महीने भर बाद अनिरुद्ध फिर एक दूसरे नंबर से शालिनी से बात करने का प्रयास करता है। तीन चार बार मनाने बुझाने के बाद शालिनी उसकी बात सुनने को राजी हो जाती है।
अनिरुद्ध - तुम मेरे लिए इतना समर्पित हो। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करता हूं। पर अभी कहीं से भी मैं इसको संभालने की स्थिति में नहीं हूं ये तुम भी समझती हो। मेरे ऐसे समय में तुम्हारा बेमन से मुझसे बातें करना मुझे ठीक नहीं लगता। तुम इतना गुस्सा क्यों करने लग जाती हो। फिर जब मैं बात नहीं करुंगा तो फिर दुखियारी की तरह आंगन में बैठे मुझे याद करने लगोगी। क्यों बेवजह इतनी तपस्या करती हो। खुशी-खुशी बात कर लिया करो।
शालिनी - आपने इस बीच मेरी खामोशी नहीं समझी है तो फिर बात करने का फायदा ही क्या है। आप किस तरह से मुझसे बात कर रहे हैं आप देख लीजिए। कहीं से भी नहीं लगता कि आप मेरे हालात को समझ भी पा रहे हैं। मेरे मन में जो आपके प्रति भावना बस चुकी है वो अब सांस छीनते तक जायेगी नहीं, आप फैसला कर लीजिए आप मेरा ये प्रेम संभाल पायेंगे या नहीं। मानती हूं आप पर बड़ी जिम्मेवारियां हैं, लेकिन आप ये भी तो देखिए कि आप बड़े-बड़े फैसले ले लिया करते हैं और यूं चुटकियों में सब ठीक भी कर लेते हैं, लेकिन जैसे ही मेरी बात आती है पता नहीं आपको क्या हो जाता है। आप मुझे लेकर इतने ढीले क्यों पड़ जाते हैं मुझे समझ नहीं आता।
अनिरुद्ध - मैं ढीला नहीं पड़ा हूं। पहाड़ का खून आज भी मेरे रगों में उतना ही बहता है जितना पहले था। रूंजू-चंचल की प्रेम कहानी की तरह मैं भी जीवन के उतार-चढ़ाव, सारे बहाव झेल लूंगा। पर समय के खेल को मैं समझ नहीं पाता इसलिए कहता हूं कि तुम किसी को हां कर अपना जीवन बसा लो यानि और कितना इंतजार। तुम्हारा ऐसे खामोशी से इंतजार करना मुझे डराया है। कितनी यातनाओं से, लड़ाईयों से, घटनाओं से मैं आये रोज गुजरता रहता हूं, कितनी अनिश्चितताओं से भरा ये मेरा जीवन हो चला है, तुम इस बात को खूब समझती हो। और शालिनी तुमने जो ये जिद पकड़ ली है कि मैं कितने भी साल इंतजार कर लूंगी ये आज के समय में कहीं से भी मुझे ठीक नहीं लगता और ये रफ कापी को हटा दो हमारे बीच से। बचकानी हरकत के सिवा और कुछ नहीं लगता मुझे ये। ऐसी छिछली भावनाओं से तुम्हें सिवाय तकलीफ के और कुछ नहीं मिलेगा।
शालिनी - मेरी मर्जी मैं जो भी करुं उस रफ कापी के साथ। आप कौन होते हैं मुझे नीति सिखाने वाले। आप सिर्फ बातें बना रहे हैं और मुझे पता है आप मेरे शहर को कभी नहीं लौटेंगे, हां अब तो मैं ऐसे ही कहूंगी, इसे ही आज से आखिरी सच मान कर चलूंगी।
और ये रफ कापी इससे आपको क्या दुश्मनी है। यही तो आपकी एकमात्र निशानी है इसे अगर मैंने अपनी खुशी के लिए रखा हुआ है तो आपको क्या तकलीफ है।सुनिए, अब आप मेरे शहर को लौटेंगे तो भी मैं न मिलूंगी, क्योंकि मैं भी अपना शहर छोड़ चुकी हूं,मर जाऊंगी पर अपना सही पता नहीं बताऊंगी। देख लीजिएगा आप ढूंढते रह जाएंगे फिर भी न मिलूंगी।
अनिरूध्द - मैं क्यों ढूंढने लगा तुम्हें? और तुम्हें अगर उस कापी में मेरी झलक मिलती है तो अकेले संभालो, इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
शालिनी - तो फिर आज के बाद कभी मत पूछिएगा कि मैंने वो कापी रखा है या नहीं। ये सोच लीजिएगा कि मैंने वो कापी जला दी है।
अब रखिए फोन, मत कीजिएगा मुझसे बात। मैं नंबर ब्लाक करते-करते थक चुकी हूं।
और फोन फिर से कट जाता है।
और शालिनी के ब्लाक लिस्ट में फिर से एक नया नंबर आ जाता है।
अनिरुद्ध - तुम मेरे लिए इतना समर्पित हो। मैं तुम्हारी भावनाओं का सम्मान करता हूं। पर अभी कहीं से भी मैं इसको संभालने की स्थिति में नहीं हूं ये तुम भी समझती हो। मेरे ऐसे समय में तुम्हारा बेमन से मुझसे बातें करना मुझे ठीक नहीं लगता। तुम इतना गुस्सा क्यों करने लग जाती हो। फिर जब मैं बात नहीं करुंगा तो फिर दुखियारी की तरह आंगन में बैठे मुझे याद करने लगोगी। क्यों बेवजह इतनी तपस्या करती हो। खुशी-खुशी बात कर लिया करो।
शालिनी - आपने इस बीच मेरी खामोशी नहीं समझी है तो फिर बात करने का फायदा ही क्या है। आप किस तरह से मुझसे बात कर रहे हैं आप देख लीजिए। कहीं से भी नहीं लगता कि आप मेरे हालात को समझ भी पा रहे हैं। मेरे मन में जो आपके प्रति भावना बस चुकी है वो अब सांस छीनते तक जायेगी नहीं, आप फैसला कर लीजिए आप मेरा ये प्रेम संभाल पायेंगे या नहीं। मानती हूं आप पर बड़ी जिम्मेवारियां हैं, लेकिन आप ये भी तो देखिए कि आप बड़े-बड़े फैसले ले लिया करते हैं और यूं चुटकियों में सब ठीक भी कर लेते हैं, लेकिन जैसे ही मेरी बात आती है पता नहीं आपको क्या हो जाता है। आप मुझे लेकर इतने ढीले क्यों पड़ जाते हैं मुझे समझ नहीं आता।
अनिरुद्ध - मैं ढीला नहीं पड़ा हूं। पहाड़ का खून आज भी मेरे रगों में उतना ही बहता है जितना पहले था। रूंजू-चंचल की प्रेम कहानी की तरह मैं भी जीवन के उतार-चढ़ाव, सारे बहाव झेल लूंगा। पर समय के खेल को मैं समझ नहीं पाता इसलिए कहता हूं कि तुम किसी को हां कर अपना जीवन बसा लो यानि और कितना इंतजार। तुम्हारा ऐसे खामोशी से इंतजार करना मुझे डराया है। कितनी यातनाओं से, लड़ाईयों से, घटनाओं से मैं आये रोज गुजरता रहता हूं, कितनी अनिश्चितताओं से भरा ये मेरा जीवन हो चला है, तुम इस बात को खूब समझती हो। और शालिनी तुमने जो ये जिद पकड़ ली है कि मैं कितने भी साल इंतजार कर लूंगी ये आज के समय में कहीं से भी मुझे ठीक नहीं लगता और ये रफ कापी को हटा दो हमारे बीच से। बचकानी हरकत के सिवा और कुछ नहीं लगता मुझे ये। ऐसी छिछली भावनाओं से तुम्हें सिवाय तकलीफ के और कुछ नहीं मिलेगा।
शालिनी - मेरी मर्जी मैं जो भी करुं उस रफ कापी के साथ। आप कौन होते हैं मुझे नीति सिखाने वाले। आप सिर्फ बातें बना रहे हैं और मुझे पता है आप मेरे शहर को कभी नहीं लौटेंगे, हां अब तो मैं ऐसे ही कहूंगी, इसे ही आज से आखिरी सच मान कर चलूंगी।
और ये रफ कापी इससे आपको क्या दुश्मनी है। यही तो आपकी एकमात्र निशानी है इसे अगर मैंने अपनी खुशी के लिए रखा हुआ है तो आपको क्या तकलीफ है।सुनिए, अब आप मेरे शहर को लौटेंगे तो भी मैं न मिलूंगी, क्योंकि मैं भी अपना शहर छोड़ चुकी हूं,मर जाऊंगी पर अपना सही पता नहीं बताऊंगी। देख लीजिएगा आप ढूंढते रह जाएंगे फिर भी न मिलूंगी।
अनिरूध्द - मैं क्यों ढूंढने लगा तुम्हें? और तुम्हें अगर उस कापी में मेरी झलक मिलती है तो अकेले संभालो, इससे ज्यादा और कुछ नहीं।
शालिनी - तो फिर आज के बाद कभी मत पूछिएगा कि मैंने वो कापी रखा है या नहीं। ये सोच लीजिएगा कि मैंने वो कापी जला दी है।
अब रखिए फोन, मत कीजिएगा मुझसे बात। मैं नंबर ब्लाक करते-करते थक चुकी हूं।
और फोन फिर से कट जाता है।
और शालिनी के ब्लाक लिस्ट में फिर से एक नया नंबर आ जाता है।