आजकल बुलेट का ट्रेंड चल रहा है। जिसको उतना नहीं भी पसंद वो भी भेड़चाल में बुलेट की सवारी कर रहा है, जिसका चालीस किलो वजन है जो ढंग से गाड़ी ढुला भी नहीं पाता वो भी बुलेट चला रहा है। खैर सबके अपने-अपने शौक है इसमें सही गलत या आलोचना करने का कोई तुक नहीं। वैसे भी भारत में बेवजह कुछ भी ट्रेंड हो जाता है। और हम प्रतिक्रिया देकर इस पूरी प्रक्रिया में रसपान करते रहते हैं। पागलपन, दिखावा, सनक और बेवकूफी से भरे सैकड़ों उदाहरण हमारे सामने आए रोज दिखते रहते हैं।
खैर बात बुलेट से होने वाले प्रभावों की होनी थी। तो ऐसा है कि बुलेट से, यानि इसकी आवाज से छोटे बच्चों को बहुत नुकसान होता है। अब आप सोच रहे होंगे कि शोर शराबा करने वाली और भी चीजें हैं, बुलेट पर ही सवालिया निशान क्यों?
अच्छा अभी कुछ दिन पहले की एक घटना बताता हूं। मैं एक इडली सेंटर में नाश्ता कर रहा था। वहाँ एक और कोई लड़का साथ में था जो मेरे से पहले आया था और उस के पास बुलेट थी। हम दोनों नाश्ता कर रहे थे तभी दो लोग और आए एक बाप अपनी छोटी बच्ची को लेकर आया था। बच्ची की उम्र एक साल रही होगी, उस बच्ची के पिता ने बच्ची को गाड़ी में ही बिठाया, और इडली पैक कराने आ गये। पिता ने अपनी बिटिया को दस मीटर दूर गाड़ी में अकेले छोड़ दिया है। अब चूंकि बच्चे बाइक के सामने का हैंडल मजबूती से पकड़ कर रखते हैं इसलिए शायद उसके पिता निश्चिंत हैं।
अब बुलेट वाला लड़का नाश्ता खत्म कर उठता है अपनी बुलेट में किक मारता है जोर से एक्सीलेटर देता है और निकल जाता है। सब कुछ पांच सेकेंड में ही हो जाता है।
अब ध्यान रहे कि वो एक साल की बच्ची वहीं पास में एक दूसरी बाइक में बैठी हुई है। अब जैसे ही बुलेट स्टार्ट होता है उसकी आवाज सुनकर वो रोने लगती है, और डर के मारे गाड़ी से गिरने ही वाली रहती है कि उसके पापा आकर उसे संभालते हैं। बुलेट वाला कुछ सेकेंड में ही निकल चुका है, और उसके कुछ सेकेंड बाद बच्चे रोने लगती है। इडली पैक कराने में व्यस्त उस बच्ची के पिता को भी समझ नहीं आता कि बच्ची के रोने की वजह आखिर क्या है। अब सोचिए उस छोटी बच्ची पर एक बुलेट की उस क्षणिक आवाज का कितना बुरा प्रभाव पड़ा होगा। वो अंदर से कितना डर गयी होगी, कितना सहम गयी होगी, इसका आप और हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते।
एक और घटना ठीक कुछ ऐसी ही हुई थी,एक छोटा बच्चा था, लेकिन वो बुलेट की आवाज से बिल्कुल नहीं रोया। लेकिन फिर भी ये घटना ऊपर लिखी पहली घटना से ज्यादा भयावह है। वो ऐसे कि मैंने उस बच्चे का चेहरा देख लिया, उस मासूम से चेहरे पर खामोशी और खौफ के बादल मंडरा रहे थे, कितना डर बैठ गया था उस बच्चे में वो त्वरित आवाज सुनकर। वो इस डर को रोकर बाहर निकाल भी नहीं पाया। इस छोटी सी घटना ने उसके मनोविज्ञान को कितनी चोट पहुंचाई होगी इसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। बहरहाल...
ऐसे कितने उदाहरण दे सकता हूं आपके सामने।
ये सब कुछ लिखने का मकसद ये है कि बच्चों के दिमाग में इन सब चीजों से अत्यधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, एक बार बचपन में कोई बात हो गई या ऐसी छोटी छोटी चीजें, ये सब जीवनपर्यन्त उनके चेतन अचेतन में जमा होकर उन्हें प्रभावित करती रहती है और हमें फिर समझ नहीं आता कि सब ठीक तो चल रहा था ये अचानक बच्चे का व्यवहार ऐसा कैसे हो गया।
इसलिए बुलेट चलाने वालों से और जो नहीं चलाते उनसे भी निवेदन है कि इन छोटी-छोटी चीजों का ख्याल किया जाए। वैसे भी बच्चे सबको प्यारे होते हैं, जिन्हें बच्चों से उतना लगाव नहीं होता वे भी बच्चों के बीच जब रहते हैं तो प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हैं।
मुझे तो लगता है एक 12th पास लड़के में भी इतनी समझ तो होती ही है कि बच्चों के सामने ज्यादा न चिल्लाया जाए, उनके सामने झगड़ा न किया जाए, यानि एक उम्र तक उन्हें हर प्रकार की हिंसा, शोर आदि से थोड़ा दूर रखा जाए। बच्चे हमारे कल के कर्ताधर्ता हैं, उनके व्यक्तित्व के निर्माण के इस चरण को लेकर हमारी इतनी न्यूनतम समझ तो होनी ही चाहिए कि हम इन छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान दें, अगर किताबी ज्ञान ही सब कुछ है, और हम इन सब बातों पर ध्यान नहीं दे पाते तो हमें अपने आसपास किसी नदी के एनीकट में छलांग लगाकर मर जाना चाहिए।
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