वे कहा करते- देखो सामने ये हिमालय, देखो ये बर्फ की चोटियाँ। महसूस करो अपने भीतर, ऐसे ही अडिग रहना। फिर अगले पल कहते - एक ही स्मृति है, एक ही जीवन है, अपने भीतर विनम्रता की मजबूती रखना। धर्मग्रंथों को साथ रखना, उससे जो बेहतर मिलता हो ग्रहण करना, लेकिन हमारे धर्म ग्रंथ पाप-पुण्य युध्द-दण्ड में उलझाते हैं, इससे बचना। इंसानी सभ्यता का अस्तित्व ही हिंसा पर टिका है, यह भी अकाट्य सत्य है कि वह हिंसक न होता तो आज उसका अस्तित्व ही नहीं होता। लेकिन आज मनुष्य का चौतरफा वर्चस्व है। हिंसा पाखण्ड और पागलपन से लबरेज वह सब कुछ पा लेना चाहता है, धर्मग्रंथों की अधिकतर बातें यहीं निराधार हो जाती है, आज जीने के लिए हिंसा नामक तत्व की नाम-मात्र भी आवश्यकता नहीं है, इसलिए इस तत्व को हावी होने नहीं देना। यहीं से जीने लायक बहुत सी उलझनें खत्म हो जाएंगी। इंसान क्या, एक चींटी से लेकर हाथी तक, हर एक प्राणी मात्र के लिए सहजता आएगी।
ध्यान रखना कि कभी किसी से न व्यक्तिगत होना न किसी के अहं को चोट पहुंचाना। भूखे पेट सो जाना, लेकिन कभी किसी का अहसान नहीं लेना, इससे तुम्हारा आत्मबल कमजोर होगा। बड़े से बड़ा धर्मावलंबी यहां चूक जाता है। विपरित परिस्थितियां आएंगी, लेकिन फिर भी बेहतर तरीके से जीवन जीना है तो खुद खामोशी से सब झेल लेना लेकिन न अपनी भाषा खराब करना, न ही अपनी विनम्रता खोना। याद रखना कि इंसानी सभ्यता के मूल में हिंसा है और इससे तुम्हें अप्रभावित रहना है। सबसे बड़ा धर्मयुध्द आज के समय में यही है कि हम कैसे अपने आप को इस हिंसा रूपी आंधी से बचा ले जाएं।
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