबल एवं सुविधाएं सब कुछ त्याज्य(त्यागने योग्य) हैं और इस बात को वही समझेगा जिसने पूरे समर्पण भाव से इस संस्कृति का रस चखा है।
दा, मुझे अभी फिर से आपकी बात याद रही है जो आपने आज से दो साल पहले कही थी कि " अखिलेश ये मुनस्यारी है"
- हां ये वही मुनस्यारी है जहां आज भी लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने परिजनों के यहां ककड़ी और दूध की बोतलें पूरे विश्वास के साथ मैक्स की गाड़ियों के माध्यम से पहुंचाते हैं।
- हां ये वही मुनस्यारी है जहाँ दुनिया के सबसे खुश रहने वाले लोग रहते हैं।
- हां ये वही मुनस्यारी है जहां के स्कूली बच्चे कितने भी उदंड क्यों न हो, वे माथे में टीका लगाना और अपने से बड़ों को हाथ जोड़कर नमस्ते करना कभी नहीं भूलते।
- हां ये वही मुनस्यारी है जहां एक पत्थर तोड़ने वाले का भी समाज में उतना ही सम्मान है जितना कि एक किसी अधिकारी या नेता का।
- हां ये वही मुनस्यारी है जहां आपके पड़ोसी आपको सुबह दोपहर रात हर समय पूछते हैं कि खाना खाया कि नहीं और ऐसा करते हुए वे कभी नहीं थकते।
- हां ये वही मुनस्यारी है जहाँ का कौतिक (मेला) और देवी-देवता की पूजा आज भी लोगों के लिए किसी एक बड़े त्यार(त्यौहार) से कम नहीं।
- हां ये वही मुनस्यारी है जहाँ आज भी मनुष्यता अपने चरमोत्कर्ष पर है।
- हां ये वही मुनस्यारी है जिसे "सार संसार एक मुनस्यार " कहा जाता है और हमें मुनस्यारी की इस अद्वितीय संस्कृति पर गर्व है, बार-बार गर्व है।
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