एक सरकारी बाबू रहे। चूंकि व्यवस्था में लंबे समय तक रहे तो सरकारी काम-काज की पैनी समझ रखते थे। पहुंच ऐसी की बड़े-बड़े नेता तक उनके सामने अदब से पेश आते। जिले में जिलाधीशों का आना-जाना लगा रहता लेकिन बाबू की हनक में कोई कमी नहीं हुई। व्यवस्था को इतने करीब से जो जानते थे। अपनी समझ और सूझ-बूझ का उन्होंने जमकर दुरूपयोग किया। भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान गढ़ दिए, भ्रष्टाचार के ऐसे शीर्ष पर पहुंचे मानो उस पद पर रहते हुए पूर्व में किसी ने भ्रष्टाचार किया होगा तो इससे अधिक नहीं। भविष्य में कोई भ्रष्ट आचरण कर सकता है तो इतना ही इससे अधिक नहीं। आज भी कोई भ्रष्टाचार कर रहा होगा तो इतने पर्यंत ही इससे अधिक नहीं। कुल मिलाकर लोगों का भयानक स्तर पर शोषण किया। शायद ही जीवन में कभी तनख्वाह को हाथ लगाने की नौबत आई हो। दफ्तर के दूसरे लोगों को घबराहट हो जाती कि इतने लोगों की आह लेकर वह व्यक्ति कहाँ जाएगा, आखिर नींद कैसे आती होगी। लोग यह भी कहते कि इतने लोगों को कष्ट देने वाला यह सुखी रहता है और सलीके से जीवनपथ पर चलने वालों के लिए पग-पग पर कांटे हैं। जो ऐसा सोचते थे उनको यह नहीं मालूम था कि उस सरकारी बाबू के संचित कर्म पक कर तैयार हो रहे थे। उसका एक बेटा रहा, बेटे को मोटी फीस देकर उसने मैनेजमेंट कोटे से एक महंगे कालेज में भर्ती करवाया। कुछ समय बाद ही बेटा एक ट्रक दुर्घटना में चल बसा। पत्नी के साथ भी पारिवारिक संबंध कुछ बहुत अच्छे नहीं थे क्योंकि आजीवन भ्रष्टाचार, हेर-फेर से मुद्रा संचय करने में ही जीवन खपा दिया। असल मायनों में जीवन क्या होता है इसकी समझ विकसित ही नहीं हो पाई। और अंत में वह बाबू ऐसी बेकार मौत मरा कि शायद एक आम व्यक्ति के लिए उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। किसी अज्ञात कारणवश आग की लपटों से धूं-धूं कर जलते हुए उसकी जान चली गई। सवाल करने का मन होता है कि आखिर सिर्फ उसके साथ ही ऐसा क्यों हुआ। शायद उसका पाप का घड़ा भर गया था।
Friday, 31 March 2023
Wednesday, 22 March 2023
India Ranked 126 in World Happiness Index report 2023
जो समृध्द है, सुविधाओं से लैस है, वह सवाल उठा रहा है कि ये रिपोर्ट गलत है, देश की छवि खराब करने वाली बात है। कोई कह रहा है कि हम नाखुश नहीं है, असल में हमारा देश एक बड़ा बाजार है, इसलिए पश्चिमी देश अपने उत्पादों को बेचने के लिए जान बूझकर ऐसे आंकड़े पेश करता है ताकि हम अधिक से अधिक खरीददारी करें, ऐसे महानुभावों से पूछने का मन करता है कि 136 करोड़ भारतीय में से कितने लोग ऐसे आंकड़ों को पढ़ते हैं और इससे प्रभावित होते हैं। कोई यह भी कह रहे कि युध्द के मुहाने पर खड़े यूक्रेन, या अन्य ऐसे देश जहाँ गरीबी, युध्दोन्माद, दिवालियापन चरम पर है, वे कैसे हमसे ज्यादा खुश हो सकते हैं। मुझे लगता है कि या तो ये जबरन इतने मासूम बने फिर रहे हैं या इन्हें भारतीय समाज की रत्ती भर समझ नहीं है। मनोरोग अकेला अपने आप में हैप्पीनेस इंडेक्स खराब करने के लिए काफी होता है। वैश्विक स्तर पर बनाए जाने वाले तमाम रिपोर्ट जिनमें किसी देश का चहुंमुखी विकास दिखाई देता है उनमें खासकर भारत के लिए सबसे जरूरी रिपोर्ट मुझे यही लगता है। विकास का क्या है, चलता रहता है, अधोसंरचनाएं थोक के भाव तैयार होती रहती है, जहाँ के बाशिदों ने कभी सड़क रेल फ्लैट माँगा ही नहीं, वहाँ भी जिद करके पहुंच जाता है विकास। विकास की यही खासियत है कि वह बिना इजाजत के कहीं भी पहुंच जाने की क्षमता रखता है और आंकड़े तैयार हो जाते हैं। लेकिन इस रिपोर्ट के साथ ऐसा नहीं है।
जिन देशों में गरीबी, युध्द, दिवालियापन वाली स्थिति है उन देशों में भी लोग हमसे ज्यादा खुश क्यों हैं इसका कारण जानने के लिए हमें उनके समाज को उनके सामाजिक ढांचे को देखना समझना होगा, जो कि हम कर नहीं सकते। इसलिए हमें चाहिए कि हम अपने ही सामाजिक ढांचे को ईमानदारीपूर्वक देख लें। किताबी बातों से इतर वास्तविक जमीनी हकीकत को देख लें कि एक इंसान के रूप में हम कैसा जीवन जीते हैं, अपने दैनिक जीवन में किस मानसिकता का पोषण करते हैं। यह भी देखें कि सबसे ज्यादा अमीरी और सबसे ज्यादा गरीबी दोनों चीजें हमारे यहाँ क्यों है, आय की असमानता में चोटी और खाई का अंतर आखिर क्यों है। आखिर कैसे, कैसे हमने इस मुकाम को हासिल किया है। हमारे आसपास समाज में इतनी टूट-फूट, इतना प्रतिरोध, इतना बिखराव, इतनी घुटन, इतनी अस्थिरता आखिर क्यों है। सबसे मजेदार जो कोई नहीं समझ पाता है वो यह है कि इस मनोरोग से हर कोई पीड़ित है, जो सुविधाओं से लैस है वह भी उतना ही दु:खी है जितना कि एक दूसरा व्यक्ति जो हाशिए पर है, विपदा के मारे है। एक को मुद्रा, बाजार और गलाकाट प्रतियोगिता ने जकड़ा हुआ है, तो दूसरे को पहले वाले की हरकतों से पैदा हुए निर्वात ने दबोच रखा है। आपने कितनी भी समृध्दि हासिल कर ली, माने लें आपने अपना घर कितना भी अच्छा बना लिया, आपके घर के बाहर नाली साफ करने वाला तो एक पीड़ित शोषित व्यक्ति है, उसके दुःखों का ताप आप तक चाहे अनचाहे पहुंचता ही रहेगा। किसी भौतिक वस्तु की तरह इसे आप रोक नहीं सकते, आप इससे खुद को अलग नहीं कर सकते हैं, जो ऐसा करते हैं, वे और दुःखी होते हैं, उनके भीतर हिंसा, कटुता, वैमनस्यता चरम पर होती है। और यही बड़ी मात्रा में हो भी रहा है तब कहीं जाकर सैकड़ा पार का यह 126 नंबर हमने हासिल किया है।
मूल बात यही है कि जहाँ एक किसी को अपने सुख के लिए, अपने आराम के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को चोट पहुंचाना पड़ रहा है, वहाँ दु:ख अपने पूरे विस्तार के साथ विभाजित होकर कोनों-कोनों तक पहुंचता रहता है। भोलापन इतना हावी है कि लोगों को इसकी भनक तक नहीं लगती है कि उनके होने भर से, उनकी जीवनशैली से, उनकी गतिविधियों से, मानसिकता से, आचार-व्यवहार से, तौर-तरीकों से कितने लोगों को किस-किस तरह का नुकसान पहुंच रहा होता है। दुःखों का अनवरत विस्तारण करने वाले ये लोग असल में खुद सबसे अधिक दु:खी होते हैं, और समाज में भी इसी का प्रसार करते रहते हैं।
भोजन, आवास संबंधी सुविधाएं अर्जित करने से, मौद्रिक स्थिरता पा लेने से या सुंदर काया का धनी हो जाने से ही अगर खुशहाली आ जाती तो हर समृध्द व्यक्ति खुश होता, ऐसा क्यों है कि सबसे भयानक विद्रूपताएं उल्टे इन्हीं के जीवन में होती है। इनके जीवन में समस्याओं का उद्गार ज्वालामुखी के लावे की तरह निरंतर होता रहता है, जो निचले स्तर के हर व्यक्ति तक पहुंचता है। बहुत विरले ही होते हैं जो खुद को अप्रभावित रखते हुए बचा पाते हैं। खुशहाली कुछ अर्जित करने से नहीं आती बल्कि सहज होने से आती है। अगर कुछ अर्जित कर लेने से ही इंसान खुश हो लेता तो एक किसी बड़े नेता, सेलिब्रिटी या अधिकारी को कभी दुनिया जहाँ की शादियाँ या संबंधों में लिप्त न होना पड़ता, अपराध न करने पड़ते या अन्य इस तरह का कोई भी व्यभिचार या कुसंग न करना पड़ता। चाहे वह नेता हो, व्यापारी हो, अधिकारी हो, चपरासी हो या कोई आम इंसान अगर आप व्यक्तिगत जीवन में, अपने निजी रिश्ते में पारिवारिक जीवन में खुश नहीं है, कलह आपके जीवन पर हावी है, तो इसका असर आपके आसपास के लोगों तक पहुंचता ही है। किसी भी सरकारी, गैर-सरकारी आफिस में बैठा चपरासी से लेकर जिलाधीश, किसी दुकान के संचालक या बस कंडक्टर या कोई रेहड़ी चलाने वाला आम आदमी, इन सबमें एक चीज समान है कि ये सब मनुष्य हैं और एक मनुष्य होने के नाते सब उसी मात्रा में भोजन करते हैं, निवृत होते हैं, मानवीय रिश्तों को जीते हैं आदि आदि। इन सबके लिए एक ही नियम लागू होता है कि जिस व्यक्ति के जीवन में मानवीय रिश्तों में समस्याएँ चल रही है, वह अपने व्यवहार से दूसरों को बहुत अधिक मानसिक चोट पहुंचा रहा होता है, और यह उसे आजीवन पता नहीं चलता है, क्योंकि वह खुद बीमार है, मानसिक रूप से पीड़ित है। मानसिक विक्षिप्तता से ग्रसित लोग सिर्फ सड़कों पर नहीं घूमते; वे दफ्तरों, दुकानों, चौबारों में भी बैठते हैं, मंच का भी संचालन करते हैं।
कुछ समय पहले एक बस कंडक्टर मिला, एक मेरी दोस्त ने उस बस कंडक्टर की बहुत तारीफ की थी कि वह बहुत अच्छा व्यवहारिक लड़का है। बाकी कंडक्टर की तरह किसी को अपनी आंखों से असहज नहीं करता है, सबसे अच्छे से बात करता है, नाममात्र भी हिंसा नहीं है। मैंने अपने दोस्त को बस इतना ही कहा कि गरीबी अमीरी से इतर एक अच्छे तनावमुक्त पारिवारिक माहौल के साथ पला बढ़ा होगा, परिवार में बहुत अधिक समस्याएं होंगी भी तो दृष्टा भाव से झेलते हुए आगे बढ़ा होगा, सहनशक्ति और दुनिवायी समझ दोनों साथ-साथ विकसित हुई होगी। और सबसे जरूरी व्यक्तिगत रिश्तों में अगर वह शादीशुदा होगा तो एक पत्नीव्रता होगा। या शादीशुदा नहीं भी है तो अपने मंगेतर या प्रेमिका के साथ भी रिश्ते की इस खूबसूरती को जी रहा होगा। उसके जीवनसाथी में भी यही गुण होंगे, वह भी कुछ ऐसी ही जीवनयात्रा से होकर आई होगी। इन सब की वजह से उस कंडक्टर में किसी तीसरे व्यक्ति के लिए हमलावर होने की प्रवृति विकसित होने की जगह ही नहीं बचती होगी। अंतत: मेरा आंकलन सही निकला।
हिंसक होने का, व्यभिचारी हो जाने का आधार अगर दुःख या पीड़ा सहना है। तो इसमें बस यही कहना है कि आप कितना भी सह लें, बुध्द गांधी के इतना तो कभी नहीं सह पाएंगे। वे क्यों हिंसक नहीं हुए इस बात को समझने की आवश्यकता है, उन्होंने भी आजीवन तमाम तरह की अपवंचनाएं झेलीं, लेकिन इससे उन्होंने खुद को विकसित किया, समृध्द किया। दुःख को मृत्यु से भी बड़ा बताकर आजीवन उसके समाधान के लिए बुध्द ने जीवन खपा दिया। बुध्द तमाम पीड़ाएं झेलते सहते हुए आजीवन दुःखहर्ता की भूमिका में रहे। सहना कोई मामूली बात नहीं है। किसी ने सही कहा है - बहते झरने की कलकल आवाज रास्ते में रूकावट बन रहे पत्थरों के बिना संभव नहीं है। और जीवन जीने का यही एकमात्र तरीका होता है।
हमारे यहाँ एक भाई अपने दूसरे भाई का गला काटने के लिए तैयार रहता है। एक फुट जमीन के लिए मारकाट मच जाती है, कुछ रूपयों के लिए मौत के घाट उतार दिया जाता है। क्षणिक सुख के लिए सारी जीवनी ऊर्जा खत्म की जाती है। रिश्तों के नाम पर एक दूसरे को तमाम तरह की मानसिक शारीरिक क्षति पहुंचाई जाती है। मुद्रा को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य मानकर तमाम तरह की हिंसाएं की जाती है। दिन रात प्रपंच, तीन तिकड़म ही जीवन का अंतिम लक्ष्य बन जाता है। इस विशाल सांस्कृतिक वैभव के कारण ही आज 137 देशों की सूची में हम 126 नंबर पर आए हैं। आइए निर्विकार भाव से हम सब इस सच को स्वीकारें और एक बेहतर इंसान हो जाने की हरसंभव कोशिश करते चलें। क्योंकि जीवन एक ही बार आता है।
Saturday, 18 March 2023
धारण क्षमता
उनका बचपन बहुत अधिक गरीबी, मुफलिसी में बिता। मिट्टी का घर रहा। खाने-पीने तक की समस्या रहती, ऐसी नौबत भी आ जाती थी। घर के सभी सदस्य दिहाड़ी से ही घर का खर्च चलाते थे। घोर संघर्ष और लगातार मेहनत से पक्के मकान तक का सफर उन्होंने तय किया। घर के मुखिया समान बेटे की एक सधी हुई सरकारी नौकरी भी लग गई। घर के पास नौकरी मिली, वह और सोने पे सुहागा। सुख समृध्दि का आलम यह कि मुखिया बेटे की सूझ-बूझ से धीरे-धीरे तीन मंजिला घर भी तान लिया, कार वगैरह व अन्य तमाम तरह की दुनियावी सुविधाएं। हर कोई उनका उदाहरण देता कि देखो कितने गरीब थे, कठोर संघर्ष से आज कहाँ तक की दूरी तय कर लिए। फिर एक दिन सुनने में आया कि मुखिया बेटे को ड्रीम11 की ऐसी लत लगी कि लाखों लाखों लुटा रहे हैं। जो लोग उनका उदाहरण देते रहे, आज वे कहते फिरते हैं कि भले इतनी संपत्ति है लेकिन ड्रीम11 तो सब चूस ले जा रहा है, जिन्हें एक समय में प्रेरणास्त्रोत माना जाता, आज जनमानस उनसे किसी भी तरह की प्रेरणा न लेने की अपील कर रहा है। जीवन में कुछ हो न हो धारण करने की क्षमता होना बहुत ही जरूरी हुआ। बाकि समय का फेर तो चलता रहता है।
Friday, 10 March 2023
आत्ममुग्ध लोगों के लक्षण..
Narcissist People symptoms -
1. ये लोग कभी भी अपनी बराबरी ( शारीरिक सुंदरता और मानसिक योग्यता के मामले में ) के लोगों को अपना दोस्त नहीं बनाते हैं, अपने से नीचे या अपने से कम सुंदर दिखने वाले को ही अपना करीबी दोस्त बनाते हैं ताकि वह उनके नीचे दबकर रहे और आजीवन एक गुलाम की भांति उनका सम्मान करे। ( जीवन सहचर वाले मामले में भी यही नियम लागू होता है )
2. आत्ममुग्ध लोगों में बहुधा यह गुण देखने को मिलता है कि वे अपने पति/पत्नी का या फिर अपने माता-पिता का हद से अधिक गुणगान करते हैं, जबकि हकीकत में वे उस लायक होते नहीं हैं। ऐसा करके वे अपने आप को मजबूती से पेश करने की कोशिश कर रहे होते हैं, अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करने का यह सबसे दोयम/छिछला तरीका होता है।
3. आत्ममुग्ध लोगों को हमेशा अपनी तारीफ करने वाला कोई चाहिए होता है, ये हमेशा दूसरों की अटेंशन पाने की चाह रखते हैं और इसके लिए वे किसी भी स्तर तक जा सकते हैं।
4. इनमें अपनी मूर्खताओं, जड़ताओं को लेकर धेला भर भी स्वीकार्यता नहीं होती है, उल्टे उसे छिपाने की कोशिश करते फिरते हैं।
5. इन्हें इस बात का भयानक गुरूर होता है कि इनकी हर चीज सर्वोत्तम है, श्रेष्ठ है।
6. आत्ममुग्ध स्त्री एवं पुरूष दोनों में यह एक गुण पाया जाता है कि विपरित लिंग आकर्षण के मामले में ये बताते फिरते हैं कि दर्जनों लोग उनके आगे पीछे घूमते हैं। असल में यही इनके भीतर की असुरक्षा को दर्शाता है।
7. इनके हर दूसरे वाक्य में आपको बेवजह एक अजीब किस्म का रहस्य मिलेगा। आपको एक पल के लिए महसूस होगा कि सामने वाला कितना खुलकर स्पष्ट होकर मन से दिल से अपनी बात कह रहा, अगले ही क्षण आपको ऐसा महसूस करा देंगे कि लगेगा कि ये आपको जानते ही नहीं।
8. आत्ममुग्ध लोगों में एक यह गुण कूट-कूटकर भरा होता है कि इन्हें अपने आगे-पीछे मूर्ख लोगों की फौज लेकर चलना पसंद होता है, क्योंकि ये खुद भी उसी टोले के होते हैं, तभी टोले का सरदार बनने का स्वांग रचते हैं।
9. आत्ममुग्ध महिला हो या पुरूष इनके बहुत कम दोस्त यार होते हैं, दोस्त यार के नाम पर अमूमन पीठ खुजाने वालों का एक झुण्ड होता है जो कि अस्थायी होता है, परिवर्तित होता रहता है।
10. व्यवहार में ये पल-पल बदलते मौसम की तरह होते हैं, कभी बरस जाएंगे तो कभी ठिठुर जाएंगे तो कभी धूप की तरह खिलने लगेंगे। बस सामने वाला कभी इस बात की थाह न पाए, इसकी पूरी व्यवस्था करते हुए चलते हैं।
11. आजीवन लोगों के दिमाग से खेलते हैं, भ्रम पैदा करते रहते हैं, असल में उन्हें इस काम में अजीब किस्म का आनंद मिलता है।
12. आत्ममुग्ध व्यक्ति को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया में क्या बेहतर चीजें चल रही है, उन्हें बस अपनी मूर्खताओं का महिमामण्डन होता दिखना चाहिए।
13. आत्ममुग्ध व्यक्ति आपको एक गिलास पानी भी पिला दिया तो आने वाले एक साल तक उसे गिनाता फिरेगा कि मैं देखो मैं इतना महान हूं तुम्हें पानी पिलाया था। आप इस अहसान के बोझ तले दबते जाते हैं। एक वाक्य में कहूं तो ये जताते बहुत हैं।
14. आत्ममुग्ध व्यक्ति अपेक्षाकृत शारीरिक सुंदरता का धनी होता है, इतना होता ही है जितने में टोली का सरदार बन सके।
15. इनके लिए रिश्ते सेंसेक्स के आंकड़े होते हैं। आंकड़ा परिवर्तित होता रहता है।
16. स्वयं के लिए फिजूलखर्ची और बाकि दुनिया के लिए मक्खीचूस वाला स्वभाव होता है।
17. आत्ममुग्ध व्यक्ति भयानक विनम्र होता है, अब इसे आप कैसे देखते हैं यह आप पर है। ये हमेशा मीठी छुरी ही चलाते हैं, कभी गुस्सा नहीं जताएंगे, कभी हिंसा नहीं दिखाएंगे, भले भीतर ज्वालामुखी क्यों न फूट रहा हो लेकिन खुद को हमेशा मासूमियत के साथ ही पेश करते हैं। आपका मन लगा रहता है। असल में यही इनके जीने का modus operandi होता है।
18. ऐसा नहीं है कि आत्ममुग्ध व्यक्ति सिर्फ अपने में ही मुग्ध रहते हैं, ये दूसरों की तारीफ भी करते हैं, बस ये है कि इनकी तारीफ किसी जहरीले किंग कोबरा से पप्पी लेने जैसा है, यह आप पर है कि आप कितना विष पचा पाते हैं।
19. इनका स्वभाव पानी के बुलबुले जैसा होता है। आपको लगेगा कि बहुत कुछ है, एक विशाल, विराट,अद्भुत, अप्रतिम, विलक्षण व्यक्तित्व का अहसास, लेकिन सब कुछ बाॅम्बे मिठाई (काॅटन कैण्डी) की तरह हवा हवाई होता है।
20. रचनात्मक लोगों को चाहिए कि वे आत्ममुग्ध लोगों से एक निश्चित दूरी बना कर चलें, क्योंकि रचनात्मकता के स्तर पर अपूरणीय क्षति होने की भरपूर गारंटी होती है।
इति।
Thursday, 9 March 2023
सहने में जो आनंद है वो भोगने में कहाँ
एक लड़का है। कच्ची उम्र का है, लाखों की तनख्वाह वाली नौकरी है, इसके अलावा आवास, भोजन, परिवहन संबंधी अन्य सुविधाएं प्राप्त हैं। पारिवारिक माहौल, कंडिशनिंग या संगत जो भी कह लें, इन सबकी वजह से उसका व्यक्तित्व कुछ ऐसा तैयार हुआ कि बहुत ही अधिक नफरती और क्रिमिनल माइंडसेट का हो गया। चूंकि उम्र में बहुत छोटा है, तो एक बड़े भाई का दायित्व निभाते हुए अभी कुछ समय पहले मेरी उससे मुलाकात हुई। ये मैं पहली बार उससे मिल रहा था, इससे पहले सोशल मीडिया में ही जान पहचान थी। मैं हाव-भाव से ही समझ गया कि इंसान बहुत ही अधिक बीमार है, सोशल मीडिया से इतर सामने मिलना इसलिए भी जरूरी होता है, बहुत कुछ समझ आता है। हाव-भाव से बहुत ही शांत, सहज, गंभीर, एक आम व्यक्ति भले थाह नहीं पाएगा लेकिन इतनी कम उम्र के व्यक्ति में ऐसी गंभीरता मुझे तो असहज ही करती है। उसमें भी गंभीरता ऐसी जो सिर्फ और सिर्फ आपराधिक प्रवृति के लोगों में ही पाई जाती है। कोर इंजीनियरिंग का छात्र होने के नाते और अलग-अलग राज्यों में रहते हुए मैंने तरह-तरह के हिंसक लोग देखे हैं लेकिन उन सबके भीतर भी अंश मात्र ही सही प्रेम और संवेदना की झलक देखने को मिल गई, लेकिन ये ऐसा पहला व्यक्ति मिला जिसके भीतर इंच मात्र मानवीय संवेदना देखने को नहीं मिली। ऐसे समझिए कि व्यक्ति के भीतर किसी वायरस की तरह पूरे मन मस्तिष्क में नफरत का प्रवेशन हो चुका हो। ऐसे लोग अमूमन भयानक पुरुषवादी मानसिकता के होते हैं और महिलाओं के प्रति बहुत अधिक नफरत का भाव रखते हैं, घोर असंवेदनशील होते हैं, आप शायद वहाँ तक सोच भी न पाएं। मैं समझ सकता हूं कि ऐसा व्यक्ति कैसी जीवन यात्रा से होकर आया होगा। खैर..
ऐसे लोग जहाँ कहीं भी होते हैं, नफरत को ही पोषित करते हैं, ये भी वही कर रहा है। पूरा भरोसा है कि आगे भी आजीवन यही करता रहेगा। ये लोग अपराध भी करते हैं तो बच के निकलने के सारे साधन तैयार रखते हैं, आप कितने भी तेजतर्रार हों, इन्हें आप नहीं पकड़ पाएंगे। एक संवेदनशील व्यक्ति के लिए एक संवेदनहीन व्यक्ति की थाह पाना इतना आसान नहीं होता है। और आप ऐसे लोगों से उम्मीद नहीं कर सकते कि वे आपकी बात सुन लें। वैचारिक रूप से अडिग ये लोग पूरी दुनिया को अपनी हिंसा और नफरत से ही संचालित करने में विश्वास रखते हैं। इस तरह के लोगों को एक मनोवैज्ञानिक की सबसे अधिक जरूरत होती है।
एक बार कार सीखने की बात निकली थी तो उस लड़के ने बताया था कि एक कोई उसके रिश्तेदार हैं जो इलीगल सप्लाई का काम करते रहे हैं और गाड़ी चलाने में उन्हें महारत हासिल है। उसने बताया कि उसे कार चलाना उन्होंने ही सिखाया। वह कहता कि पूरे देश में उनके बराबर का कोई ड्राइवर नहीं होगा। आगे उसने बताया कि उसके रिश्तेदार ने एक बार टोल नाके में पुलिस वालों को अपनी गाड़ी से रौंद दिया। और इस घटना के बाद वे कई साल के लिए गायब हो गये। उसने बताया कि इस तरह के बहुत से अपराध उन्होंने अपने समय में किए, लेकिन कभी वे कानून के हाथ नहीं लगे। उसने बताया कि पहले वे ये सब करते थे, अब नहीं करते हैं। यह सब बताते हुए उसके चेहरे के भाव कुछ उसी तरह के थे जैसे भाव एक शिष्य के चेहरे पर होते हैं जब वह अपने गुरू की प्रशंसा करता है।
एक बार कुत्तों को लेकर चर्चा हुई। उसने बताया कि कुत्तों में एक पिटबुल डॉग प्रजाति होती है जो कि बहुत ही अधिक खतरनाक होती है। उसका एक बाइट इतना पीएसआई जनरेट करता है कि सामने वाले की जान चली जाती है। अमेरिका और कुछ कुछ देशों में इसके इसी स्वभाव के कारण इसे बैन कर दिया गया है लेकिन भारत में बैन नहीं है। पिटबुल डॉग इतना हमलवार प्रकृति का होता है कि यह सीधे सामने वाले को जान से मार देता है। इस डाॅग के हमले से बहुत लोगों की जान जा चुकी है। पालतू कुत्ते बकरियां गाय थोक के भाव शिकार होती रहती हैं। उसने अंत में बताया कि भारत में अधिकांशत: महिलाओं को ही पिटबुल डॉग पसंद होता है, ऐसा कहते हुए वह महिलाओं को पुरूषों से अधिक हिंसक प्रायोजित कर रहा था, खैर उसकी इस पुरुषवादी सोच से मैं बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं। मेरे जानने में बहुत से ऐसे डाॅग लवर दोस्त यार हैं, उनसे कुत्तों की ब्रिड को लेकर लंबी चर्चाएं चली होंगी लेकिन उन्होंने कभी ऐसे हाईलाइट करके कुत्तों के इस हमलावर ब्रीड के बारे में इतने विस्तार से जिक्र नहीं किया। फ्राइड सही कह गये हैं कि इंसान जो कहता है, जिस तरह से कहता है, वही उसके बारे में बहुत कुछ बता देता है।
एक और वाकया इसने बताया कि कैसे उसे वर्कप्लेस में अपने अधीनस्थों से जूते उठवाने या सामान उठाने के लिए आदेश देकर मजा आता है, कैसे वह अपने से नीचे के लोगों के भीतर की नकारात्मताओं को आड़े हाथों लेकर उन्हें घंटों इंतजार करवाकर सुकून पाता है, कैसे वह अपने हिस्से की सुविधा और सुरक्षा पा लेने के लिए पूरे सिस्टम को आड़े हाथों लेता है, ऐसा ही बहुत कुछ अटरम शरटम करता है और इस पूरी प्रक्रिया में असीम आनंद से अनुभूत हो लेता है। खैर, ये अपने से छोटों का शोषण कर आनंद भोगने वाले बहुतेरे देखे हैं लेकिन उसमें भी आपराधिक प्रवृति वाला ये पहला रहा।
ऐसे विचित्र लोगों के लिए मेरा अंदाजा बहुत कम ही गलत निकलता है, खासकर अनुभवजन्य बातें सही ही साबित होती है, पूरी उम्मीद है कि यह व्यक्ति अपने आने वाले समय में बहुत साफ्ट तरीके से और अधिक मात्रा में अलग-अलग प्रकार के आपराधिक कृत्यों को पूरी क्रूरता से अंजाम तक पहुंचाएगा, और लोगों को इस व्यक्ति का परपीड़ा सुख समझ नहीं आएगा, क्योंकि यह खामोश, गुमसुम, भीरू स्वभाव का हिंसक व्यक्ति है। इस लड़के से मिलना मेरे लिए बहुत अलग तरह का अनुभव था। कैसे धीरे-धीरे एक पूरी प्रक्रिया के तहत एक आपराधिक प्रवृति का व्यक्ति तैयार होता है, यह देखना अपने आप में अभी तक के अनुभवों में से सबसे अलग अनुभव रहा।
मानवीय पहलुओं से उसका साक्षात्कार हो सके, इस हेतु अपने स्तर पर मुझसे जो बन पड़ा, वह मैंने इस बीच किया। मैंने अपने स्तर पर छोटे-छोटे जेस्चर से उसके हिंसात्मक स्वरूप में कमी लाने की हर संभव कोशिश की। बुध्द और अंगुलीमाल का समय बहुत अलग था। अभी के समय का चैलेंज अलग ही तरह का है। एक बचपन का दोस्त मुझसे कहा करता है कि मैं क्यों लोगों को इतना बर्दाश्त करता हूं, इस पर मुझे एक ही बात याद आती है - " सहने में जो आनंद है वो भोगने में कहाँ। "
इति।
Friday, 3 March 2023
मासूम चिड़िया
व्यवस्था है एक मासूम चिड़िया,
उसे जो जैसा चाहता है इस्तेमाल कर लेता है,
चाहे सरकारी व्यक्ति हो या गैर सरकारी,
कोई नेता हो या कोई पत्रकार,
हर कोई अपनी सुविधानुसार,
व्यवस्था रूपी चिड़िया के पंख नोच ले जाता है।
इसके ठीक उलट एक बड़ी आबादी,
उस व्यवस्था रूपी मासूम चिड़िया के,
पंखों पर लगातार मरहम करती रहती है।
एक तोड़ने का काम करता है,
तो एक जोड़ने का।
तोड़ने वाले इतना तोड़ जाते हैं,
कि पंखों को फलने ही नहीं देते।
तोड़ने वाला झटके में अपना काम कर जाता है,
जोड़ने वाले आजीवन लगे रहते हैं।
कुछ इस तरह व्यवस्था,
अपने होने का अहसास दिलाती है।
जब तक जोड़ने वाले रहेंगे,
जब तक पंखों को सहारा देने वाले रहेंगे,
व्यवस्था सारी पीड़ाएँ झेलते हुए,
सच्चिदानंद की भांति जीवित रहेगी।
Wednesday, 1 March 2023
एक इंसान काफी होता है -
हमारे यहाँ स्त्री पुरुष के बीच रिश्ते बेहद संजीदगी वाले होते हैं, जिनमें तमाम तरह की अपनी जटिलताएं होती हैं। चाहे वह अल्पकालिक रिश्ता हो, लव मैरिज हो या फिर अरैंज मैरिज। रिश्तों में एक दूसरे की खोज करते हुए, एक दूसरे के सोच विचार को विस्तार देते हुए अपनेपन को जीना सबके बूते का नहीं है।
अधिकतर रिश्तों में यह देखने में आता है कि जहाँ जैसे एक पक्ष आर्थिक रूप से अधिक समृध्द हो, दिखने में ज्यादा अच्छा हो, सोच में मानसिकता में मेधा के स्तर पर एक व्यक्ति दूसरे से कहीं अधिक आगे हो। ऐसी स्थिति में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के प्रति आजीवन उदारता का, दुःखहर्ता का, सहानुभूति का भाव रखता है, जीवनसाथी के रूप में बराबरी में सम्मान नहीं कर पाता है। ऐसे व्यक्ति को रिश्तों में अपनी ओर से बहुत अधिक जोर नहीं लगाना पड़ता है, लापरवाही चरम पर होती है। जैसे कभी बहस होती है तो दूसरे पक्ष को आर्थिक सामाजिक और दैहिक सुंदरता इन मामलों को सामने लाकर बुरा भला कहा जाता है, छोटा दिखाया जाता है। जो ईमानदार होता है वह भड़ास निकाल देता है, जो शातिर होता है, वह खामोश रहकर कुण्ठा परोसते हुए आजीवन दिमाग से खेलता है। ऐसे रिश्तों में वैचारिकी बिलकुल नहीं मिलती है, मिलने का दिखावा जरूर होता है, दुनिया के बेस्ट कपल वाले लतीफे छोड़ कर बस गाड़ी खींच रहे होते हैं, ऐसी स्थिति में दो लोगों के बीच सब कुछ होता है, बस रिश्ता नहीं होता है। एक बहुत बढ़िया पाॅलिश फिल्म है - "थ्री कलर्स व्हाइट", उसमें इस द्वंद को बहुत अच्छे से दिखाया गया है।
जिन रिश्तों में इंसान को अपने पार्टनर से एक माता-पिता, भाई,बहन या दुनिया में जितने भी रिश्ते हैं, हर तरह की भूमिका निभा जाने का अपनापन महसूस ना हो, इसका सीधा मतलब यही है कि रिश्ते में ढीलापन है, टिकाऊ नहीं है, चाहे वह अविवाहित लोग हों या शादी-शुदा जोड़े। जो लोग रिश्तों में एक दूसरे को पूरी तरह स्वीकारते हैं, समझते हैं, उनमें खासकर शादी के बाद गजब का बदलाव देखने को मिलता है। अलग दृष्टिकोण से जीवन पथ पर आगे बढ़ते हैं, तनावमुक्त हो जाते हैं, जीवन के प्रति पहले से कहीं अधिक सहज हो जाते हैं, क्योंकि उनको एक ऐसा इंसान मिल जाता है, जिससे वह अपने सारे सुख-दुःख साझा कर सकते हैं। हमारे यहाँ विरले ही ऐसी घटनाएँ होती है।
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