गुरू माँ,
मत दिया कीजिए मुझे सपने,
या कुछ ऐसा उपाय कर दीजिए कि मुझे किसी का सपना ही ना आए,
इतना सारा सच संभालना मुश्किल होता है,
अपने ही आसपास, अपने से ही जुड़े लोगों का आने वाला कल देख लेना,
और फिर कुछ दिन बाद उसी सपने को पूरा होते देखना और उन्हीं के द्वारा सुनना,
ये कहीं से भी सुखद तो नहीं कहा जा सकता,
कितना तकलीफदेह है ये।
हां ये प्रायोजित सच मैं और नहीं देख सकता,
अब और नहीं देखना चाहता सुख-दु:ख, मौत, दुर्घटनाएँ,यात् राएँ, अन्य कोई गतिविधि या इन सब से जुड़ा भविष्य,
छीन लीजिए मुझसे किसी और का प्रारब्ध देख लेने की ये कला,
आपको क्या लगता हूं कि मैं खुद को व्यस्त नहीं रखता हूं, मैं दिन भर अपने काम में व्यस्त रहता हूं लेकिन ये सपने हैं कि फिर भी मेरा पीछा नहीं छोड़ते,
पता है बहुत मुश्किल होता है टूट कर फिर से जुड़ना, ये बार-बार खुद को विखंडित कर संलयित होने का भार मुझ पर ही क्यूं?
आखिर मैं ही क्यों?
आप कहती हैं कि ये पूर्णतया प्राकृतिक है कुछ ही लोगों के साथ ऐसा होता है,
लेकिन इससे न तो मैं अपना भला कर पा रहा हूं न ही किसी और का,
इसलिए मुझे इन सबसे निजात पाना है,
फिलहाल मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं है,
जीना है एक सामान्य सी जिन्दगी,
हो सके तो मुझे वो कहीं से लौटा दीजिए,
मुझसे ये सपनों का बोझ नहीं संभाला जाता।
Maa nanda devi mandir, Martoli Village, Munsyari (UK) |
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