Tuesday, 23 August 2016

~ Game Over ~

आज उन्हें खुद के लिए कितनी खुशी हुई होगी।
वो बड़े मजे से लोगों को पकड़ के उनका चालान बनवा रहे थे।
मानो उनके लिए ये किसी खेल जैसा हो और जीतने का जज्बा खत्म ही ना हो रहा हो।

तो बात कुछ दिन पहले की है।
मैं अपनी बाइक से जा रहा था।
सामने हेलमेट के लिए धरपकड़ चल रही थी, हमेशा की तरह आज फिर चकमा देने के इरादे से मैं किनारे से जाने लगा..ट्रैफिक पुलिस और मेरे बीच की दूरी कम होती जा रही थी, अब मैं छुपते हुए एक ट्रक के पीछे जाने  लगा एक आत्मविश्वास के साथ कि लो आज मैंने फिर तुम्हारी आंखों में धूल झोंकनी है।
ये सब सोच ही रहा था कि अचानक एक ट्रैफिक पुलिस वाला ट्रक से सामने से कूदते हुए सुपरमैन की तरह आया और उसने मुझे पकड़ लिया।
ठीक उसी तरह जैसे ध्रुवीय प्रदेशों के भूरे भालू छिछले पानी में मछली की तलाश लिए उतरते हैं आराम से चलते रहते हैं जैसे ही मछली आती है तपाक से जबड़े में पकड़ते हैं और किनारे किसी पत्थर में लाकर खाते हैं ,खाने के बाद फिर दूसरी मछली के लिए पानी में उतर जाते हैं।

हां ठीक ऐसे ही उन्होंने मुझे पकड़ा किनारे गाड़ी खड़ी करवाई और चालान बनाने वाले साहब को कहा कि इनका हेलमेट का 200 का बिल बनाओ।इतना बोलकर वो  फिर अपने दूसरे शिकार को पकड़ने के लिए किनारा छोड़  मैदान में उतर गये।
तभी मैंने वहां एक और लड़के को पकड़ाते देखा मेरी तो हंसी फूट गई उसे देखकर..वो ढंग से पकड़ाया भी नहीं था और उसका एक हाथ फोन निकालने में लग गया, पता नहीं किस अफसर,मंत्री को फोन लगाने वाला था।
मैं मिनट भर में चालान के पैसे देकर वहां से ससम्मान चला गया।
लेकिन मैं आज हार गया था, मेरा तो "Game Over" कर दिया ट्रैफिक वाले साहब ने।
क्या गजब की फुर्ती लगाई उन्होंने।
रास्ते में जाते जाते ये सब याद करके बड़ा मुस्कुराया,इठलाते हुए हंसा भी और पुलिस वाले को मन ही मन धन्यवाद भी कर लिया क्योंकि उन्होंने मेरे सालों पुराने गुरूर को मिनटों में चकनाचूर कर दिया।
डेमोक्रेसी ऐसे ही लोगों की वजह से दुरूस्त होती है।
ट्रैफिक पुलिस की जय हो।

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