Thursday, 14 January 2021

किसान आंदोलन से लोकतंत्र का खतरे में आ जाना -

 लोग कह रहे कि किसान रोड जाम कर रहे, ट्रेन रोक रहे, लोकतंत्र खतरे में आ गया। चलिए मान लिया।


लेकिन तब आपका लोकतंत्र क्यों खतरे में नहीं आता है जब -

- कांवड़ यात्रा से आधा नार्थ इंडिया कई दिनों तक जाम की परेशानियां झेलता है।

- जब रोड में मुहर्रम, गणेश पूजा, दुर्गा पूजा और तमाम तरह की धार्मिक गतिविधियों की रैलियाँ निकलती है।

- जब राजनैतिक पार्टियों की रैली निकलती है।

- जब शादियों की गाड़ियाँ सड़क को अपने ताऊ की जमीन समझकर घंटों घेरकर चलती है।



कितने ऐसे मौके हैं जब आप और हम थोक के भाव में लोकतंत्र की ऐसी तैसी करते हैं लेकिन हमें किसानों के रोड रोकने से बदहजमी‌ हो जाती है, किसान आंदोलन तो वैसे भी व्यवस्थित आंदोलन है, जहाँ जहाँ वे बैठे हैं, रास्ता डाइवर्ट कर दिया है, रास्ता रोका नहीं है, इसलिए किसी को समस्या भी नहीं है, पुलिस आर्मी किसान सब मिलजुलकर साथ में लंगर खा रहे हैं। लेकिन जिन्हें ये सब चीजें नहीं मालूम, जो अपने घरों में बैठकर टीवी देख रहे हैं, मोबाइल में न्यूज देखकर अपनी राय बना रहे हैं, उन्हें बहुत समस्या हो रही है, उनके लिए ही ये देश और इस देश का लोकतंत्र खतरे में आ गया है। 



तस्वीर में आप देखिए, पूरे एक साइड का रोड खाली है ताकि लोगों को समस्या न हो, और रोड के दूसरी ओर किसान बैठे हैं, किसान आंदोलन कितना लोकतांत्रिक है इस का अंदाजा इसी तस्वीर को देखकर लगाइए कि जिन सड़कों में ये महीनों से रह रहे हैं उसमें सड़क के दूसरी ओर जहाँ गाड़ियों का आवागमन हो रहा है वहाँ एक कचरा तक नहीं दिखाई देता है, ऐसी खूबसूरती आपको सिर्फ इसी आंदोलन में दिखेगी,  इसलिए भी यह भारत में अभी तक हुए धरनों, आंदोलनों से बिल्कुल अलग है।

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