Wednesday, 31 August 2016

~ नया कपड़ा ~

मैं चुपचाप अपनी गाड़ी से जा रहा था अचानक से एक लड़का बाजू से घूरता हुआ निकला, मुझे बड़ी हैरानी हुई, ऐसा तो मैंने कभी किसी लड़की को भी न देखा था।

एक पल के लिए तो समझ नहीं आया कि आखिर ये क्या था।
फिर आगे मैंने देखा उसने फिर एक लड़के को अजीब तरीके से घूर दिया और आगे बढ़ता गया।
सिग्नल आया, वहां मेरा ध्यान न चाहते हुए भी उसकी ओर चला गया..
उसकी हरकतें ही ऐसी थी,
कुछ इस तरह सीना तान के अपनी एक्टिवा में बैठा था मानो ये ब्रम्हाण्ड उसी ने रचा है, सारी ऊर्जा का संचार मानो उसी से हो रहा हो।
वो मजे से लड़के-लड़की अंकल आंटी जो वहां पास में उसे दिखाई दिया,सबको एक अजीब निगाह से बारी-बारी देख रहा था।
एक पल के लिए तो मैं असमंजस में पड़ गया कि आखिर ये चीज है क्या?
बाद में जब मैंने उसे ध्यान से देखा तो समझ आया कि नामुराद ने नये कपड़े पहन रखे हैं।

Tuesday, 23 August 2016

~ Game Over ~

आज उन्हें खुद के लिए कितनी खुशी हुई होगी।
वो बड़े मजे से लोगों को पकड़ के उनका चालान बनवा रहे थे।
मानो उनके लिए ये किसी खेल जैसा हो और जीतने का जज्बा खत्म ही ना हो रहा हो।

तो बात कुछ दिन पहले की है।
मैं अपनी बाइक से जा रहा था।
सामने हेलमेट के लिए धरपकड़ चल रही थी, हमेशा की तरह आज फिर चकमा देने के इरादे से मैं किनारे से जाने लगा..ट्रैफिक पुलिस और मेरे बीच की दूरी कम होती जा रही थी, अब मैं छुपते हुए एक ट्रक के पीछे जाने  लगा एक आत्मविश्वास के साथ कि लो आज मैंने फिर तुम्हारी आंखों में धूल झोंकनी है।
ये सब सोच ही रहा था कि अचानक एक ट्रैफिक पुलिस वाला ट्रक से सामने से कूदते हुए सुपरमैन की तरह आया और उसने मुझे पकड़ लिया।
ठीक उसी तरह जैसे ध्रुवीय प्रदेशों के भूरे भालू छिछले पानी में मछली की तलाश लिए उतरते हैं आराम से चलते रहते हैं जैसे ही मछली आती है तपाक से जबड़े में पकड़ते हैं और किनारे किसी पत्थर में लाकर खाते हैं ,खाने के बाद फिर दूसरी मछली के लिए पानी में उतर जाते हैं।

हां ठीक ऐसे ही उन्होंने मुझे पकड़ा किनारे गाड़ी खड़ी करवाई और चालान बनाने वाले साहब को कहा कि इनका हेलमेट का 200 का बिल बनाओ।इतना बोलकर वो  फिर अपने दूसरे शिकार को पकड़ने के लिए किनारा छोड़  मैदान में उतर गये।
तभी मैंने वहां एक और लड़के को पकड़ाते देखा मेरी तो हंसी फूट गई उसे देखकर..वो ढंग से पकड़ाया भी नहीं था और उसका एक हाथ फोन निकालने में लग गया, पता नहीं किस अफसर,मंत्री को फोन लगाने वाला था।
मैं मिनट भर में चालान के पैसे देकर वहां से ससम्मान चला गया।
लेकिन मैं आज हार गया था, मेरा तो "Game Over" कर दिया ट्रैफिक वाले साहब ने।
क्या गजब की फुर्ती लगाई उन्होंने।
रास्ते में जाते जाते ये सब याद करके बड़ा मुस्कुराया,इठलाते हुए हंसा भी और पुलिस वाले को मन ही मन धन्यवाद भी कर लिया क्योंकि उन्होंने मेरे सालों पुराने गुरूर को मिनटों में चकनाचूर कर दिया।
डेमोक्रेसी ऐसे ही लोगों की वजह से दुरूस्त होती है।
ट्रैफिक पुलिस की जय हो।

Saturday, 20 August 2016

~ गुड मार्निंग मिस ~

अभी अचानक से बहुत पीछे चला गया हूं।
अपने बचपन में।
चलो आप भी आ जाओ।
शायद आपको भी कुछ अपने हिस्से का मिल जाए।
मुझे अभी बहुत अच्छे से याद आ रहा है स्कूल का वो पहला दिन।
वैसे तो मैंने घर में ABCD और कुछ-कुछ सीख लिया था तो सीधे KG-1या2 में भर्ती हुआ था।
भर्ती वाले दिन क्लास में बस बैठ के आया था,देख के आ गया था।शायद थोड़ा लेट एडमिशन हुआ था मेरा।
तो अगले दिन सुबह सायकल में पापा छोड़ने गये,मैं पीछे दुबक के बैठा हुआ था।
अचानक से सायकल रूक गई शायद कोई पापा के दोस्त मिल गये थे।
पापा बात करने में मगन हो गये।
मैं चुपचाप पीछे बैठा था।
वैसे भी बचपन में बोरियत होती कहां थी,
अचानक से घंटी की एक धीमी सी आवाज आई,
लगा कि प्रेयर शुरू हो गया होगा मैं बिना आवाज किए डर के मारे रोने लगा कि पहला दिन है स्कूल का।
टाइम में नहीं पहुंचूंगा तो पता नहीं कितना मारेंगे,डर तो इतना ज्यादा था कि बयां करना मुश्किल है।
बड़ी हिम्मत करके शायद मैंने पापा की कमीज को खींचा भी था कि चलो नहीं तो मैं नहीं बचूंगा आज।
फिर कुछ देर बाद स्कूल पहुंच गये।
प्रेयर खत्म हो चुकी थी।
मैं सीधे क्लास में जाकर बैठा।
पापा मुझे छोड़के अपना चला गये।
अब तो डर के मारे रो भी नहीं पा रहा था,
यहां इस क्लास में मम्मी पापा तो है नहीं,किसके सामने रोउं।
सहम के दब्बू की तरह बैठा हुआ था।
उस दिन की एक बात याद आ रही है कि दो तीन लड़के क्लास में पेंट में ही सुसु कर दिए,
उनके कान को पकड़ के मिस लोग हिला दिया करते।
ये सब देखकर तो मेरे मन में डर बैठ गया था।
इंग्लिश स्कूल होने की वजह से सारी मिस और गुड मार्निंग मिस इतना उस दिन मैं सीख गया था।धीरे-धीरे गुड मार्निग मिस इस शब्द से इतना लगाव हो गया था कि बड़े चाव से बोला करते।
जो भी लड़की सूट में और लकड़ी के एक पीले स्केल के साथ होती वो हमारे लिए मिस होती।
मिस के लिए बड़ा प्रेमभाव होता था।
टिफिन छुट्टी होता तो हम KG-1 के बच्चों में लगभग हर कोई अपना टिफिन मिस से ही खुलवाते।तो होता ये था कि हमारी जितनी भी मिस थी वो हम सब बच्चों का थोड़ा-थोड़ा टिफिन खा लेती।
लेकिन एक मिस उन सबमें अलग थी जो किसी का टिफिन नहीं खाती थी।
वहां से मेरे बचकाने मन में संवेदना जागी कि ये मिस सबसे अच्छी मिस हैं।
वो मिस हमको इंग्लिश पढ़ाती, हमारा हाथ पकड़ पकड़ के कर्सिव राइटिंग सिखाती।
मुझे याद आ रहा है तो इतना कि वो अधिकतर व्हाइट सूट में रहती थी और उनसे जुड़ी सबसे खास बात थी तो उनकी मुस्कुराहट और उनका वो हंसमुख सा चेहरा जो अभी एक धुंधलापन लिए मेरे मन मस्तिष्क में डोल रहा है।
आज भी भूल नहीं पा रहा हूं उन्हें वो "गुड मार्निंग मिस" कहना।
अभी आंखें बंद कर रहा हूं तो ऐसा लग रहा है उनकी आवाज इको हो रही है।
काश वो मुझे कहीं मिल जायें और मैं उन्हें गुड मार्निंग मिस कहकर उनके पांव धोकर पी लूं।
काश उन्हें बताऊं कि मिस देखिए न आप मुझे अभी तक याद हैं।
काश....।
लेकिन अब वो मुझे कहां मिलेंगी।अब तो मैं उन्हें पहचान भी न पाऊंगा।वो स्कूल भी तो कब से बंद हो चुका है।अब उनसे जुड़ने के लिए मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।
एक बार मैं पापा के साथ कहीं गया था और मिस मुझे वहां दिख गयीं मैंने उन्हें तुरंत गुड मार्निंग मिस कहा।तो उन्होंने उस दिन मेरा गाल पकड़ के हिलाया और कहा - बेटा! शाम को गुड इवनिंग बोलते हैं,
चलो बोल के दिखाओ "गुड इवनिंग मिस"।

Tuesday, 16 August 2016

Volunteering in the Himalayas-

-HIMACHAL PRADESH-
 

1. Spiti: Spiti Ecosphere
Spiti Ecosphere is a collective effort of the local community of Spiti, along with other professionals, to create sustainable livelihoods that go hand in hand with nature and culture conservation. The NGO also promotes indigenous handicrafts, from paintings to clay structures and silks.What you can do:Help in building greenhouses and solar passive structures, volunteer with daily village activities, or help with the routine office work of Ecosphere.

Apply today:  Write to spitiecosphere.com with your interests.



2. Dharamsala: LHA Charitable Trust
The LHA Charitable Trust is a grassroots non-profit organisation, and is one of the largest Tibetan social work institutes in India. It aims aim to provide necessary resources for Tibetan refugees, the local Indian population, and people from the Himalayan regions.What you can do: LHA has a large number of volunteering options, including social media and marketing positions, tutoring in English and other languages, fundraising, yoga, writing articles about Tibet and human rights, and project coordination.

Apply at- http://www.lhasocialwork.org/volunteer/206-volunteer-application-form




3. Shimla: Wahoe Community Volunteer Programmes.
The Wahoe community was started with the aim of providing education, nutrition and spiritual teaching to children and women, irrespective of caste and creed.What you can do:The group has recently started a school in Galot village, 17 kilometres from Shimla. Volunteers can help in tutoring the children, office activities in Shimla, or at the community farm.

Apply at - http://www.wahoecommune.org.in/wahoe-commune-online-application-form.html#.V7LbGF2t-o9

-UTTARAKHAND-
 


4. Kanda: ROSE (Rural Organisation for Social Elevation)
ROSE is a small community-based self-help group in bageshwar district(uttarakhand )that is dedicated to improving the livelihoods, health, education and quality of life of the rural poor in the region, without disturbing the cultural or ecological balance.What you can do: Help in constructing the community centre, building latrines, eco projects such as tree plantations.

Apply today: Write to jeevanverma@rosekanda.org.






5. Peora: Aarohi
Aarohi is a non-profit organisation that works at the grassroots level for integrated development of the rural community, through quality healthcare and education, use of sustainable resources and revival of traditional culture.What you can do: You can volunteer as a specialist, as a doctor, physician, community health manager or simply as a person who wishes to offer their skills.

Apply today: Write to aarohi.org


6. Dehradun: Ankuri
Ankuri is a non-profit organisation whose mission is to empower women to become independent and self-sufficient, thus enabling their children to receive better education and healthcare.What you can do: Volunteers can opt for short term or long term programmes in the literary or knitting centres. What’s more, you can stay at a beautiful homestay during what they call your ‘voluntourism.’
Apply today: Write to ankuri.org.



-JAMMU AND KASHMIR-


7. Breswana: Haji Public School
The Haji Public School was started on May4, 2009, by the Haji family in Breswana, to provide quality education to children of thevillage who, prior to the opening of the school, had no source of formal education.What you can do:Take part as short term or long term primary school volunteers to teach kids and assist teachers. If you’re a medical or media professional, you can do activities related to increasing medical awareness.
Apply today: Write to hajipublicschool.org.





 8.Srinagar: Jammu and Kashmir Association of Social Workers
JKASW with the support of CRY, has been working on child rights issues in general aswell
as in the intervention areas in particular. It serves the dual purpose of solving the problems of its own members as well as intervening in places it feels the need to. According to its Facebook page, the NGO has been able to bring 704 children back to school.What you can do: The organisation encourages people to join its various campaigns, which involve bringing school drop outs back to school and eliminating child labour through child activity centres. It also organises workshops and children’s festivals.

Apply today: https://jkasw.org.in/


-SIKKIM-



9.Ecotourism and Conservation Society of Sikkim (ECOSS).

ECOSS is an NGO working for sustainable conservation in the state of Sikkim. It has built the Sikkim Himalayan Homestay along with UNESCO for encouraging sustainable eco-tourism in the state.What you can do:Volunteers can stay at the homestay to teach and develop the skills of the people of the local community.

Apply today: Write ecoss@sikkiminfo.net.




-ASSAM-


10. Fertile Ground
Fertile Ground is an organisation that provides support, training and resources tofarmers, including small-scale tea growers,teachers, students and other families livingin the state of Assam. It encourages growing of healthy food by bringing together cost effective and traditional methods to farmers. Its projects are located in various places.What you can do:Organic farming activities, education workshops for teachers and kids.

Apply today: fertile_ground2003@yahoo.com.




11. Guwahati: Aaranyak
Aaranyak is a registered society working for environmental conservation in Assam since 1989, and aims to use scientific means, law, community engagement, education, etc., in an effort to control the impact of changing climate and weather in Northeast India.What you can do:Volunteer in conservation or related fields.

Apply today: Write to aaranyak.org.



 

~ महंगा सेलून ~

आज बाल कटवाने पहली बार एक बड़े सेलून को गया।
सीट पर बैठा..उसने मेरे लंबे बिखरे बालों को देखकर कहा-भैया शैम्पू करना पड़ेगा बाल बहुत रफ हो गया है मैं बोला नहीं लगेगा बस हेयर कट कर दो।
मैं उसकी मंशा भलीभांति समझ चुका था।
थोड़ा सा पछतावा भी हो रहा था कि क्यों बेकार इस बड़े सेलून में आ गया।
पर क्या करें आज का आलाप तो यही है कि जहां ज्यादा सफाई दिखी इंसान वही जाना पसंद करता है।

फिर उसने पूछा कि कैसे काटना है मैं बता के अपना चुप हो गया।
वो भी शांत था।
फिर उसने धीरे से बात निकाली,कहने लगा- भैया आजकल तो 15 अगस्त का पहले जैसा माहौल ही नहीं है।
मैं हां हां बोलने लगा।
मेरे को समझ आ गया था कि ये जबरन की बात निकाल के कहीं न कहीं अपना emotional intelligence मुझपर थोपने वाला है।
और उसने आगे वही किया।
वो ढेर सारी बातें करने लगा तो मैंने भी उसे नापने के वास्ते पूछ लिया कि आप कहां से हैं?
उसे अब मुद्दा मिल गया।
बताने लगा कि मैं दंतेवाड़ा से हूं।मेरे पापा NMDC से रिटाएर्ड हैं।मैं भी NMDC में कोशिश किया पैसा भी दिया था एक नेताको, लेकिन नहीं हुआ..Indo Taiwan force में भी कोशिश किया वहां भी नहीं हुआ।
मैं बीच में टोका कि अच्छा ITBP,भैया उसका हेड आफिस तो हिमाचल में है मैं गया हूं वहां।वो मेरी हां में हां मिला दिया।
और आगे इंग्लिश के शब्दों का सहारा लेते हुए psc upsctech nontech इससे जुड़ी तमाम सतही बातें करना लगा।

अब मुझे समझ आ गया कि ये आदमी mediocre है और डींगें हांक रहा है।जहां तक मुझे याद है इंडो ताइवान फोर्स नाम की कोई चीजनहीं है..अगर है तो ITBP(Indo tibetan border force) और इन सब फोर्सेस का हेडक्वाटर दिल्ली में होता है।अगर वो सच बोल रहा होता तो मेरी इस गलती पर उसका ध्यान जरूर गया होता।

अब वो बोलने लगा कि भैया हेयर स्पा करा लिया करो।
मैं बोला कि मुझे इन सब चीजों की जरूरत नहीं है मेरे बाल अभी बहुत सही हालत में हैं।
वो फिर बोला कि भैया फायदा हो रहा है तभी तो लोग करा रहे हैं बुड्ढे लोग भी कराते हैं अच्छा दिखने के लिए।
मैंने भी अपनी त्यौरियां चढ़ाते हुए कहा- मैं क्या अच्छा नहीं दिख रहा इन बालों में।
वो बोला- नहीं आपके बाल भी ठीक हैं लेकिन स्पा से बालों को ये मिलता है वो मिलता है और तरह तरह की बातें।

उस सेलून वाले को क्या पता कि मेरी मां ने मुझे संस्कारों के अलावा भी बहुत कुछ दिया है।भले मेरी मां कम पढ़ी है लेकिन उसने मुझे संस्कारों के बाद कोई दूसरी कीमती चीज सिखाई है तो वो है घरेलू नुस्खे।भगवान करे मैं इतना लाचार कभी न बनूं कि मुझे कहीं बैठकर अपने बालों को शैम्पू करवाना पड़े।

एक बार को सोचा कि बोल दूं कि भैया आपकी अनुकंपा के लिए शुक्रिया।ये पहली बार किसी बड़े सेलून में आया हूं,मोह भंग मत होने दीजिए।मैं यहां बस बाल कटाने आया हूं आप मुझे ये Add-on पैक्स की जानकारी देना बंद कीजिए।मुझे नहीं चाहिए।

फिर वो बोला कि आपकी कोई गर्लफ्रेंड हैं?
मैं बोला - नहीं है।
अब वो परिहास करने लगा।
मेरे बाल कट चुके थे।
वो बोला - देवदास की तरह मत रहो भैया।
उस वक्त बिना कुछ बोले गंभीर मुस्कुराहट देते हुए मैंने बात खत्म की।
पता है क्यों,क्योंकि जिसके पास जो होता है वो बदले में वही देता फिरता है।
उस नासमझ को तो मैंने उसी वक्त माफ कर दिया जब उसने देवदास कहा,उसे तो ये भी नहीं पता कि देवदास होने के लिए पारो की जरूरत होती है।
लगे हाथ बाबू शरत चंद्र का भी अपमान कर दिया उसने।

Monday, 15 August 2016

~ जुबान का फर्क ~

एक आदमी अपनी बीवी के साथ गुपचुप खाने आया..मैं बस वहां से जा ही रहा था।
वो आदमी पहला गुपचुप खाया ही था कि अचानक उसने गुपचुपवाले को भद्दा सा मुंह बनाते हुए कहा- क्या रद्दी गुपचुप बनाये हो यार।
गुपचुपवाला भी सयाना निकला, उसने कहा- अरे भैया आपको नहीं खाना है मत खाओ,रहने दो।
इतने में ही मुझे पीकू भैया याद आ गए।
पीकू भैया मेरे दोस्त के बाजू कमरे में रहते हैं।
वैसे तो उनका असल नाम कुछ और है लेकिन उन्हें पीकू पुकारा जाने लगा।
इस नामकरण के पीछे एक बड़ी वजह ये है कि साल भर उनकी थोड़ी तबियत खराब रहती है..कुछ-कुछ पीकू फिल्म के अमिताभ बच्चन की तरह। कभी पेट गड़बड़ तो कभी कफ की शिकायत तो कभी कुछ और।
एक बार पीकू भैया किसी से फोन पर ऊंची आवाज में बात कर रहे थे..गुस्सा तो मानो हर एक शब्द में चाशनी की तरह। मैंने अपने दोस्त से पूछा तो उसने बताया कि अरे इनका रोज का है घर परिवार का कुछ लफड़ा है परेशान रहते हैं थोड़ा।
आगे मेरे दोस्त ने बताया कि ये रोज खाने को गाली देते हैं कभी तो कोई सब्जी इनको पसंद आता..टिफिन आते ही सब्जी वगैरह देखा, फिर नुस्ख निकालना शुरू।
अब मुझे समझ आ गया कि पीकू भैया की इन छुटपुट बीमारियों के पीछे तो पूरा का पूरा मनोविज्ञान है। यानी जो व्यक्ति खाने का सम्मान न करे, उसके साथ ये समस्या होना लाजमी है।

इसे समझने के लिए एक परिप्रेक्ष्य में चलते हैं। आज देश का जन्मदिन है और साथ ही मेरे पापा का भी। जब मैं छोटा था तो बाल कटवाने और सुई लगावने के अलावा किसी चीज से बहुत घबराता था तो वो था भाजी खाना। जब भी घर में भाजी बनती।खाना खाते वक्त पापा फूड इंस्पेक्टर की तरह सामने बैठ जाते और पापा का खौफ इतना कि भाजी खाना ही पड़ जाता और एक जरूरी बात ये कि थाली से चावल का एक भी दाना जमीन में गिरा फिर तो उस दिन सबकी पेशी हो जाती। खैर अभी मुझे भाजी बहुत पसंद है।
बचपन में कई बार जब मेरे पसंद की सब्जी नहीं बनती तो मैं झुंझलाकर कहता -छी! क्या बेकार सब्जी बना है। उस समय पापा बस इतना ही कहते - "खाने-पीने की चीजों को कभी छी नहीं बोला करते।"
धीरे-धीरे मैंने वो बात दिमाग में बैठा ली।
और तुर्रा भी यही है कि हमारी बचपन की यही छोटी-छोटी आदतें आगे चलकर हमारे संस्कार का निर्माण करती है।

अब भैया के पास लौटते हैं। पीकू भैया हालीवुड की इतनी फिल्में देखते हैं उन्हें Fast and Furious एक बार और ध्यान से देखना चाहिए, उस विध्वंसकारी फिल्म में एक सीन खाने के टेबल का भी है जहां खाने के प्रति सम्मान को बड़े अच्छे से दिखाया है। मेरे ख्याल में पीकू भैया की समस्या जुबान की है। अगर वो धीरे से थोड़ी सी सकारात्मकता ला लें तो मैं वादे के साथ कह सकता हूं कि उनमें बदलाव आयेगा ही।

सनद रहे कि यही वो सकारात्मकता है जिसकी वजह से मंदिर,मस्जिद,चर्च एवं गुरूद्वारों के आसपास के पेड़-पौधे हमेशा फलते-फूलते हैं।

Saturday, 6 August 2016

Tracing Endangered Specie-

कहानी - ।

पिछले कुछ सालों से एक विलुप्तप्राय जीव की खोज में लगा हुआ हूं।
किसी संस्था के लिए नहीं कर रहा,बस ये समझ लीजिए की एक धुन है तलाश कर रहा हूं तो कर ही रहा हूं। हिमाचल का किन्नौर जिला, दुर्गम पथरीली सड़कों से होते हुए बस आगे बढ़ती जा रही थी।
कल-कल करती सतलुज नदी सृजनात्मक मनोवेगों का आह्वान कर रही थी, बस की खिड़की से ताकता हुआ यही सोच रहा था कि दिखने में कैसा होगा महान हिमालय..जन्सकार और कैलाश पर्वत भी तो देखना है काश मौसम अच्छा हो और सबके दर्शन हो जाये। उत्सुकता अपनी चरमसीमा को लांघ चुकी थी।
अपने अगले पड़ाव रिकोंग पियो बस स्टेशन में उतरा ही था..और ये क्या मेरे सामने तो वही विलुप्तप्राय जीव खड़े थे जिनकी मुझे तलाश रहती है एक नहीं वो भी दो दो।
मैं उन दोनों को देख रहा था.. बूढ़ा और बुढ़िया दोनों सर पे सामान लादे हुए थे, उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र से हम आये हैं,पैसे चोरी हो गये हैं उन्होंने कहा कि खाने के लिए कुछ पैसे दो दो। आव देखा न ताव,नजर में थी तो बस उनकी सजल आंखें,मैंने तीस रुपए दे दिए।

आप सोच रहे होंगे विलुप्तप्राय जीव के बीच ये बूढ़े कहां से आ गये।
हां मैं इंसानों की तलाश में हूं क्योंकि इंसानों की एक विशिष्ट प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है।
वनस्पति एवं जंतुओं का समझ में आता है लेकिन इंसान ये कैसे?

आगे पढ़ते जाओ बताता हूं।

तो हुआ यूं कि मैंने बूढ़े को पैसे दे के विदा कर दिया।
फिर अपने पर्स से मैंने सौ रूपये निकालकर जेब में डाला और पर्स अंदर बैग में रख दिया..मैं रिचार्ज कराने एक दुकान में गया..वहां रिचार्ज नहीं हुआ दुकान से बाहर निकला तो वहीं पर सौ का नोट गिरा था।जेब टटोला कि कहीं मेरा पैसा तो नहीं गिरा..जेब में मेरा सौ रुपए पहले से था।
वो जो सौ रुपए गिरा था अब उसे देखते ही मुझे बूढ़े-बूढ़ी का चेहरा याद आ गया।मैं तुरंत चुपके से पैसा उठाया और दौड़ते रोड के पास गया। देखा तो वो बूढ़े-बूढ़ी गायब हो चुके थे।सब तरफ नजर घुमाया वे दोनों कहीं दिखाई नहीं दिये..मैं उन्हें ये पैसे भी दे देना चाहता था। लेकिन वो नहीं मिले।
एक तो सुनसान सा खाली खाली इलाका मैं तो आश्चर्य में पड़ गया कि न आटो चल रहा न गाड़ी वो इतने जल्दी वहां से गये तो गये कहां।

ढेर सारे अनसुलझे सवालों के साथ मैंने रिकोंग पियो से आगे जाने के लिए गाड़ी पकड़ ली। और रास्ते में मैंने वो सौ रुपए का छुट्टा करा लिया..और उसमें से सत्तर रुपए को, रास्ते भर कुछ कुछ जरूरतमंद लोगों को दे दिया।


कहानी -॥

आइसक्रीम के ठेले के पास मैंने अपनी मोटरसाइकल रोकी,मैं बोला एक फालूदा पैक कर दो यार।इतने में एक जीर्ण-शीर्ण व्यक्ति आया,बढ़ी हुई दाढ़ी और कांधे पे एक बड़ी सी गठरी,बंजारे की तरह लग रहा था। उसने पीने के लिए पानी मांगा..आइसक्रीम वाले ने पानी दिया। फिर आइसक्रीम वाले ने मेरे से बात करना शुरू किया।याद रहे मैं उस आइसक्रीम वाले से पहली बार मिल रहा हूं।
उसने फालूदा बनाते हुए कहा- भैया, मैं तो ऐसे जो भी आता है सबको ठंडा पानी पिला देता हूं पता नहीं कौन किस रूप में आके हमें देख रहा हो।कई बार ऐसा होता है कि कुछ ऐसे लोग आते हैं न ज्यादा कुछ बोलते हैं,थोड़ी देर के लिए मिलते हैं और पता नहीं अचानक कहां चले जाते हैं। मैं चुपचाप सुन रहा था।
और उसने आगे कहा- देखो वो पानी पीने वाला अचानक कहां चला गया..मेरी तो आंखें चौंधिया गई..एक मिनट के लिए समझ नहीं आया कि ये सब क्या हो रहा है इधर-उधर नजर घुमाया और वो पानी पीने वाला आदमी आंखों से ओझल हो चुका था।

Monday, 1 August 2016

~लाल बंगला~

जैसा कि ज्ञातव्य है कि छत्तीसगढ़ में हरेली के दिन जादू टोने की मान्यता है।
साल 1994,
ठीक आज ही के दिन रायपुर के अंबेडकर अस्पताल के एक डाक्टर जिनका बंगला मैग्नेटो माल से आगे था, हरेली के दिन देर रात वो इलाज के बाद अस्पताल से अपने घर को गये। डाक्टर साहब अपनी बेटी के साथ रहते थे। डाक्टर की पत्नी का देहांत पहले ही हो चुका था। डाक्टर का जहां बंगला है वहां पास में छोटा सा गांव भी है,उस रात कोई महिला उनके दरवाजे पर आई कुछ दर्द या समस्या के निवारण हेतु तो डाक्टर ने अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए दरवाजा खोला और बैठा के पूछा कि क्या हुआ है,इसी बीच वो मौका पाते ही उल्टी या पेटदर्द का बहाना करके बाथरूम चली गयी। वो महिला घंटों तक बाथरूम से बाहर नहीं आई,आखिर में डाक्टर ने दरवाजा तोड़ा तो वहां कोई नहीं था। अब डाक्टर और उनकी बेटी घबराहट में उस महिला को इधर-उधर ढूंढने लगे।अचानक डाक्टर एक कमरे में गये वहां का दरवाजा अचानक बंद हो गया। कुछ देर में उनकी बेटी ने उस कमरे की ओर देखा तो खिड़की में डाक्टर का मृत शरीर लटका हुआ था। लड़की ने पुलिस को फोन किया और इधर-उधर भागने लगी। लड़की ने शायद कहीं से सरसों हाथ में रखने के बारे में सुना था कि इससे बुरी ताकतें नुकसान नहीं पहुंचाती। उस रात हुआ यूं कि एक पुलिसवाले की भी रहस्यमय ढंग से तो मौत हो गयी और लड़की सुरक्षित बच गयी। लड़की बाहर अपने रिश्तेदारों के यहां रहने लगी है। अभी भी वो बंगला खाली पड़ा हुआ है। लड़की ने टीवी वालों को इसके बारे में बताया तो fear files का एक एपिसोड भी इस घटना पर बना हुआ है। पता नहीं इसमें कितना सच और कितना झूठ है वो तो आज लाल बंगला जाकर ही पता लगेगा।


~lal bangla visit~

लाल बंगले से अभी वापसी हुई है। जब उस रास्ते मुड़े वहां ढेर सारी बैलें। दूर दूर तक कोई इंसान नहीं था। वहां की हवा में एक अलग सा भारीपन था जो दूर से ही महसूस हो रहा था। हवा की वो सिहरन किसी के होने का साफ संकेत दे रही थी ये सब कुछ मेरे लिए एकदम नया सा था। मैंने अपने दोस्त से कहा कि पता नहीं क्यों पर अब आगे जाना कुछ ठीक नहीं लग रहा लेकिन हिम्मत करके आगे निकल गये। अब हम लोगों ने लाल बंगले के पास पचास मीटर की दूरी पर अपनी बाइक रोकी। कुछ मिनट वहां खड़े रहे। फिर अचानक एक हल्की सी खांसने की आवाज आई। आवाज हल्की सी थी मानो कोई बुढ़ा रोने के बाद खांस रहा हो। उस समय रात के 1:40 का समय होगा। मेरे एक साथी दोस्त ने कुत्ते की आवाज है ऐसा कहकर माहौल लाइट करने की कोशिश की। सबको समझ आ गया था कि इतनी रात गए वहां वैसी जगह पर कोई कुत्ता तो नहीं था। न ही वहां पर कोई आदमी हो सकता है। कुछ मिनट बाद थोड़ी लम्बी खांसी आई। अलग ही तरह की, मानो कोई जान बूझ के हमें सुनाना चाह रहा हो,आगाह करना चाह रहा हो। तब हम लोगों को लगा कि अब यहां से निकलना ही सही रहेगा और हम लोग वापस आ गए। पता नहीं वहां कौन था लेकिन कोई दिखाई तो नहीं दिया। मैं तो यही सोच के गया था कि कुछ न मिलेगा सब बनी बनायी बाते हैं ,लेकिन मेरी ये धारणा कुछ हद तक टूटी ,वहां कुछ तो जरूर था।

एक परिदृश्य के रूप में अगर कल की घटना को देखा जाए तो सच में एक हलचल थी उस हवा में,एक सिहरन जो मानो किसी के होने का एहसास देती हो..
अब वो कोई छुपा हुआ तांत्रिक/व्यक्ति,कोई अदृश्य शक्ति या कुछ भी हो सकता है।
क्या है पुख्ता तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

बस एक सबूत ये कि दो बार खांसने की आवाज आई थी।
बस इस मुद्दे में और इससे ज्यादा जानने,सोचने और समझने को कोई बात नहीं रह गई है।
इतने में ये संपूर्ण है।

अब सच बोलूं तो मेरे लिए आज भी सबसे बड़ा भूत,सबसे बड़ी डायन महंगाई,गरीबी,अशिक्षा और कुपोषण है जहां बात इन सब समस्याओं की आती है तो ये सारा जादू टोना,तंत्र-मंत्र सब एक कोरी बकवास के अलावा और कुछ भी नहीं लगता।
अगर ये जादू टोने होते भी हैं तो इस पर विमर्श करने लग जाना खुद को सदियों पीछे ले जाने जैसा है।
अतीत में बुद्ध धर्म को इसी एक धारणा ने अपार क्षति पहुंचाई और कालांतर में भूत संबंधी विषयों में लोगों की विशेष दिलचस्पी इस बात का साफ संकेत है कि मूल कर्तव्यों में जो Scientific temper की बात कही गयी है उसकी समझ से लोग काफी दूर हैं।