शान्तनु अपनी पत्नी विभा को लेकर अस्पताल पहुंच चुके हैं। घर के बाकी लोग भी अस्पताल के लिए निकल गये हैं। विभा के पेट में जोर का दर्द उठा है, शायद बच्चे की डिलीवरी का समय आ चुका है, हर कोई डिलीवरी होने के इंतजार में अस्पताल के बाहर मौजूद हैं। उसी समय डाक्टर ये सूचित करते हैं कि कल डिलीवरी होगी। अगले दिन शाम को डिलीवरी होती है। शान्तनु के सारे दोस्त यार अस्पताल के बाहर जमावड़ा लगा चुके हैं। शान्तनु ने अपने दोस्तों को उसी समय एक छोटी सी पार्टी देने के लिए वहीं पास में एक होटल को चिकन बनाने का आर्डर दे दिया है। शराब की कुछ बोतलें भी आ चुकी है। हर कोई अस्पताल के बाहर इसी इंतजार में है कि बेटा हुआ है कि बेटी। कुछ देर में खबर आती है कि बेटा हुआ है, जच्चा-बच्चा दोनों की हालात सामान्य है। शान्तनु से उनके दोस्त यार अब गले मिल रहे हैं, एक एक कर बधाई देते जा रहे हैं। सब तरफ खुशी और उल्लास है।
अब पास के होटल में चिकन तैयार हो चुका है, शान्तनु और उसके दोस्त यार सब लोग जमकर शराब पी रहे हैं, चिकन खा रहे हैं। इसी बीच बेटे के नाम और उसके भविष्य को लेकर बातें चलती रहती है तो शान्तनु उसी समय एक अलग ही अंदाज में कहते हैं कि हटा यार लौंडा हुआ है, मेरी ही तरह आवारागर्दी करेगा, शराब सिगरेट पियेगा। काश बेटी होती तो अपना सारा कुछ उस पर न्यौछावर कर देता, कम से कम ये तो भरोसा रहता कि कल को मेरा नाम रोशन करेगी। शान्तनु चेहरे में हल्की सी हंसी लिए हुए अंदाज में ये सब कह रहे थे। अभी बेटे को इस दुनिया में आए मुश्किल से एक घंटा हुआ है, लेकिन शान्तनु के मन में क्या-क्या नहीं चल रहा है। वे बेटे के आने वाले कल को अभी से देखने लगे हैं, उनके मन में यही है कि मैं तो वैसे उतना पढ़ा-लिखा हूं नहीं और मैं इसके लिए कितना भी कुछ कर लूं बेटा बड़ा होकर कल को अपनी मर्जी का मालिक हो जायेगा, मेरे ही सर पर चढ़ेगा, भरोसा तोड़ेगा।वे यही सोच रहे हैं कि बेटियां हमेशा भरोसे लायक होती हैं, जिम्मेदार होती हैं, जीवन भर पिता का मान रखती हैं। पुत्र प्राप्ति के बाद एक पिता के रूप में शान्तनु की ये एक स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया है जो हमारे सामने है। सही ही है कि एक पिता चाहे वो अपने युवावस्था के दिनों में कैसा भी हो, हमेशा पुत्री की अभिलाषा रखता ही है। लेकिन इसके ठीक उलट आज विभा बहुत ज्यादा खुश हो रही होगी, यही सोच रही होगी, कि बेटा हुआ जीवन भर के लिए एक सहारा मिल गया।
बाप की इच्छा बेटियों को आगे लाती है, और मां की इच्छा बेटों को। और प्रकृति का साम्य यथाभूत बना रहता है।
अब पास के होटल में चिकन तैयार हो चुका है, शान्तनु और उसके दोस्त यार सब लोग जमकर शराब पी रहे हैं, चिकन खा रहे हैं। इसी बीच बेटे के नाम और उसके भविष्य को लेकर बातें चलती रहती है तो शान्तनु उसी समय एक अलग ही अंदाज में कहते हैं कि हटा यार लौंडा हुआ है, मेरी ही तरह आवारागर्दी करेगा, शराब सिगरेट पियेगा। काश बेटी होती तो अपना सारा कुछ उस पर न्यौछावर कर देता, कम से कम ये तो भरोसा रहता कि कल को मेरा नाम रोशन करेगी। शान्तनु चेहरे में हल्की सी हंसी लिए हुए अंदाज में ये सब कह रहे थे। अभी बेटे को इस दुनिया में आए मुश्किल से एक घंटा हुआ है, लेकिन शान्तनु के मन में क्या-क्या नहीं चल रहा है। वे बेटे के आने वाले कल को अभी से देखने लगे हैं, उनके मन में यही है कि मैं तो वैसे उतना पढ़ा-लिखा हूं नहीं और मैं इसके लिए कितना भी कुछ कर लूं बेटा बड़ा होकर कल को अपनी मर्जी का मालिक हो जायेगा, मेरे ही सर पर चढ़ेगा, भरोसा तोड़ेगा।वे यही सोच रहे हैं कि बेटियां हमेशा भरोसे लायक होती हैं, जिम्मेदार होती हैं, जीवन भर पिता का मान रखती हैं। पुत्र प्राप्ति के बाद एक पिता के रूप में शान्तनु की ये एक स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया है जो हमारे सामने है। सही ही है कि एक पिता चाहे वो अपने युवावस्था के दिनों में कैसा भी हो, हमेशा पुत्री की अभिलाषा रखता ही है। लेकिन इसके ठीक उलट आज विभा बहुत ज्यादा खुश हो रही होगी, यही सोच रही होगी, कि बेटा हुआ जीवन भर के लिए एक सहारा मिल गया।
बाप की इच्छा बेटियों को आगे लाती है, और मां की इच्छा बेटों को। और प्रकृति का साम्य यथाभूत बना रहता है।
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