पहले के समय में जो राजे रजवाड़े होते थे उसमें जो भी राजा के खास लोग होते थे या उस समय की व्यवस्था के खास लोग हुआ करते थे, जिसमें कुछ एक खास वर्ग के लोगों का ही दबदबा था। उन्हें उपाधियाँ मिलती थी, ताकि मुख्यधारा की भीड़ से अलग उनका एक वर्चस्व कायम रहे, और लोग उनसे घबराएं या उनका ज्यादा सम्मान करें, पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी योग्यता के घूम रहे इन लोगों को महान विशिष्ट मानते हुए चलें। देखने में आता है कि राजा भी अपने नाम के साथ राजबहादुर, बाजबहादुर आदि आदि पदवी लेकर चलता था और अपने मंत्रियों, सेनापतियों और अपने विश्वस्त भाट चारणों को पदवी देकर उन्हें हमेशा के लिए भरपूर पाॅवर और प्रिविलेज से लाद देता था।
आज के डिजिटल युग में चूंकि लोकतंत्र की अवधारणा है, लेकिन फिर भी कुछ एक देशों में और हमारे देश में भी इस डिजिटलीकरण के युग में भी राजा-प्रजा वाली सामंती व्यवस्था आज भी कायम है। ट्विटर जैसे डिजिटल प्लेटफाॅर्म में ब्लू टिक लेकर घूमना एक तरह से एक पदवी एक टैग लेकर घूमना ही था, जिनके पास ब्लू टिक न हो उनकी नजर में ब्लू टिक वाला महान विशिष्ट प्रबुध्द माना ही जाता है। यहाँ भी राजे रजवाड़े वाले समय की तरह अब तक कुछ एक खास तबके के लोगों का यानि अपर कास्ट का ही दबदबा था।
आप ट्विटर में देखिएगा कई ऐसे लोग आपको मिल जाएंगे जिनके बमुश्किल हजार दो हजार फाॅलोवर होंगे, उनके ट्विट्स की कोई खास रीच नहीं होगी, ढेला भर योग्यता नहीं होगी लेकिन फिर भी उन्होंने ब्लू टिक ले रखा है। क्योंकि ब्लू टिक का अब तक का पैमाना चाटुकारिता ही था, जिसकी पहुंच जिसका रसूख, जो जितना अधिक भाटगिरी कर सकता है, उसे ब्लू टिक मिल जाता था, और वह झटके भर में विशिष्ट बन जाता था, एलन मस्क ने इस घटिया सामंती व्यवस्था को बुरे तरीके से तोड़ दिया है। इसलिए यह तबका एलन मस्क से बेहद नाराज है क्योंकि मस्क ने एक झटके में ट्विटर को सामंती से लोकतांत्रिक बना दिया है। अब कोई भी योग्य व्यक्ति 8 डाॅलर/प्रतिमाह देकर ब्लू टिक ले सकता है, तथाकथित एलीट क्लास को ये बात बहुत ज्यादा चुभ रही है, भारत के लिए तो यह बड़ा सुखद बदलाव है।
अपने आसपास आप देखिएगा जो भी आपको एलन मस्क का विरोधी मिलेगा, मुद्रा कमाने का विरोधी मिलेगा, आर्थिक सशक्तीकरण का विरोधी मिलेगा, उसे आप सीधे-सीधे इस राजे-रजवाड़े सामंती व्यवस्था का समर्थक ही मानिए।
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