माता-पिता अपनी हिंसा बच्चों को हस्तांतरित करने का एक मौका नहीं छोड़ते हैं, खुद जितने मशीनी होते हैं अपने बच्चों को भी वैसा ही बना डालते हैं, इसमें आधार बनता है परिवार, समाज, देश, संस्कृति आदि। इन्हीं टूल्स को काम में लगाकर बच्चे की बुध्दि को संकुचित करने का काम किया जाता है। और मजे की बात ये कि उन्हें अपनी इस गलती का इंच मात्र भी आभास नहीं हो पाता है, उन्हें लगता है बच्चा अगर उनकी तरह रोबोट नहीं बन पाया तो उसका जीवन नर्क हो जाएगा। उन्हें लगता है कि उन्होंने जिस ढर्रे पर पूरा जीवन जिया है, जीवन जीना उसे ही कहते हैं, उसके अलावा भी कोई जीवन होता है, इसकी न तो उन्हें समझ होती है, न ही ऐसी दृष्टि होती है, इसलिए ऐसी कल्पना भी नहीं कर पाते हैं। उन्हें लगता है वे अग्रगामी हैं, लेकिन असल में होते वे पश्चगामी ही हैं। ऐसी मानसिकता ही समाज को, देश को पीछे ढकेलती है। शिक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य, सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार यह सब बहुत बाद में आता है, इन सारी समस्याओं की जड़ हमारा अपना परिवार होता है, सब कुछ इसी का विस्तार तो है, हम जब तक इस सच्चाई को नहीं स्वीकारेंगे, तब तक उल्टी दिशा में गंगा बहती रहेगी।
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