Friday, 31 March 2023

पाप का घड़ा

एक सरकारी बाबू रहे। चूंकि व्यवस्था में लंबे समय तक रहे तो सरकारी काम-काज की पैनी समझ रखते थे। पहुंच ऐसी की बड़े-बड़े नेता तक उनके सामने अदब से पेश आते। जिले में जिलाधीशों का आना-जाना लगा रहता लेकिन बाबू की हनक में कोई कमी नहीं हुई। व्यवस्था को इतने करीब से जो जानते थे। अपनी समझ और सूझ-बूझ का उन्होंने जमकर दुरूपयोग किया। भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान गढ़ दिए, भ्रष्टाचार के ऐसे शीर्ष पर पहुंचे मानो उस पद पर रहते हुए पूर्व में किसी ने भ्रष्टाचार किया होगा तो इससे अधिक नहीं। भविष्य में कोई भ्रष्ट आचरण कर सकता है तो इतना ही इससे अधिक नहीं। आज भी कोई भ्रष्टाचार कर रहा होगा तो इतने पर्यंत ही इससे अधिक नहीं। कुल मिलाकर लोगों का भयानक स्तर पर शोषण किया। शायद ही जीवन में कभी तनख्वाह को हाथ लगाने की नौबत आई हो। दफ्तर के दूसरे लोगों को घबराहट हो जाती कि इतने लोगों की आह लेकर वह व्यक्ति कहाँ जाएगा, आखिर नींद कैसे आती होगी। लोग यह भी कहते कि इतने लोगों को कष्ट देने वाला यह सुखी रहता है और सलीके से जीवनपथ पर चलने वालों के लिए पग-पग पर कांटे हैं। जो ऐसा सोचते थे उनको यह नहीं मालूम था कि उस सरकारी बाबू के संचित कर्म पक कर तैयार हो रहे थे। उसका एक बेटा रहा, बेटे को मोटी फीस देकर उसने मैनेजमेंट कोटे से एक महंगे कालेज में भर्ती करवाया। कुछ समय बाद ही बेटा एक ट्रक दुर्घटना में चल बसा। पत्नी के साथ भी पारिवारिक संबंध कुछ बहुत अच्छे नहीं थे क्योंकि आजीवन भ्रष्टाचार, हेर-फेर से मुद्रा संचय करने में ही जीवन खपा दिया। असल मायनों में जीवन क्या होता है इसकी समझ विकसित ही नहीं हो पाई। और अंत में वह बाबू ऐसी बेकार मौत मरा कि शायद एक आम व्यक्ति के लिए उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। किसी अज्ञात कारणवश आग की लपटों से धूं-धूं कर जलते हुए उसकी जान चली गई। सवाल करने का मन होता है कि आखिर सिर्फ उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ। शायद उसका पाप का घड़ा भर गया था।

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