Thursday, 4 April 2024

Zero percent interest

Purchasing power parity आत्मबल का विरूध्दार्थी है। दो दशक पहले का ही समाज देखें तो लोगों के पास बहुत सीमित संसाधन हुआ करते, इसका अर्थ यह नहीं था कि उनके पास क्रय शक्ति नहीं थी, समाज का एक बड़ा हिस्सा सदियों से जिस परंपरा को अपना कर चला आ रहा था, उसी दिशा में था, चोचले ज्यादा नहीं थे। शादी का आयोजन या कोई विपदा ही इंसान के सबसे बड़े खर्च के रूप में था, जिसके लिए वह कर्ज लिया करता। इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति कर्ज/उधार लेता तो उसे बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता कि ऐसी क्या नौबत आ गई कि कर्ज लेना पड़ा। कुल मिलाकर एक अपराध के रूप में देखा जाता रहा कि इतना क्या नैतिक बल कमजोर हो गया। लेकिन बदलते समय के साथ और खासकर इस रीलयुगीन सभ्यता के उत्तरार्द्ध के बाद से जैसे तमाम नैतिकताओं का भूस बन गया। आज अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए कर्ज लेना ( emi etc) फैशन बन चुका है, आप उस लिए हुए कर्ज पर दुबारा कर्ज लेना चाहते हैं तो वह भी उपलब्ध है। अपने क्षणिक सुख के लिए इस फैशन को गले लगाने वाले को बाजार यह जरा भी अहसास होने नहीं देता कि वह बदले में उपभोक्ता का आत्मबल, उसका स्वाभिमान हमेशा के लिए छीन रहा होता है वो भी 0% interest पर। ऐसे कमजोर हो चुके नागरिक को मनचाहे लाइन पर लगाया जा सकता है, उससे ताली थाली भी बजवाया जा सकता है, बिना अनुमति के उसे चंदा राशन वगैरह भी बांटा जा सकता है, आसान शब्दों में कहें तो उसे बड़ी आसानी से मानसिक रूप से नपुंसक बनाया जा सकता है।

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