सिंघु गाँव के अधिकतर लोग किसानों के जाने के बाद आंसुओं में हैं,जबकि किसानों की वजह से वहाँ उनके आवागमन, यातायात, व्यापार सारी चीजें बुरे तरीके से एक साल तक प्रभावित हुई। अपनी बात कहूं तो किसानों के घर वापस जाने वाली बात को लेकर बहुत मिली-जुली प्रतिक्रिया है, जीत की बहुत खुशी है, बहुत ज्यादा खुशी है, लेकिन गम भी उतना ही है, कोई एक भाव नहीं है, एक साथ बहुत से भाव उमड़कर सामने आ रहे हैं, किसानों ने सिर्फ कानून के स्तर पर जीत हासिल नहीं की है, उन्होंने हम जैसे हजारों लाखों आम लोगों का दिल जीता है, हमें एक नयी रोशनी दी है, हमें रास्ता दिखाया है। इतने किसानों की शहादत...चूंकि करीब से परिवारों को उजड़ते देखा है तो याद करके रोना आ जाता है, एक आजाद लोकतांत्रिक देश में किस तरह इस देश के आम किसानों ने शारीरिक मानसिक हर तरह की प्रताड़ना झेली, और यह सब किसके लिए, इसी देश के आने वाले भविष्य के लिए। किसानों के ऊपर तमाम तरह की हिंसाओं को करीब से होता देख यह महसूस हुआ कि अभी हम लोकतंत्र की थोड़ी भी समझ हासिल नहीं कर पाए हैं, एक बड़ी आबादी को अभी भी यह सब रत्ती भर महसूस नहीं होता है, महसूस करना ही नहीं चाहते, कैसे मुर्दे लोग हैं, बहुत दुःख होता है इतना अंधापन देखकर।
आंदोलन स्थल से किसान अब अपने घरों को चले गये हैं। ऐसा लगा जैसे अपना कोई गाँव उजड़ कर खाली हो गया, अपने लोग कहीं चले गये जो अब इस जगह में लौटकर कभी न आएं। जब-जब इन रास्तों से गुजरना होगा, रह-रह के किसान याद आएंगे।
720 शहीद किसानों को अश्रुपूरित श्रध्दांजलि। 😐🙏
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