अभी अचानक से बहुत पीछे चला गया हूं।
अपने बचपन में।
चलो आप भी आ जाओ।
शायद आपको भी कुछ अपने हिस्से का मिल जाए।
मुझे अभी बहुत अच्छे से याद आ रहा है स्कूल का वो पहला दिन।
वैसे तो मैंने घर में ABCD और कुछ-कुछ सीख लिया था तो सीधे KG-1या2 में भर्ती हुआ था।
भर्ती वाले दिन क्लास में बस बैठ के आया था,देख के आ गया था।शायद थोड़ा लेट एडमिशन हुआ था मेरा।
तो अगले दिन सुबह सायकल में पापा छोड़ने गये,मैं पीछे दुबक के बैठा हुआ था।
अचानक से सायकल रूक गई शायद कोई पापा के दोस्त मिल गये थे।
पापा बात करने में मगन हो गये।
मैं चुपचाप पीछे बैठा था।
वैसे भी बचपन में बोरियत होती कहां थी,
अचानक से घंटी की एक धीमी सी आवाज आई,
लगा कि प्रेयर शुरू हो गया होगा मैं बिना आवाज किए डर के मारे रोने लगा कि पहला दिन है स्कूल का।
टाइम में नहीं पहुंचूंगा तो पता नहीं कितना मारेंगे,डर तो इतना ज्यादा था कि बयां करना मुश्किल है।
बड़ी हिम्मत करके शायद मैंने पापा की कमीज को खींचा भी था कि चलो नहीं तो मैं नहीं बचूंगा आज।
फिर कुछ देर बाद स्कूल पहुंच गये।
प्रेयर खत्म हो चुकी थी।
मैं सीधे क्लास में जाकर बैठा।
पापा मुझे छोड़के अपना चला गये।
अब तो डर के मारे रो भी नहीं पा रहा था,
यहां इस क्लास में मम्मी पापा तो है नहीं,किसके सामने रोउं।
सहम के दब्बू की तरह बैठा हुआ था।
उस दिन की एक बात याद आ रही है कि दो तीन लड़के क्लास में पेंट में ही सुसु कर दिए,
उनके कान को पकड़ के मिस लोग हिला दिया करते।
ये सब देखकर तो मेरे मन में डर बैठ गया था।
इंग्लिश स्कूल होने की वजह से सारी मिस और गुड मार्निंग मिस इतना उस दिन मैं सीख गया था।धीरे-धीरे गुड मार्निग मिस इस शब्द से इतना लगाव हो गया था कि बड़े चाव से बोला करते।
जो भी लड़की सूट में और लकड़ी के एक पीले स्केल के साथ होती वो हमारे लिए मिस होती।
मिस के लिए बड़ा प्रेमभाव होता था।
टिफिन छुट्टी होता तो हम KG-1 के बच्चों में लगभग हर कोई अपना टिफिन मिस से ही खुलवाते।तो होता ये था कि हमारी जितनी भी मिस थी वो हम सब बच्चों का थोड़ा-थोड़ा टिफिन खा लेती।
लेकिन एक मिस उन सबमें अलग थी जो किसी का टिफिन नहीं खाती थी।
वहां से मेरे बचकाने मन में संवेदना जागी कि ये मिस सबसे अच्छी मिस हैं।
वो मिस हमको इंग्लिश पढ़ाती, हमारा हाथ पकड़ पकड़ के कर्सिव राइटिंग सिखाती।
मुझे याद आ रहा है तो इतना कि वो अधिकतर व्हाइट सूट में रहती थी और उनसे जुड़ी सबसे खास बात थी तो उनकी मुस्कुराहट और उनका वो हंसमुख सा चेहरा जो अभी एक धुंधलापन लिए मेरे मन मस्तिष्क में डोल रहा है।
आज भी भूल नहीं पा रहा हूं उन्हें वो "गुड मार्निंग मिस" कहना।
अभी आंखें बंद कर रहा हूं तो ऐसा लग रहा है उनकी आवाज इको हो रही है।
काश वो मुझे कहीं मिल जायें और मैं उन्हें गुड मार्निंग मिस कहकर उनके पांव धोकर पी लूं।
काश उन्हें बताऊं कि मिस देखिए न आप मुझे अभी तक याद हैं।
काश....।
लेकिन अब वो मुझे कहां मिलेंगी।अब तो मैं उन्हें पहचान भी न पाऊंगा।वो स्कूल भी तो कब से बंद हो चुका है।अब उनसे जुड़ने के लिए मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।
एक बार मैं पापा के साथ कहीं गया था और मिस मुझे वहां दिख गयीं मैंने उन्हें तुरंत गुड मार्निंग मिस कहा।तो उन्होंने उस दिन मेरा गाल पकड़ के हिलाया और कहा - बेटा! शाम को गुड इवनिंग बोलते हैं,
चलो बोल के दिखाओ "गुड इवनिंग मिस"।
अपने बचपन में।
चलो आप भी आ जाओ।
शायद आपको भी कुछ अपने हिस्से का मिल जाए।
मुझे अभी बहुत अच्छे से याद आ रहा है स्कूल का वो पहला दिन।
वैसे तो मैंने घर में ABCD और कुछ-कुछ सीख लिया था तो सीधे KG-1या2 में भर्ती हुआ था।
भर्ती वाले दिन क्लास में बस बैठ के आया था,देख के आ गया था।शायद थोड़ा लेट एडमिशन हुआ था मेरा।
तो अगले दिन सुबह सायकल में पापा छोड़ने गये,मैं पीछे दुबक के बैठा हुआ था।
अचानक से सायकल रूक गई शायद कोई पापा के दोस्त मिल गये थे।
पापा बात करने में मगन हो गये।
मैं चुपचाप पीछे बैठा था।
वैसे भी बचपन में बोरियत होती कहां थी,
अचानक से घंटी की एक धीमी सी आवाज आई,
लगा कि प्रेयर शुरू हो गया होगा मैं बिना आवाज किए डर के मारे रोने लगा कि पहला दिन है स्कूल का।
टाइम में नहीं पहुंचूंगा तो पता नहीं कितना मारेंगे,डर तो इतना ज्यादा था कि बयां करना मुश्किल है।
बड़ी हिम्मत करके शायद मैंने पापा की कमीज को खींचा भी था कि चलो नहीं तो मैं नहीं बचूंगा आज।
फिर कुछ देर बाद स्कूल पहुंच गये।
प्रेयर खत्म हो चुकी थी।
मैं सीधे क्लास में जाकर बैठा।
पापा मुझे छोड़के अपना चला गये।
अब तो डर के मारे रो भी नहीं पा रहा था,
यहां इस क्लास में मम्मी पापा तो है नहीं,किसके सामने रोउं।
सहम के दब्बू की तरह बैठा हुआ था।
उस दिन की एक बात याद आ रही है कि दो तीन लड़के क्लास में पेंट में ही सुसु कर दिए,
उनके कान को पकड़ के मिस लोग हिला दिया करते।
ये सब देखकर तो मेरे मन में डर बैठ गया था।
इंग्लिश स्कूल होने की वजह से सारी मिस और गुड मार्निंग मिस इतना उस दिन मैं सीख गया था।धीरे-धीरे गुड मार्निग मिस इस शब्द से इतना लगाव हो गया था कि बड़े चाव से बोला करते।
जो भी लड़की सूट में और लकड़ी के एक पीले स्केल के साथ होती वो हमारे लिए मिस होती।
मिस के लिए बड़ा प्रेमभाव होता था।
टिफिन छुट्टी होता तो हम KG-1 के बच्चों में लगभग हर कोई अपना टिफिन मिस से ही खुलवाते।तो होता ये था कि हमारी जितनी भी मिस थी वो हम सब बच्चों का थोड़ा-थोड़ा टिफिन खा लेती।
लेकिन एक मिस उन सबमें अलग थी जो किसी का टिफिन नहीं खाती थी।
वहां से मेरे बचकाने मन में संवेदना जागी कि ये मिस सबसे अच्छी मिस हैं।
वो मिस हमको इंग्लिश पढ़ाती, हमारा हाथ पकड़ पकड़ के कर्सिव राइटिंग सिखाती।
मुझे याद आ रहा है तो इतना कि वो अधिकतर व्हाइट सूट में रहती थी और उनसे जुड़ी सबसे खास बात थी तो उनकी मुस्कुराहट और उनका वो हंसमुख सा चेहरा जो अभी एक धुंधलापन लिए मेरे मन मस्तिष्क में डोल रहा है।
आज भी भूल नहीं पा रहा हूं उन्हें वो "गुड मार्निंग मिस" कहना।
अभी आंखें बंद कर रहा हूं तो ऐसा लग रहा है उनकी आवाज इको हो रही है।
काश वो मुझे कहीं मिल जायें और मैं उन्हें गुड मार्निंग मिस कहकर उनके पांव धोकर पी लूं।
काश उन्हें बताऊं कि मिस देखिए न आप मुझे अभी तक याद हैं।
काश....।
लेकिन अब वो मुझे कहां मिलेंगी।अब तो मैं उन्हें पहचान भी न पाऊंगा।वो स्कूल भी तो कब से बंद हो चुका है।अब उनसे जुड़ने के लिए मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।
एक बार मैं पापा के साथ कहीं गया था और मिस मुझे वहां दिख गयीं मैंने उन्हें तुरंत गुड मार्निंग मिस कहा।तो उन्होंने उस दिन मेरा गाल पकड़ के हिलाया और कहा - बेटा! शाम को गुड इवनिंग बोलते हैं,
चलो बोल के दिखाओ "गुड इवनिंग मिस"।
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