किसान आंदोलन सिर्फ किसान आंदोलन है, जिसकी नींव पंजाब के सिखों ने रखी, फिर बाकी लोग जुड़ते गये। और जब नींव सिखों ने रखी तो उनको उम्मीद थी कि देश के बाकी हिस्सों से भी अलग-अलग लोग जुड़ेंगे, उसी तेवर से जुड़ेंगे जिस तेवर से उनका सिख तबका जुड़ता गया, लेकिन हमेशा की तरह इस देश ने इस देश की आवाम ने उन्हें निराश किया।
आजादी के समय से आज तक जिस कौम ने अपने सीने में गोली खाने से परहेज न किया, हंसते हंसते फाँसी के फंदे को गले लगा लिया, आज वह कौम अकेले अपने दम पर जब किसानों के मुद्दे को लगातार अग्नि दे रही है, तो इस देश की जनता क्या कर रही है, वह बजाय उनका समर्थन करने के उल्टे उन पर शक कर रही है, उन्हें खलिस्तानी, पाकिस्तानी, देशद्रोही कह रही है, उनकी नियत पर शक कर रही है, एक भारतीय के लिए इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है कि उसी के देश में सबसे जिंदादिल कौम जो सरहद से लेकर देश के भीतर हर जगह हमेशा अपनी मिट्टी के लिए मर मिटने को तैयार रहा, उसे आज यह दिन देखना पड़ रहा है। फिर भी दो महीनों से वह डटा हुआ है, उसे किसी के समर्थन सहयोग की जरूरत नहीं है, वह अकेले रस्सी खींच ले जाएगा और आप और हम शर्म से सिर झुकाने के लिए बस रह जाएंगे।
जहाँ तक बात पाकिस्तान के समर्थन की है, तो समर्थन पाकिस्तान का है, कनाडा का है, अमेरिका है, फ्रांस का है, ब्रिटेन का है, बहुत से ऐसे देशों का है। लेकिन समर्थन देश नहीं कर रहा है, समर्थन कर रही है वहाँ बैठी सिखों की आबादी जिन्हें अपने लोगों के लिए आगे आना पड़ा क्योंकि इस देश की जनता सोई हुई है।
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