Wednesday, 13 January 2021

Doubts related to Farmers bill and the protest -

किसान आंदोलन से संबंधित भ्रांतियाँ -


सवाल - खलिस्तानी हैं, पंजाब को अलग करना है, इसलिए आंदोलन हो रहा है।


जवाब - सब मूर्खता की बात है, पंजाब आखिर क्यों अलग होना चाहेगा। चीन पाकिस्तान और भारत तीन अलग-अलग विकासशील देशों का बार्डर झेलना है क्या उसे?अलग होना बस मूल मुद्दे से भटकाने वाली बातें हैं। किसान अपनी चीजों को लेकर सरकार से कहीं अधिक स्पष्ट हैं।


सवाल - पंजाब हरियाणा के किसान तो अमीर हैं, पता नहीं और कितने पैसे चाहिए उन्हें। 


जवाब - जहाँ तक किसानों की अमीरी की बात है, हर कोई किसानी दम लगाकर करे, पैसे कमाएँ, एसयूवी खरीदे, बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भेजे, किसने रोका है। उनसे तो प्रेरणा लेनी चाहिए जो किसानी की इतनी इज्जत करते हैं, अब यह भी तर्क रहेगा कि पंजाब हरियाणा की जमीन अच्छी है फलां फलां। तो भाई वो एसयूवी ले सकते हैं तो आप कम से कम मारूति ले लीजिए, थोड़ा कम ही सही, शान से जीवन यापन करिए, भारत के दूसरों राज्यों का किसानी का सिस्टम इतना भी खराब नहीं कि किया ही न जा सके। 


सवाल - सिर्फ पंजाब हरियाणा के लोग प्रमुखता से प्रोटेस्ट कर रहे क्योंकि इन्हीं को इस बिल से फर्क पड़ेगा।


जवाब - चलिए ठीक है एक बार के लिए मान लिया जाए इन्हीं को फर्क पड़ेगा। शुरूआत में तो इन्हें ही फर्क पड़ेगा। जहाँ जितनी अमीरी वहाँ उतना ही फर्क पड़ना है। लेकिन धीरे-धीरे सबको फर्क पड़ेगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) किसी न किसी फसल में हर राज्य में है, मंडी हर राज्य में है। मंडी खत्म होने का सिलसिला शुरू हो जाएगा फिर दिया तले अंधेरा वाली स्थिति सबके लिए निर्मित हो जाएगी। जो किसान जागरूक है, देख पा रहा है, उसने मुहिम शुरू कर दी है, धीरे-धीरे बाकी राज्य भी जुड़ने लगेंगे, देर से ही सही सबको आना होगा। विश्वास वाली चीज सरकार से सबको चाहिए, पूरे देश के किसानों को चाहिए, उनका यह विश्वास उनका हक है, उन्हें ये किसी भी सूरत में मिलना ही चाहिए। 


सवाल - किसान पिज्जा खा रहे, हलवा खा रहे, ये कैसा आंदोलन है?


जवाब - पिज्जा और हलवा खाने पर सवाल उठाने वाला आखिर है कौन? इसी अपमान से ही तो यह आंदोलन किसानों को मुक्ति दिलाएगा, यह बताएगा कि किसानी सम्मान की चीज है, उसको सम्मान देना ही होगा। जैसे पंजाब हरियाणा का किसान सम्मान से किसानी करता है, वैसा सम्मान पूरे देश के किसानों तक पहुंचेगा, तक युवाओं तक भी यह बात जाएगी कि किसानी किसी की नौकरी करने से कहीं बड़ी चीज है।


बाकी पिज्जा और हलवा के लिए जो आवश्यक कच्चा माल चाहिए होता है, सब किसानी से ही आता है, क्या अब किसान अपनी पैदा की हुई चीजें भी न खाए? वह क्या भूखा मरे? जो उपभोक्ता है, जो कुछ उत्पादन नहीं करता है, क्या उसकी यही सोच है? उसे तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि किसान चीजें पैदा करता है तभी वह खाना खाके मजे से जीवन यापन करता है, आफिस में बैठ के मौज करता है, कंप्यूटर चलाकर पैसे बनाता है, फ्लाइट में उड़ता है। किसानी जिस दिन अलग हो जाएगी, सब खत्म हो जाएगा। तब पिज्जा और हलवा खाने पर सवाल करने लायक भी न बचेंगे।


सवाल - फलां फलां संस्थाएँ पार्टियाँ प्रायोजित करवा रही यह आंदोलन, ये सब राजनीतिक आंदोलन है।


जवाब - बिल्कुल नहीं। जिन्हें ऐसा लगता है, उन्हें एक बार आंदोलन वाली जगह में जाकर देख आना चाहिए। शायद यह आजाद भारत का पहला ऐसा आंदोलन है तो प्रायोजित नहीं है। प्रायोजित होता तो अब तक बाकी फर्जी आंदोलनों की तरह यह भी हाइजैक हो चुका होता, लेकिन यह नहीं हुआ, क्योंकि यह किसी विचारधारा, पंथ, पार्टी, द्वारा पैदा किया गया आंदोलन नहीं है। किसानों के मन से उपजा आंदोलन है, किसानी की साख बचाने के लिए शुरू किया गया आंदोलन है, जिसकी अभी शुरूआत ही हुई है।



अंत में जो तस्वीर अपलोड हुई है, उस पर ध्यान दिया जाए। यह एक किसान आंदोलन की तस्वीर है, जिसमें महिलाओं के लिए रहने सोने की व्यवस्था की गई है, आस पड़ोस में अलग-अलग राज्यों के टेंट लगे हुए हैं, जिनमें अधिकांशत: पुरूष वर्ग हैं, हर कोई मिल-जुलकर साथ में रह रहा है। अब जिनको भी किसान आंदोलन से संबंधित बुनियादी शंकाएँ हैं वे इस तस्वीर को देखकर मन में यह विचार करें कि जिस दिल्ली में महिलाएँ असुरक्षित महसूस कर लेती हैं, उसी दिल्ली में महिलाएँ कैसे सुरक्षित होकर रोड में महीनों से अनजान लोगों के बीच रह रही हैं?


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