Saturday, 6 August 2016

Tracing Endangered Specie-

कहानी - ।

पिछले कुछ सालों से एक विलुप्तप्राय जीव की खोज में लगा हुआ हूं।
किसी संस्था के लिए नहीं कर रहा,बस ये समझ लीजिए की एक धुन है तलाश कर रहा हूं तो कर ही रहा हूं। हिमाचल का किन्नौर जिला, दुर्गम पथरीली सड़कों से होते हुए बस आगे बढ़ती जा रही थी।
कल-कल करती सतलुज नदी सृजनात्मक मनोवेगों का आह्वान कर रही थी, बस की खिड़की से ताकता हुआ यही सोच रहा था कि दिखने में कैसा होगा महान हिमालय..जन्सकार और कैलाश पर्वत भी तो देखना है काश मौसम अच्छा हो और सबके दर्शन हो जाये। उत्सुकता अपनी चरमसीमा को लांघ चुकी थी।
अपने अगले पड़ाव रिकोंग पियो बस स्टेशन में उतरा ही था..और ये क्या मेरे सामने तो वही विलुप्तप्राय जीव खड़े थे जिनकी मुझे तलाश रहती है एक नहीं वो भी दो दो।
मैं उन दोनों को देख रहा था.. बूढ़ा और बुढ़िया दोनों सर पे सामान लादे हुए थे, उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र से हम आये हैं,पैसे चोरी हो गये हैं उन्होंने कहा कि खाने के लिए कुछ पैसे दो दो। आव देखा न ताव,नजर में थी तो बस उनकी सजल आंखें,मैंने तीस रुपए दे दिए।

आप सोच रहे होंगे विलुप्तप्राय जीव के बीच ये बूढ़े कहां से आ गये।
हां मैं इंसानों की तलाश में हूं क्योंकि इंसानों की एक विशिष्ट प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है।
वनस्पति एवं जंतुओं का समझ में आता है लेकिन इंसान ये कैसे?

आगे पढ़ते जाओ बताता हूं।

तो हुआ यूं कि मैंने बूढ़े को पैसे दे के विदा कर दिया।
फिर अपने पर्स से मैंने सौ रूपये निकालकर जेब में डाला और पर्स अंदर बैग में रख दिया..मैं रिचार्ज कराने एक दुकान में गया..वहां रिचार्ज नहीं हुआ दुकान से बाहर निकला तो वहीं पर सौ का नोट गिरा था।जेब टटोला कि कहीं मेरा पैसा तो नहीं गिरा..जेब में मेरा सौ रुपए पहले से था।
वो जो सौ रुपए गिरा था अब उसे देखते ही मुझे बूढ़े-बूढ़ी का चेहरा याद आ गया।मैं तुरंत चुपके से पैसा उठाया और दौड़ते रोड के पास गया। देखा तो वो बूढ़े-बूढ़ी गायब हो चुके थे।सब तरफ नजर घुमाया वे दोनों कहीं दिखाई नहीं दिये..मैं उन्हें ये पैसे भी दे देना चाहता था। लेकिन वो नहीं मिले।
एक तो सुनसान सा खाली खाली इलाका मैं तो आश्चर्य में पड़ गया कि न आटो चल रहा न गाड़ी वो इतने जल्दी वहां से गये तो गये कहां।

ढेर सारे अनसुलझे सवालों के साथ मैंने रिकोंग पियो से आगे जाने के लिए गाड़ी पकड़ ली। और रास्ते में मैंने वो सौ रुपए का छुट्टा करा लिया..और उसमें से सत्तर रुपए को, रास्ते भर कुछ कुछ जरूरतमंद लोगों को दे दिया।


कहानी -॥

आइसक्रीम के ठेले के पास मैंने अपनी मोटरसाइकल रोकी,मैं बोला एक फालूदा पैक कर दो यार।इतने में एक जीर्ण-शीर्ण व्यक्ति आया,बढ़ी हुई दाढ़ी और कांधे पे एक बड़ी सी गठरी,बंजारे की तरह लग रहा था। उसने पीने के लिए पानी मांगा..आइसक्रीम वाले ने पानी दिया। फिर आइसक्रीम वाले ने मेरे से बात करना शुरू किया।याद रहे मैं उस आइसक्रीम वाले से पहली बार मिल रहा हूं।
उसने फालूदा बनाते हुए कहा- भैया, मैं तो ऐसे जो भी आता है सबको ठंडा पानी पिला देता हूं पता नहीं कौन किस रूप में आके हमें देख रहा हो।कई बार ऐसा होता है कि कुछ ऐसे लोग आते हैं न ज्यादा कुछ बोलते हैं,थोड़ी देर के लिए मिलते हैं और पता नहीं अचानक कहां चले जाते हैं। मैं चुपचाप सुन रहा था।
और उसने आगे कहा- देखो वो पानी पीने वाला अचानक कहां चला गया..मेरी तो आंखें चौंधिया गई..एक मिनट के लिए समझ नहीं आया कि ये सब क्या हो रहा है इधर-उधर नजर घुमाया और वो पानी पीने वाला आदमी आंखों से ओझल हो चुका था।

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