Day 380
Death Toll 715
शुभकामनाएँ
Death Toll 715
शुभकामनाएँ
किसान आंदोलन की सफलता की सभी देशवासियों को बहुत बहुत शुभकामनाएँ।।
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप इस आंदोलन का हिस्सा थे या नहीं, आपने आंदोलन में समय बिताया या नहीं, आपने आंदोलन में किसी प्रकार का योगदान दिया या नहीं, आपने आंदोलन का समर्थन किया या नहीं, आप आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखते थे या नहीं रखते थे या आप इस आंदोलन के कारणों को समझते थे या नहीं समझते थे, अब इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है। भले आपने इस आंदोलन का जमकर विरोध किया हो, आपने सरकार और कारपोरेट मीडिया द्वारा बनाए गए नैरेटिव के आधार पर ही झूठ फैलाया हो, किसानों को जो मन आया कह गये हों। जब किसान और मजदूर लोगों को जाति धर्म लिंग सब भूलकर एकजुट होने के लिए कह रहे थे, तब भी आप इस आंदोलन को धर्म, जाति और वर्ग का के चश्मे से देख रहे हों, चाहे आपको आंदोलन से घोर असहमति हो, घोर आपत्ति हो, फिर भी आज यह जीत की बधाई हम सभी के लिए है, इसलिए सभी को शुभकामनाएँ।
इस देश का किसान आज सभी को बधाई दे रहा है क्योंकि पिछले कई दशकों से इस देश के लोगों के दिमाग में एक बात प्रोजेक्ट कर दी गई है कि आधुनिकता में जीने वाले शहरी लोग किताब पढ़ने वाले बुद्धिजीवी लोग ही दुनियावी चीजों की समझ रखते हैं, और एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए वही कुछ अच्छा कर सकते हैं। किसान गांवों की परंपरा और आधुनिकता दोनों की समझ रखता है, सेवा और लंगर की संस्कृति उसे मजबूती देती रही है, डिजिटल दुनिया में भी हाथ जमा चुका है क्योंकि आज हम में से हर कोई जो शहरों में रहता है वह एक या दो या तीन पीढ़ी पहले गांवों से ही आया है। किसान इस बात को समझता है कि सिर्फ एक अंग्रेजी भाषा ही बदलाव और समृध्दि नहीं ला सकती है वह अपनी भाषा के सहारे भी बदलाव ला सकता है।
शहरी व्यक्ति गाँव से दूरी बनाकर चलता है, अपने साथ नवीन मूल्यों को जोड़ता है, मध्यम वर्ग का निर्माण करता है और सरकार का घोर समर्थक बन जाता है, वही सरकार जो अपने फंडिंग एजेंसी और चुनावी वोटबैंक के आधार पर ही नीतियां बनाती है। शहरी मिडिल क्लास खुद को मजबूती से मुख्यधारा में बनाए रखने के लिए ग्रामीणों का शोषण करता है, अपनी चीजों के लिए खूब शोर मचाता है, सोशल मीडिया पर तो आक्रोश दिखा लेता है, लेकिन सड़कों पर कदम नहीं रखना चाहता। पिछले कुछ दशकों से लगातार उपेक्षा में रहे गाँव के लोगों, किसानों को पता है कि एक समय के बाद जमीन पर उतरकर विरोध प्रदर्शन करने की जरूरत होती है।
शहर के विपरीत, गाँव की एक अच्छी चीज यह है कि वहाँ हम सभी का एक ही केन्द्र है। हमारे जन्म चिह्न, हमारी धार्मिक पहचान, हमारे स्थान, हमारे पेशे, हमारे पूर्वाग्रहों को, हमारी नियत, हमारी प्रथाओं को अलग से परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है। यदि हम संकल्पित हैं, संगठित हैं, एकजुट हैं, हमें अपने उपलब्ध संसाधनों की समझ है, हम लड़ने, बलिदान देने को तैयार हैं, तो सबसे क्रूर से क्रूर सरकारों को भी हमारी जायज मांगों पर सहमत होना ही होगा, उन्हें झुकना होगा। बशर्ते हमारे गांव अपनी जड़ों को चिन्हित करते चलें, उनमें अपार क्षमता है।
यह सब कहने से गाँव की मूल समस्याएं नजर अंदाज नहीं हो जाती है बल्कि यह हमें जानने सीखने की जरूरत है कि हमारे आसपास की समस्याओं के लिए हम ही जिम्मेदार हैं, हम ही उसके लिए समाधान का मार्ग प्रशस्त करेंगे, हम इतने भी कमजोर न पड़ें कि एक प्रबंधक रूपी सरकार हमें अपने मन मुताबिक हांकता रहे। हमारी सारी समस्याओं का समाधान कहीं बाहर नहीं वरन् हमारे भीतर है।
आप सभी इस जीत की बधाई स्वीकार करें लेकिन जब आप ऐसा करते हैं, तो साथ ही इसे अपनाएं भी और इस बात को मन में बिठाएँ की बधाई देना भी एक जिम्मेदारी का काम होता है। अपने आप से पूछें कि जब यह शुभकामनाएँ आप देते हैं तो आपको कैसा महसूस होता है। अगर यह शुभकामनाएँ देने से आपके मन में अन्याय और शोषण के खिलाफ खड़े होने के लिए साहस का द्वार खुलता है, आपको हिम्मत मिलती है, तो विश्वास मानिए आपके लिए किसान आंदोलन सफल रहा है। अगली बार आप भी उठेंगे और जीतेंगे। जैसे इस बार किसानों ने जीत हासिल की है।
हमें एक लंबी दूरी तय करनी है। हमारे सामने कई चुनौतियां हैं। आइए हम सब मिलकर एक बेहतर दुनिया बनाएं।
मूल लेख अंग्रेजी में
साभार - अमनदीप संधू
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