Monday, 20 February 2017

~ स्वाभिमान की लड़ाई ~

                   देखो न इतनी लड़ाइयों के बाद कितनी थकान महसूस कर रहा हूं मैं, उठ चुका हूं नींद से, फिर भी  थकान बनी हुई है। जिस संस्कृत के मंत्र को सुनते हुए आज मैं सो गया था। तुम सपने में वही संस्कृत का मंत्र दोहरा रही थी। नदी किनारे उस मंदिर के पास, वही तो एक मंदिर था जहां तुम रोज जाती थी अपनी मां के साथ। मैंने सपने में तुम्हें मंत्र का उच्चारण करते सुना, अभी फिर से वही मंत्र सुन रहा हूं तो ये आवाज फीकी लग रही है उस आवाज के सामने जो तुमसे मैंने सपने में सुना था।
पता नहीं तुम सच में मंत्रों का जाप करती हो या नहीं, लेकिन अगर तुम ये पढ़ रही होगी तो इस पर तुम्हारा ध्यान जरूर जाएगा।

मंत्र कुछ इस तरह है--
कराग्रे वसते लक्ष्मि:, करमध्ये सरस्वति।
करमुले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम्।
समुद्रवसने देवि:, पर्वतस्तनमंडलेः,
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं ,पादस्पर्शं क्षमस्वमे।

                क्षमा करना कि मैंने तुम्हें सपने में देखा। सपने में हम दोनों साथ में घूम रहे थे, याद है तुम्हारे शहर से एक नदी होकर जाती है, नदी पर घाट बने हुए हैं, उस नदी के एक ओर मंदिर बना हुआ है, और ठीक उसी नदी के दूसरी ओर एक पुरानी हवेली है, उसके पीछे की गली में आज भी दुकानें सजती है। हम उन गलियारों में महीने में एक या दो बार छुप-छुपाकर घूमने जाया करते थे, मैंने तुम्हारे लिए शायद कुछ खरीदा भी था। याद है तुम अपने भाई के साथ मेले में झूला झूलने गयी थी, तुम्हें शायद झूले से डर नहीं लगता था, एक मैं था जो झूले से दूर भागता था इसलिए तुम अपने भाई के साथ झूला झूलने जाती थी। याद है तुम कितनी चुलबुली हुआ करती थी, एक बार तुमने और मैंने एक तांगे वाले से जिद कर ली और उसी को पीछे बिठाकर उसका तांगा चलाया था और फिर हम तीनों धड़ाम से पास के एक खेत में जा गिरे थे। तुम्हें संस्कृत बहुत पसंद था, तुमने शायद अपने पापा से सीखा था, तुम हमेशा संस्कृत के बारे में मुझे सिखाती और मैं हंसने लगता, क्योंकि मुझे तुम्हारी बात समझ न आती। तुम ये कहती कि संस्कृत लिखा-पढ़ी वाली कोई भाषा नहीं, इसे हमेशा एक कंठ की जरूरत होती है जो इसका सटीक उच्चारण करे और आने वाली पीढ़ी को सौंप दे।
                   पता है सबसे डरावना क्या था, वो ये कि मैंने तुम्हारे बचपन से लेकर आज को उस सपने के शुरुआती क्षणों  में देख लिया, हां मैंने सब देख लिया और अभी मैं इसे संभाल नहीं पा रहा हूं, किसी को उसकी अनुमति के बगैर ऐसे पूरा जान लेना मुझे अंदर से खाये जा रहा है। मैं कुछ भी नहीं जानना चाहता तुम्हारे बारे में, मिटा देना चाहता हूं तुमसे जुड़ी ये स्मृतियां। मैं अब नहीं चाहता कि तुम मेरे चेतन अचेतन में कहीं भी रहो, नहीं अब तुम्हें मेरी स्मृतियों में रहने की इजाजत नहीं है। तुम्हें हमेशा के लिए दूर हो जाना चाहिए। तुम इस तरह से मेरे सपने में क्यों आई, ऐसे गहरे तक झकझोर चुकी हो कि मैं कभी जिंदगी भर तुम्हें इसके बारे में बता नहीं पाऊंगा, मैं ये कभी नहीं बतलाऊंगा कि वो तुम ही थी जिसे मैंने हूबहू सपने में देखा।
                      सपना जब अपने आखिरी पड़ाव में था तो कुछ ऐसी स्थिति थी। उस समय ऐसा लगा कि सिर्फ तुम ही हो जो मेरे सपने में आई थी, तुम ही तो हो जिसके लिए मैंने इतनी मारकाट मचा दी। फिर मुझे ये लगने लगता है कि सिर्फ तुम नहीं हो, तुम्हारे जैसे पता नहीं कितने और हैं जो अपने स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहे हैं, अब मेरे सामने चेहरे झूल रहे हैं, ऐसा लग रहा है जैसे मैंने इन सबके लिए तलवार उठा ली। हां मैं उनका नाम तुम्हें नहीं बता सकता,  मैं तो तुम्हें ये भी नहीं बता सकता कि मैंने सिर्फ तुम्हें देखा था और सिर्फ तुम्हें देखने के एवज में मुझे न जाने कितने लोग याद आने लगे। ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे तुम उन लड़कियों का प्रतिनिधित्व कर रही हो। तुम अपने अस्तित्व को मिटाने के लिए हमेशा तैयार रहती हो, खुद अस्तित्वविहिन होकर दूसरों के अस्तित्व की रक्षा के लिए दुआएं करना कोई तुमसे सीखे।
                    देखो न तुम्हें नुकसान पहुंचाने वाले आज इस दुनिया में नहीं हैं।जो थोड़े बहुत रह गये थे तुम्हें बदनाम करने के लिए मैंने उन्हें भी तुमसे हमेशा के लिए दूर कर दिया, उन्हें मौत की नींद सुला दी।अब उनका साया का भी तुम तक नहीं आ पाएगा। तुम जब लिखोगी तो मेरे नाम सजाएं लिखना। लिख देना कि तुम्हें तुम्हारा सम्मान दिलाने के लिए मैंने हथियार उठाये। लिख देना कि मैंने खून की होलियां खेली।
मैं तुम्हें कभी नहीं बता पाऊंगा कि मैंने तुम्हें सपने में देखा।नहीं बताऊंगा तुम्हें कि मैंने चाकुओं का वार झेला, ये भी नहीं बताऊंगा कि मैंने कितनों को मौत के मुंह में ढकेल दिया।
                हंडियां चपटी हो गई हैं, बर्तन और बाकी सारे सामान बिखरे पड़े हैं, टूटी लकड़ियां बिखरी हुई हैं, धारदार चाकू खून से सने पड़े हुए हैं जमीन पर, उसी जमीन पर जहां आज तुम्हारा अहित चाहने वालों को मैंने अपने तलवार से लहूलूहान कर दिया। पता है सब तरफ मुझे लाल रंग दिखाई दे रहा है। उसी वक्त मुझे पकड़ने के लिए वहां कुछ सैनिक आ जाते हैं,  मेरे एक हाथ में चाकू और दूसरे हाथ में तलवार और कुछ इस तरह मेरा रौद्र रूप  देखकर वे वहां से चले जाते हैं। मैं फिर वहीं खड़ा रहता हूं, शांत पड़ जाता हूं, और फिर घुटनों के बल गिर जाता हूं और फिर कुछ देर बाद मैं अपने खून से सने कपड़ों को वहीं फेंक देता हूं और नये कपड़े पहनकर उस जगह से कहीं दूर चला जाता हूं।रास्ते भर यही सोचते रहता हूं कि तुम्हें तुम्हारा स्वाभिमान लौटाने के लिए मैंने ये क्या कर दिया। करीब दो दिन और दो रात लगातार जंगल के रास्ते चलते चलते मैं एक दूसरे गांव में पहुंच जाता हूं।
                मैं तुम्हें ये कभी नहीं बताऊंगा कि जब तुम्हें किसी ने बदनाम करने की कोशिश की तो मैंने हथियार उठा लिए, मैं लड़ने लग गया, घायल हुआ और लोगों को घायल भी किया। सब कुछ कितनी जल्दी हो रहा था। मैं बिना कुछ सोचे, बिना कुछ समझे बस मारे जा रहा था, मेरे सामने सिर्फ एक ही चीज थी, तुम्हारा स्वाभिमान से जड़ा चेहरा। मैं तुम्हें इस भयावह सपने के बारे में और बताकर डराना नहीं चाहता। मैं तुम्हें अगर अपने सपने के बारे में और बताने लगूंगा तो तुम्हें मेरे विचार सुन समाज के खिलाफ जाना पड़ेगा, अकेलेपन का जीवन जीना पड़ेगा, लड़ाईयां लड़नी पड़ेगी, इसलिए तुम ऐसा कभी मत करना।    
                   पता नहीं तुम्हारा मेरा रिश्ता कितना पुराना है। लेकिन तुम मेरे लिए एक सपना या कल्पना हो ही नहीं सकती, तुम तो एक चेहरा एक व्यक्तित्व लिए इसी जीवन में मौजूद हो मेरे साथ, हां भले तुम मुझसे दूर हो, अपना एक अलग जीवन जी रही हो। लेकिन मुझे ये महसूस होता है कि तुम बराबर मेरे हिस्से का जीवन बांट रही हो।


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